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पलायन के बाद बुजुर्गों की पीड़ा को दर्शाती फिल्म

25/04/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/11/Video-60-sec-UKRajat-jayanti.mp4

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

पहाड़ पर रहने वाले लोगे ही बता सकते है। कहते हैं पहाड़ का पानी और जवानी पहाड़ के काम नही आती।
उत्तराखंड अपनी नैसर्गिक सौंदर्यता के लिए के लिए जाना जाता है। जिसमें एक ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और
दूसरी ओर कल-कल बहती नदियां इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं। यह राज्य हमेशा से आपदाओं
की चपेट में रहा है और कई सुंदर आंदोलनों का भी।जल, जंगल, ज़मीन के लिए लड़ने वाली महिलाओं ने
चिपको आंदोलन दिया, तो वहीं कई आंदोलनकारियों की वजह से उत्तराखंड को एक राज्य का दर्जा भी
प्राप्त हुआ। सन 2000 में आज ही के दिन उत्तराखंड को राज्य का दर्जा मिला था। विनोद कापड़ी (जन्म 15
अगस्त 1972) हालांकि यह मूल निवासी उत्तराखंड के हैं। उनके पिता आर्मी में थे, जो देश भर में अलग-
अलग जगहों पर तैनात थे। विनोद कापड़ी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा आंध्र प्रदेश के केंद्रीय विद्यालय ,
सिकंदराबाद में की। उसके बाद उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई जम्मू और कश्मीर , उधमपुर , सिलीगुड़ी,
पश्चिम बंगाल और बरेली, उत्तर प्रदेश में पूरी की। एक लेखक, पूर्व टीवी पत्रकार और पुरस्कार विजेता
फिल्म निर्माता हैं। उन्होंने 2014 में फिल्म “ कैन्ट टेक दिस शिट एनीमोर” के लिए प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार
जीता। उन्होंने " मिस टनकपुर हाजिर हो " (2015) के साथ अपनी फीचर फिल्म की शुरुआत की – एक
सामाजिक-कानूनी व्यंग्य जिसे व्यापक आलोचनात्मक प्रशंसा मिली। 2018 में वैश्विक स्तर पर रिलीज़ हुई
उनकी दूसरी फीचर फिल्म " पीहू " को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में व्यापक रूप से सराहा गया
है। पहले कोविड लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों की दिल दहला देने वाली यात्रा के बारे में उनकी
शक्तिशाली डॉक्यूमेंट्री फिल्म " 1232 किलोमीटर " (2021) ने जबरदस्त आलोचनात्मक प्रशंसा अर्जित की
और राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। पाइरे (फिल्म) , उनकी नवीनतम फिल्म है जिसका आधिकारिक प्रतियोगिता
खंड में 28वें तेलिन ब्लैक नाइट्स फिल्म फेस्टिवल में विश्व प्रीमियर हुआ था, जहां यह प्रतियोगिता श्रेणी में
एकमात्र फिल्म थी और इसने सर्वश्रेष्ठ फिल्म PÖFF ऑडियंस अवार्ड जीता। पाइरे (फिल्म) 16वें बेंगलुरु
अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में उद्घाटन फिल्म थी, जिसने इसके भारतीय प्रीमियर को चिह्नित किया, और
एशियाई सिनेमा प्रतियोगिता खंड में जूरी विशेष उल्लेख पुरस्कार जीता। यह फिल्म एशियाई सिनेमा
प्रतियोगिता खंड में जूरी विशेष उल्लेख पुरस्कार भी जीत चुकी है। मूव फिल्म फेस्टिवल, न्यूयॉर्क इंडियन
फिल्म फेस्टिवल और इमेजिन इंडिया फिल्म फेस्टिवल में कई श्रेणियों में नामांकन प्राप्त हुआ है।कई निर्देशक
सामाजिक और मानवीय मुद्दों को लेकर दिल को छू लेने वाली फिल्में बनाते हैं। इन्हीं में से एक निर्देशक
विनाेद कापड़ी भी हैं। पत्रकार के रूप में करियर शुरू करने के बाद वह फिल्म निर्देशन की दुनिया में आए।
अपने करियर में अब तक चुनिंदा फिल्में बनाई हैं, जिनकी चर्चा खूब हुई है। हाल ही में उनकी नई फिल्म
‘पायर’ भी चर्चा में हैराष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता विनोद कापड़ी द्वारा निर्देशित उनकी फिल्म
'पायर' में उन्होंने दो स्थानीय निवासियों, रिटायर्ड भारतीय सेना के बुजुर्ग सैनिक पदम सिंह और किसान
हीरा देवी को कास्ट किया है. इन दोनों किसी ने भी पहले कभी किसी फिल्म में एक्टिंग नहीं की. दोनों
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग तहसील पुरानाथल के रहने वाले हैं. सिनेमा और भारत के
इतिहास में यह पहली बार है कि दो 80 वर्षीय गैर अभिनेता इस पुरस्कार के लिए नामांकित हुए हैं. यह
भी एक बड़ी उपलब्धि है कि जिन्होंने कभी फिल्म नहीं देखी और फिल्म दुनिया के बारे में ज्यादा नहीं
जानते वे न्यूयॉर्क इंडियन फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्टर और एक्ट्रेस के लिए नामांकित किए गए हैं.

उत्तराखंड के एक गांव में रहने वाले 80 साल के पदम सिंह कापड़ी और 70 वर्षीय हीरा देवी. 20 जून से
न्यूयॉर्क में आयोजित होने वाले 25वें न्यूयॉर्क भारतीय फिल्म महोत्सव पुरस्कारों के लिए बेस्ट एक्ट्रेस और
बेस्ट एक्टर के लिए दोनों को नामांकित किया गया है. पिछले साल जयदीप अहलावत और सान्या मल्होत्रा
​​ने 'थ्री ऑफ अस' और 'मिसेज' के लिए यह पुरस्कार जीता था. 'पायर' दुनिया भर की फिल्मों के साथ जीत
की होड़ में है. उत्तराखंड में बनी इस फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर 28वें तेलिन ब्लैक नाइट्स फिल्म फेस्टिवल में
हुआ था, जहां इसने बेस्ट फिल्म व्यूवर पुरस्कार जीता था. 16वें बेंगलुरु अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में
विशेष जूरी पुरस्कार और हाल ही में 24वें इमेजिन इंडिया इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल पुरुस्कारों में बेस्ट
फिल्म और बेस्ट डायरेक्टर समेत 6 नॉमिनेशन मिले थे. यह एक फेयरीटेल की तरह है जो बहुत खास है.
इसके लिए मैं बहुत खुश भी हूं, न्यूयॉर्क फिल्म फेस्टिवल संयुक्त राज्य अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित फिल्म
समारोहों में से एक है. इसलिए हम काफी खुश हैं और हमें लगता है कि यह फिल्म और इसके 80 वर्षीय
एक्टर और एक्ट्रेस के लिए सम्मान की बात है. विनोद कापड़ी ने कहा, 'हिंदी फिल्म एक बुजुर्ग कपल की
सच्ची कहानी से प्रेरित है, जिनसे कापड़ी की मुलाकात 2017 में उत्तराखंड के पलायन से प्रभावित मुनस्यारी
गांव में हुई थी. कपल की केमिस्ट्री ने उन पर गहरा प्रभाव डाला था. जिसके बाद उन्हें पायर बनाने का
आइडिया आया. पायर' का म्यूजिक माइकल डैना ने दिया है जिन्होंने 'लाइफ ऑफ पाई' का म्यूजिक दिया
था और इसके लिए ऑस्कर जीता था. इनके अलावा दिग्गज भारतीय गीतकार गुलजार ने भी फिल्म में एक
एक गाना लिखा है. 25वां न्यूयॉर्क इंडियन फिल्म फेस्टिवल 20 से 23 जून तक चलेगा.  टैल्लिन में ये चुनी
गई अकेली भारतीय फिल्म है। इस फिल्म को कंपीटिशन की केटेगरी में रखा गया है। पायर उत्तराखंड के
हिमालय में बनी दो बुजुर्गों की प्रेम कहानी को दर्शाता है। इस फिल्म में पदम सिंह और हीरा देवी लीड रोल
में है। दोनों ही पिखोरागढ़ जिले के बेरीनाग तहसील के रहने वाले है।इस फिल्म के लिए ऑस्कर विजेता
संगीतकार माइकल डैना ने संगीत बनाया। इसके अलावा बहु-पुरस्कार विजेता जर्मन संपादक पेट्रीसिया
रोमेल ने भी संगीत में योगदान दिया और भारतीय दिग्गज गुलजार ने ‘पायर’ के लिए सुंदर सा गीत
लिखा। विनोद कापड़ी ने खुशी जाहिर करते हुए इन तीनों महान दिग्गजों का उनके योगदान के लिए
शुक्रिया अदा किया। बता दें कि इस फिल्म के लिए गुलजार ने कोई भी फीस लेने से इनकार कर दिया।फिल्म
‘पायर’ सच्ची कहानी पर आधारित है। साल 2017 में विनोद को मुनस्यारी के एक गांव में बुजुर्ग जोड़ा
मिला था। उसी जोड़े के की कहानी फिल्म में दर्शाई गई है। इस फिल्म में 80 साल के बुजुर्ग जोड़े की एक
बेहद ही अनोखी और दिल दहला देने वाली प्रेम कहानी को दिखाया गया है।फिल्म के अवार्ड जीतने पर
सीनियर जर्नलिस्ट साक्षी जोशी लिखती हैं, “मेरे रोंगटे खड़े हो गए ऑडियंस चॉइस अवार्ड जीतना जहां
फिल्म देखने आने वाले लोग फिल्म के लिए वोट करने का भी प्रयास करते हैं… एक बड़ी बात है. पायर
फिल्म लोगों का दिल जीत लिया. आपको साधुवाद विनोद कापरी, बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत गर्व है तुम
पर उत्तराखंड में लगातार हो रहे पलायन से खाली हो चुके गांव और उनमें रह रहे बुजुर्गों की व्यथा को
दर्शाती फिल्म चर्चाओं में है. क्योंकि, यह फिल्म जहां पलायन के बाद खाली हो चुके गांवों की स्थिति को
दर्शाती है तो वहीं इसी पृष्ठभूमि में एक बुजुर्ग दंपत्ति की सच्ची कहानी है. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे
मुड़कर नहीं देखा और धीरे-धीरे वह एंकर, निर्माता, फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक के रुप में उभरकर
सबके सामने आए। फिल्मकार विनोद कापड़ी की ओर से निर्मित फिल्म पायर को तेलिन ब्लैक नाइट्स
फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ ऑडियंस अवार्ड मिला है.. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून*
*विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

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