डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत और पाकिस्तान ये दोनों एक दूसरे के पड़ोसी देश होने के साथ ही कट्टर दुश्मन भी कहलाए जाते हैं। साल 1947 में अलग होने के बाद से ही इन दोनों देशों बीच में दुश्मनी का रिश्ता बना हुआ है। कश्मीर घाटी में आतंक फैलाने में पाकिस्तान कभी पीछे नहीं रहता है। मंगलवार को पहलगाम में मासूम टूरिस्टों को निशाना बनाकर पाकिस्तान ने एक बार फिर कायराना हरकत की है।
पाकिस्तान के इस एक्शन पर भारत का रिएक्शन जरूर आ सकता है। उम्मीद की जा रही है कि भारत पाकिस्तान की इकोनॉमी पर प्र प्रहार कर सकता है।ब्रिटिश शासन में दक्षिण पंजाब में सिंधु नदी घाटी पर एक बड़ी नहर बनाई गई थी. इसके चलते इस क्षेत्र के किसानों को बहुत फायदा हुआ और यह एक प्रमुख कृषि क्षेत्र बनकर उभरा. 1947 में भारत के बंटवारे के बाद पंजाब भी दो हिस्सों में विभाजित हो गया. पूर्वी पंजाब भारत में आया, जबकि पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान में चला गया. इसके दौरान सिंधु नदी घाटी और इसकी नहरों का भी बंटवारा किया गया. इससे मिलने वाले जल के लिए पाकिस्तान पूरी तरह भारत पर निर्भर था.पानी के प्रवाह को बनाए रखने के उद्देश्य से 20 दिसंबर 1947 को पूर्वी और पश्चिमी पंजाब के चीफ इंजीनियरों के बीच एक समझौता हुआ. जिसमें तय हुआ कि देश के विभाजन से पहले निर्धारित निश्चित जल का हिस्सा भारत 31 मार्च 1948 तक पाकिस्तान को देता रहेगा. समझौता खत्म होने के बाद भारत ने 1 अप्रैल 1948 को दो नहरों का पानी रोक दिया, जिससे पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में लाखों एकड़ कृषि भूमि के लिए सिंचाई जल मिलना काफी मुश्किल हो गया.हालांकि, दोनों देशों के बीच बाद में हुए समझौते के बाद भारत पानी छोड़ने पर सहमत हो गया. रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने 1951 में टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व अध्यक्ष को भारत बुलाया. वह पाकिस्तान भी गए. अमेरिका वापस लौटने के बाद लिलियंथल ने सिंधु नदी घाटी जल बंटवारे पर एक आर्टिकल लिखा. इस आर्टिकल को तत्कालीन विश्व बैंक प्रमुख डेविड ब्लैक ने भी पढ़ा, जो लिलियंथल के मित्र थे. लेख पढ़ने के बाद डेविड ब्लैक ने भारत और पाकिस्तान के राष्ट्र प्रमुखों से संपर्क किया. इसके बाद दोनों देशों के बीच इस संबंध में बैठकों का दौर शुरू हुआ. संधि के अनुसार, भारत को पूर्वी नदियों – रावी, ब्यास और सतलुज का पानी मिलता है, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी मिलता है. यह संधि पाकिस्तान के लिए इसलिए फायदेमंद है, क्योंकि इन नदियों से कुल जल प्रवाह का लगभग 80 प्रतिशत उसे प्राप्त होता है, जो पाकिस्तान में विशेष रूप से पंजाब और सिंध प्रांतों में कृषि के लिए महत्वपूर्ण है. विश्व बैंक के अनुसार, इस संधि ने सिंधु नदी प्रणाली के निष्पक्ष और सहकारी प्रबंधन के लिए एक रूपरेखा तैयार की, जो भारत और पाकिस्तान दोनों में कृषि, पेयजल और उद्योग के लिए जरूरी है. संधि में नदी और उसकी सहायक नदियों के जल के न्यायसंगत बंटवारे के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोनों देश अपनी जल आवश्यकताओं को पूरा कर सकें. पाकिस्तान की 80% खेती योग्य भूमि यानी लगभग 16 मिलियन हेक्टेयर सिंधु नदी प्रणाली के पानी पर निर्भर है. इस पानी का 93% हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो देश की कृषि के लिए मुफीद है. सिंधु जल संधि 237 मिलियन से अधिक लोगों का भरण-पोषण करती है, जिसमें पाकिस्तान की सिंधु बेसिन की आबादी का 61% हिस्सा है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तीन नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी पर बहुत हद तक निर्भर करती है. कपड़ा से लेकर चीनी और कृषि से लेकर उद्योग तक, सिंधु जल संधि देश के आर्थिक चक्र को गतिमान रखने में प्रमुख भूमिका निभाती है. यह संधि भारत को सिंधु, झेलम और चिनाब पर जलाशय बांध बनाने से रोकती है. हालांकि, भारत जलविद्युत परियोजनाएं विकसित कर सकता है. इसका मतलब है कि परियोजनाएं पानी के प्रवाह को बदल नहीं सकती हैं या इसे बाधित नहीं कर सकती हैं. संधि को निलंबित करने का मतलब है कि भारत इन प्रतिबंधों का पालन नहीं कर सकता है, और पानी के प्रवाह को रोकने के लिए जलाशय बांधों का निर्माण शुरू कर सकता है. इन नदियों पर बड़े जलाशय बनाने में कई साल लग सकते हैं. पारिस्थितिकी प्रभाव को देखते हुए इस तरह की चीज को सफल बनाने के लिए व्यापक सर्वेक्षण और धन की आवश्यकता होगी. भारत सरकार के सिंधु जल संधि निलंबित करने के फैसले पर पाकिस्तान की तरफ से प्रतिक्रियाएं भी आई हैं. पूर्व पाकिस्तानी राजनयिक अब्दुल बासित ने डॉन न्यूज से बातचीत में कहा कि भारत सिंधु जल संधि पर एकतरफा निर्णय नहीं ले सकता है. उन्होंने कहा कि भारत ने संधि निलंबित करने का निर्णय ले लिया है, लेकिन सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी रोकने के लिए उसके पास इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है. उनका कहना है कि पाकिस्तान सरकार को भी फौरी तौर पर ठोस फैसले लेने होंगे और विश्व बैंक को रिपोर्ट करना चाहिए, जिसने सिंध में मध्यस्थता की थी.वहीं, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक डार ने कहा कि भारत पहले ही सिंधु जल संधि खत्म करना चाह रहा है और पानी रोकने के लिए कुछ वाटर रिजर्व भी बनाए हैं. उन्होंने कहा कि भारत इस संधि का पालन करने के लिए बाध्य है, क्योंकि विश्व बैंक भी इसमें शामिल है. भारत इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग से अपने रक्षा, नौसेना और वायु सलाहकारों को वापस बुलाएगा. साथ ही संबंधित उच्चायोगों में ये पद निरस्त माने जाएंगे. इसके अलावा सेवा सलाहकारों के 5 सहायक कर्मचारियों को भी दोनों उच्चायोगों से वापस बुलाया जाएगा.”इसके साथ ही भारत ने पाकिस्तान के साथ राजनयिक संबंधों को लेकर फैसला लेते हुए उच्चायोगों में मौजूदा संख्या कर्मचारियों और अधिकारियों की संख्या को 55 से घटाकर 30 कर दिया जाएगा. ये निर्णय 1 मई 2025 से लागू होगा.इस तरह से कहा जाए तो भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद अपनी पाकिस्तान नीति में एक साहसिक बदलाव किया है. इसमें कूटनीतिक और आर्थिक रूप से इस्लामाबाद को अलग-थलग करने के लिए बड़े कदम उठाए गए हैं. सिंधु जल संधि को निलंबित करके और सीमा पार लोगों के बीच संपर्क को रोककर भारत ने यह संकेत दे दिया है कि राज्य प्रायोजित आतंकवाद अब ठोस परिणाम लाएगा. इस तरह से कहा जाए तो भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद अपनी पाकिस्तान नीति में एक साहसिक बदलाव किया है. इसमें कूटनीतिक और आर्थिक रूप से इस्लामाबाद को अलग-थलग करने के लिए बड़े कदम उठाए गए हैं. सिंधु जल संधि को निलंबित करके और सीमा पार लोगों के बीच संपर्क को रोककर भारत ने यह संकेत दे दिया है कि राज्य प्रायोजित आतंकवाद अब ठोस परिणाम लाएगा. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*