डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में जल की आपूर्ति का परंपरागत साधन नौला रहा है। सदियों तक पेयजल की निर्भरता इसी पर रही है। नौला मनुष्य द्वारा विशेष प्रकार के सूक्ष्म छिद्र युक्त पत्थर से निर्मित एक सीढ़ीदार जल भण्डार हैए जिसके तल में एक चौकोर पत्थर के ऊपर सीढ़ियों की श्रंखला जमीन की सतह तक लाई जाती है। सामान्यतः सीढ़ियों की ऊंचाई और गहराई 4 से 6 इंच होती हैए और ऊपर तक लम्बाई. चौड़ाई बढ़ती हुई 5 से 9 फीट वर्गाकार हो जाती है। नौले की कुल गहराई स्रोत पर निर्भर करती है। आम तौर पर गहराई 5 फीट के करीब होती है ताकि सफाई करते समय डूबने का खतरा न हो। नौला सिर्फ उसी जगह पर बनाया जा सकता है, जहाँ प्रचुर मात्रा में निरंतर स्रावित होने वाला भूमिगत जल विद्यमान हो। इस जल भण्डार को उसी सूक्ष्म छिद्रों वाले पत्थर की तीन दीवारों और स्तम्भों को खड़ा कर ठोस पत्थरों से आच्छादित कर दिया जाता है। प्रवेश द्वार को यथा संभव कम चौड़ा रखा जाता है। छत को चारों ओर ढलान दिया जाता है ताकि वर्षाजल न रुके और कोई जानवर न बैठे।आच्छादित करने से वाष्पीकरण कम होता है और अंदर के वाष्प को छिद्र युक्त पत्थरों द्वारा अवशोषित कर पुनः स्रोत में पहुँचा दिया जाता है।
मौसम में बाहरी तापमान और अन्दर के तापमान में अधिकता या कमी के फलस्वरूप होने वाले वाष्पीकरण से नमी निरंतर बनी रहती है। सर्दियों में रात्रि और प्रातः जल गरम रहता है और गर्मियों में ठण्डा। नौले का शुद्ध जल मृदुल, पाचक और पोषक खनिजों से युक्त होता है। लगभग पांच.छह दशक पूर्व तक पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल का एकमात्र स्रोत नौला था। नौलों की देखभाल और रखरखाव सभी मिलजुलकर करते थे। प्रातःकाल सूर्योदय से पहले घरों की युवतियाँ नित्य कर्म से निवृत्त हो तांबे की गगरी लेकर पानी लेने नौले पर साथ साथ जाती, बतियाती, गुनगुनाती, जल की गगरी सिर पर रख कतारबद्ध वापस घर आती, अपने अपने काम में जुट जाती थी। समय समय पर परिवार के अन्य सदस्य भी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नौले से ही जल लाते थे। घर पर रहने वाले मवेशियों के पीने के लिए और छोटी छोटी क्यारियों को सींचने के लिए नौले से ही जल लाया जाता था। नौले के माध्यम से आपस में मिलना जुलना हो जाता, सूचनाओं का आदानप्रदान हो जाता था। आपसी मेलजोल से सद्भावना सुदृढ़ होती थी। इसे प्रकृति की देन कही जाये या कुछ और, 13वी शताब्दी में कत्यूरी शासकों द्वारा बनाये गए पिथौरागढ़ में गंगोलीहाट के जाह्नवी नौला की अविरल धारा आज भी पुरातन समय की तरह ही बह रही है।
सदाबहार जाह्नवी नौला का पानी आज भी लोगो की पहले पसंद है। इस नौले के जल को गंगा नदी के जल के सामान माना जाता है। नौला हमारी प्राचीन धरोहर के साथ-साथ हमारे पूर्वजों की पर्यावरण के प्रति जागरुकता को भी दर्शाते हैं। प्रत्येक नौले के पास किसी.न.किसी प्रजाति का वृक्ष, भगवान की मूर्ति अवश्य होता है। भारत के गरम घाटियों जैसी गुजरात, पंजाब, राजस्थान राज्य के आस.पास के नौलों में पीपल, बड़ आदि का पेड़ तो वही उत्तराखंड के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बांज, देवदार, केले, आम आदि के पेड़ नजर आते हैं। यह पेड़ वहां रहने वाले लोगो के आस्था से भी जुड़ा हुआ रहता है।
उत्तराखंड में आज भी बहुत से पहाड़ी गावं में जल का स्त्रोत ही नौला है। नौला पेयजल की उपलब्धता हेतु पत्थरों से निर्मित एक ऐसी संरचना हैए जिसमें सबसे नीचे एक वर्ग फुट चौकोर सीढ़ीनुमा क्रमबद्ध पत्थरों की पंक्ति जिसे स्थानीय भाषा में ष्पाटाष् कहा जाता हैए से प्रारम्भ होकर ऊपर की ओर आकार में बढ़ते हुए लगभग 8-10 पाटे होते हैं, सबसे ऊपर का पाटा लगभग एक डेढ़ मीटर चौड़ाई.लम्बाई व कहीं.कहीं पर ये बड़े भी होते हैं, नौला के बाह्य भाग में प्रायः तीन ओर दीवाल होती है। कहीं.कहीं पर दो ओर ही दीवालें होती हैं। ऊपर गुम्बदनुमा छत होती है। अधिकांश नौलों की छतें चौड़े किस्म के पत्थरों जिन्हें पटाल कहा जाता है, से ढँकी रहती है। पटाल का उपयोग उत्तराखंड के गांव में छत बनाने के लिए भी किया जाता है। उत्तराखंड में नौला के भीतर की दीवालों पर किसी.न.किसी देवता की मूर्ति विराजमान रहती है, जो वह के लोगो की आस्था और विश्वास से जुड़ा हुआ रहता है। आज भी बहुत से गावं में इनके पूजा भी की जाते है।
अधिकांश नौलों में प्रायः बड़े.बड़े पत्थरों को बिछाकर आँगन बना हुआ दिखता है। बाहरी गन्दगी को रोकने एवं पर्दे के रूप में नौलों में पत्थरों की चाहरदीवारी भी अधिकांशतया बनी हुई पाई जाती है। उत्तराखण्ड में नौले के आस पास में छोटे.छोटे रूप में भगवान की मूर्तियां, फोटो आदि पाये जाते या फिर रखे जाते हैं इसका एक मुख्य कारण इनका साफ़ जगह होना भी है। इनके आस.पास न केवल पूजा पाठ होते थे बल्कि विवाह के रीति रिवाज से लेकर मृत्यु के कर्मकांड तक के कई सारे पुराने रिवाज इन्हीं नौलों पर आज भी सम्पन्न किये जाते है।
उत्तराखंड का सबसे पुराना नौला जाह्नवी नौला को ही माना जाता है। यह पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में स्थित है। रामगंगा और सरयू नदी के मध्य भू भाग में स्थित गंगावली क्षेत्र के गंगोलीहाट में हैए हाट कालिका सिद्धपीठ। इस मंदिर से पांच सौ मीटर दूर एक ऐसा नौला है जिसे सदियों से गुप्त गंगा सींच रही है। अब तक समय का लंबा पड़ाव तय कर चुका यह नौला आज भी जल संरक्षण की नजीर है। नाम है जाह्नवी नौला। पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में स्थित यहां प्राचीन और ऐतिहासिक जाह्नवी नौला जल संरक्षण की मिसाल भी है। जाह्नवी नौला दो मंदिर समूहों के मध्य स्थित इस नौले का स्रोत गंगोलीहाट के दक्षिण. पश्चिम में स्थित शैलेश्वर पर्वत की गुफा से निकलने वाली गुप्त गंगा को माना गया है। इसके निर्माण को लेकर आज भी इतिहासकारों के अलग.अलग मत हैं। नौले में लगे शिलापट के अनुसार इसका निर्माण 1275 में हुआ था। तब चहां चंद वंशीय मणकोटी राजाओं का शासन हुआ करता था। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि नौले और यहां पर निर्मित मंदिरों का निर्माण मणकोटी राजा रामचंद्र देव ने किया तो कुछ का मत इससे भिन्न है। उनका मानना है कि नौले का निर्माण मणकोटी राजा रामचंद्र देव की माता ने किया। मान्यता यह भी है कि नौले के निर्माण से पूर्व यहां पर शैलेश्वर पर्वत की गुप्त गंगा से आने वाले जल का कुंड हुआ करता था जिसे बाद में नौले का रूप दिया गया।
जाह्नवी नौले के एक तरफ जंगम बाबा अखाड़े का मंदिर समूह है। जिसमें सबसे बड़ा मंदिर 15 फीट ऊंचा है और इसमें चुतर्भुज स्थिति में भगवान विष्णु जी की मूर्ति स्थापित है।इस मंदिर का मुंह पूरब दिशा की तरफ है। दूसरी तरफ पांच मंदिरो का समूह हैं जो सभी दक्षिणोन्मुखी हैं। पांच में से चार मंदिरो में आयुध सहित चतुर्भुजी भगवान विष्णु जी विराजमान हैं तो वही पांचवें में हनुमान। जाह्नवी नौले का पानी आज भी पवित्र है। स्थानीय मान्यता है कि पूर्व में हाट कालिका मां इसी नौले में स्नान करने आती थीं। पूर्व में हाट कालिका मंदिर में लगने वाले भोग के लिए जाह्नवी नौले का पानी प्रयोग किया जाता है।यहां आने वाले भक्तजन नौले से पानी लेकर मंदिर में जाते थे। वर्तमान में यहां पर नौले को बंद कर यहां से मंदिर तक पाइप लाइन बिछा दी गई है और वर्तमान में भी मंदिर में इसी जाह्नवी नौले का पानी प्रयोग में लाया जाता है। ऐतिहासिक नौले में किसी तरह की छेड़छाड़ न होए नौले को किसी प्रकार का नुकसान न पहुंचेए इस दृष्टिकोण से नौले को लोहे की जाली से बंद कर दिया गया। जाह्नवी नौला केवल जलस्रोत ही नहीं अपितु पूरी उत्तराखंड कुमाऊं में आस्था का केंद्र भी है। जिसे सीघे हाट कालिका से जोड़ा जाता है। जाह्नवी नौले में अविरल बहती जल धारा के पीछे संरक्षण की सोच है।गुप्तगंगा क्षेत्र में घने जंगल प्राचीन काल में भी थेए आज भी हैं। यहां के स्थानीय लोग जंगलों की काफी हिफाजत करते हैं। नौले का उपयोग करने वाले महाकाली मंदिर के पुजारी रावल समुदाय के लोग भी नौले के संरक्षण के लिए लगातार प्रयत्नशील रहते हैं। यहीं से लोग जल भरकर ले जाते हैं। जाखनी निवासी बताते हैं कि गुप्तगंगा में जितना जल वर्तमान में हैएउतना ही बचपन में भी उन्होंने देखा था। बताते हैं बरसात में मुहाने तक पानी आ जाता है। गर्मियों में 20 मीटर बाद ही नदीनुमा रेतपट्टिका से भरे जल के दीदार होते हैं। वह कहते हैं गुप्तगंगा के संरक्षण के लिए और पुख्ता प्रबंध होने चाहिए। पहाड़.पानी.परंपरारू भारत की अनोखी जल संचयन सभ्यता इनके संरक्षण हेतु जागरूक न हुए तो हमारी ये गौरवशाली विरासत सदैव के लिए लुप्त हो जायेगी। सरकारी व स्थानीय सहयोग की बड़ी आवश्यकता हैण् तो निश्चित तौर पर पहाड़ की पुरानी नौला विरासत वापस लौट सकती है।