नेशनल इंटर कालेज धनौरी का फर्जीवाड़ा
हरिद्वार। जिले के रुड़की तहसील के अंतर्गत नेशनल इंटर कालेज धनौरी के फर्जीवाड़े की जड़ें 1995 से पहले की हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी सिर्फ स्कूल के प्रबंध समिति के फर्जीवाड़े में ही चक्कर काट रहे हैं। मीडिया में भी इस फर्जीवाड़े का 2007 का बताते हुए इसे बहुत हल्का करके दर्शाया जा रहा है। मामला सिर्फ प्रबंध समिति की फर्जी नियुक्ति का ही नहीं है, बल्कि मामला इससे भी कहीं अधिक गहरा और संयुक्त उत्तर प्रदेश के दौर से लेकर अब तक स्कूल की सैकड़ों बीघा भूमि और स्कूल की अन्य संपत्तियों को खुर्द-बुर्द करने का है। चूंकि प्रबंध समिति में फर्जीवाड़ा करने वाला परिवार सत्तारूढ़ पार्टी से संबंधित है, इसलिए अधिकारी इस प्रकरण में फूंक-फूंककर हाथ डाल रहे हैं।
फिलहाल प्रबंध समिति के फर्जीवाड़े की जांच में भी फर्जीवाड़ा चल रहा है। फिलहाल यह जांच सन् 2007 से चल रहे फर्जीवाड़े को लेकर चल रही है। जांच में सबकुछ फर्जी मिलने के बाद अधिकारियों की भूमिका इस फर्जीवाड़े को और संदिग्ध बना रही है। जब सक्षम अधिकारी द्वारा की गई जांच रिपोर्ट में फर्जीवाड़े की पुष्टि हो गई है, इस आधार पर समिति के प्रबंधक और ग्यारह सदस्यों पर कार्यवाही करते हुए उन्हें हटा दिया गया, तब प्रशासक नियुक्त करने में विलंब की वजह क्या है? इस पूरे प्रकरण में शिकायतकर्ताओं ने जब जिले के मुख्य शिक्षा अधिकारी पर आरोपियों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया है, तब शिक्षा निदेशक द्वारा ऐसे अधिकारी से आख्या मांगने का मंतव्य समझ से परे हैं, जबकि फर्जीवाड़े की पुष्टि होते ही जब प्रबंधक और ग्यारह सदस्यों को हटा दिया गया है तो प्रशासक नियुक्त करने में विलंब करने का औचित्य क्या है?
गौरतलब है कि नेशनल इंटर कालेज धनौरी की प्रबंधन समिति 2007 में फर्जीवाड़ा करके बनाई गई थी। इस प्रकरण में कई चैंकाने वाली बातें सामने आ रही हैं। प्रबंधक पद पर नियुक्ति के समय वह व्यक्ति नाबालिग था। खास बात यह भी है कि प्रबंधक और समिति का एक मेंबर साधारण सभा के सदस्य भी नहीं थे, इसके बावजूद उन्हें प्रबंधक और समिति का सदस्य चुन लिया गया। यह फर्जीवाड़े का एक पक्ष है, जो बहुत हल्का है। इससे भी गंभीर मामला उससे पहले का है।
मुख्य शिकायतकर्ता धनौरी के पूर्व प्रधान जोधराज सैनी बताते हैं कि इस स्कूल का मामला 1995 से पहले का है। उन्होंने सबसे पहले 1995 में इस प्रकरण की शिकायत की। चूंकि उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे पृथ्वी सिंह विकसित इस प्रबंध समिति के प्रबंधक भी थे, इसलिए अपने प्रभाव से वह शिकायतों को दबाते रहे। सैनी आरोप लगाते हैं कि इस स्कूल के पास 452 बीघा जमीन थी, जिसे खुर्द-बुर्द कर अब स्कूल के पास मात्र 80 बीघा जमीन रह गई है। स्कूल के पास सभी तरह के कृषि यंत्र थे, वह समिति से जुड़े लोगों ने हजम कर लिए। उनकी शिकायत की गई लखनउ से रुकवा दी गई। वह अपने प्रभाव से सभी जांचों को दबाते रहे। शिकायत करने वालों पर मुकदमे लगा दिए गए। सैनी कहते हैं कि यह परिवार किसी भी प्रकार से प्रबंध कमेटी को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता है। मामला सिर्फ फर्जी नियुक्ति का नहीं है, बल्कि सैकड़ों बीघा स्कूल की जमीन और स्कूल की दूसरी संपत्तियों को खुर्द-बुर्द करने के साथ ही सांसद विधायक निधि से स्कूल भवन निर्माण के लिए मिले धन के दुरुपयोग करने का भी है।