• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar
No Result
View All Result

अखंड भारत के बड़े पक्षधर थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी

23/06/25
in उत्तराखंड, देहरादून
Reading Time: 1min read
11
SHARES
14
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

भारत माता के इस वीर पुत्र का जन्म 6 जुलाई 1901 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. इनके पिता सर
आशुतोष मुखर्जी बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में प्रसिद्ध थे. कलकत्ता विश्वविद्यालय से
स्नातक होने के पश्चात श्री मुखर्जी 1923 में सेनेट के सदस्य बने. अपने पिता की मृत्यु के पश्चात, 1924 में
उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया. 1926 में उन्होंने इंग्लैंड के लिए प्रस्थान
किया जहाँ लिंकन्स इन से उन्होंने 1927 में बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की. विश्व का सबसे युवा कुलपति होने का
सम्मान प्राप्त किया. श्री मुखर्जी 1938 तक इस पद को शुशोभित करते रहे. श्याम प्रसाद मुखर्जी के पिता की एक
शिक्षाविद के रूप में लोकप्रियता भी खूब थे। डॉक्टर मुखर्जी की पढ़ाई लिखाई बेहतर तरीके से हुई थी। 1917 में
उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और 1921 में बीए की उपाधि प्राप्त कर चुके थे। 1923 में लॉ की उपाधि
अर्जित करने के बाद वे विदेश चले गए और 1926 में इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। श्याम प्रसाद मुखर्जी
शिक्षा के क्षेत्र में लगातार कार्य करते रहें। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति बन
गए। भारतमाता का ये सपूत कश्मीर तो चला गया लेकिन ज़िंदा वापस नहीं लौट सका. अपने कार्यकाल में उन्होंने
अनेक रचनात्मक सुधार किये तथा इस दौरान 'कोर्ट एंड काउंसिल ऑफ़ इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस बैंगलोर'
तथा इंटर यूनिवर्सिटी बोर्ड के सक्रिय सदस्य भी रहे.श्यामाप्रसाद मुखर्जी नेहरू की पहली सरकार में मंत्री थे. जब
नेहरू-लियाक़त पैक्ट हुआ तो उन्होंने और बंगाल के एक और मंत्री ने इस्तीफ़ा दे दिया. उसके बाद उन्होंने जनसंघ
की नींव डाली. आम चुनाव के तुरंत बाद दिल्ली के नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस और जनसंघ में बहुत कड़ी टक्कर
हो रही थी. इस माहौल में संसद में बोलते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया कि वो
चुनाव जीतने के लिए वाइन और मनी का इस्तेमाल कर रही है. विडम्बना यह है कि तात्कालीन सत्ता के खिलाफ
जाकर सच बोलने की जुर्रत करने वाले डॉ. मुखर्जी को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, और उससे भी
बड़ी विडम्बना की बात ये है कि आज भी देश की जनता उनकी रहस्यमयी मौत के पीछे की सच को जान पाने में
नाकामयाब रही है.डॉ. मुखर्जी इस प्रण पर सदैव अडिग रहे कि जम्मू एवं कश्मीर भारत का एक अविभाज्य अंग है.
उन्होंने सिंह-गर्जना करते हुए कहा था कि, "एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान, नहीं चलेगा- नही
चलेगा. समान नागरिक संहिता बनाने की बात करने वालों ने भी कभी पलट कर ये नहीं जानना चाहा की किस ने
और क्यों मारा कश्मीर के रक्षक श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी को. उस समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में
यह प्रावधान किया गया था कि कोई भी भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश
नहीं कर सकता. डॉ. मुखर्जी इस प्रावधान के सख्त खिलाफ थे.उनका कहना था कि, "नेहरू जी ने ही ये बार-बार

ऐलान किया है कि जम्मू व कश्मीर राज्य का भारत में 100% विलय हो चुका है, फिर भी यह देखकर हैरानी होती
है कि इस राज्य में कोई भारत सरकार से परमिट लिए बिना दाखिल नहीं हो सकता. मैं नही समझता कि भारत
सरकार को यह हक़ है कि वह किसी को भी भारतीय संघ के किसी हिस्से में जाने से रोक सके क्योंकि खुद नेहरू
ऐसा कहते हैं कि इस संघ में जम्मू व कश्मीर भी शामिल है. उन्होंने इस प्रावधान के विरोध में भारत सरकार से
बिना परमिट लिए हुए जम्मू व कश्मीर जाने की योजना बनाई. इसके साथ ही उनका अन्य मकसद था वहां के
वर्तमान हालात से स्वयं को वाकिफ कराना क्योंकि जम्मू व कश्मीर के तात्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला की
सरकार ने वहां के सुन्नी कश्मीरी मुसलमानों के बाद दूसरे सबसे बड़े स्थानीय भाषाई डोगरा समुदाय के लोगों पर
असहनीय जुल्म ढाना शुरू कर दिया था.1950 के आसपास ईस्ट पाकिस्तान में हिन्दुओं पर जानलेवा हमले शुरु हो
गये. करीब 50 लाख हिन्दू ईस्ट पाकिस्तान को छोड़ भारत वापस आ गए. हिन्दुओं की यह हालत देखकर मुखर्जी
चाहते थे कि देश पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए. वह कुछ कहते इससे पहले जवाहरलाल नेहरु और
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने समझौता कर लिया था. समझौते के मुताबिक दोनों देश के
रिफ्यूजी बिना किसी परेशानी के अपने-अपने देश आ जा सकते थे. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नेहरु जी की यह बात
बिल्कुल पसंद नहीं आई. उन्होंने तुरंत ही कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफ़ा देते ही उन्होंने रिफ्यूजी की मदद
के काम में खुद को झोंक दिया.आख़िरकार कश्मीर को अलग कर दिया गया. उसे अपना एक नया झंडा और नई
सरकार दे दी गई. एक नया कानून भी जिसके तहत कोई दूसरे राज्य का व्यक्ति वहां जाकर नहीं बस सकता. सब
कुछ खत्म हो चुका था, लेकिन मुखर्जी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे. 'एक देश में दो विधान, दो
प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे' के नारे के साथ वह कश्मीर के लिए निकल पड़े. नेहरु को इस बात की खबर हुई
तो उन्होंने हर हाल में मुखर्जी को रोकने का आदेश जारी कर दिया. उन्हें कश्मीर जाने की इजाजत नहीं थी. ऐसे में
मुखर्जी के पास गुप्त तरीके से कश्मीर पहुंचने के सिवा कोई दूसरा विकल्प न था. वह कश्मीर पहुंचने में सफल भी
रहे. मगर उन्हें पहले कदम पर ही पकड़ लिया गया. उन पर बिना इजाजत कश्मीर में घुसने का आरोप लगा. एक
अपराधी की तरह उन्हें श्रीनगर की जेल में बंद कर दिया गया.कुछ वक्त बाद उन्हें दूसरी जेल में शिफ्ट कर दिया
गया. कुछ वक्त बाद उनकी बीमारी की खबरें आने लगी. वह गंभीर रुप से बीमार हुए तो उन्हें अस्पताल ले जाया
गया. वहां कई दिन तक उनका इलाज किया गया. माना जाता है कि इसी दौरान उन्हें 'पेनिसिलिन' नाम की एक
दवा का डोज दिया गया. चूंकि इस दवा से मुखर्जी को एलर्जी थी, इसलिए यह उनके लिए हानिकारक साबित हुई.
कहते हैं कि डॉक्टर इस बात को जानते थे कि यह दवा उनके लिए जानलेवा है. बावजूद इसके उन्हें यह डोज दिया
गया. धीरे-धीरे उनकी तबियत और खराब होती गई. अंतत: 23 जून 1953 को उन्होंने हमेशा के लिए अपनी आंखें
बंद कर ली. मुखर्जी की मौत की खबर उनकी मां को पता चली तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने नेहरु से गुहार
लगाई कि उनके बेटे की मौत की जांच कराई जाये. उनका मानना था कि उनके बेटे की हत्या हुई है. यह गंभीर
मामला था, लेकिन नेहरू ने इसे अनदेखा कर दिया.हालाँकि, कश्मीर में उनके किये इस आन्दोलन का काफी फर्क
पड़ा और बदलाव भी हुआ. इस कड़ी में, नेहरु का रवैया लोगों के गले से नहीं उतरा. वह मुखर्जी की मौत के वाजिब

कारण को जानना चाहते थे. लोगों ने आवाजें भी उठाई, लेकिन सरकार के सामने किसी की एक नहीं चली. नतीजा
यह रहा कि उनकी मौत का रहस्य उनके साथ ही चला गया. इतने सालों बाद भी किसी के पास जवाब नहीं है कि
उनकी मौत के पीछे की असल वजह क्या थी? डॉ. मुखर्जी अपने सिद्धांतों को लेकर अटल थे। उन्होंने जम्मू-
कश्मीर को लेकर अपने विचारों पर कभी समझौता नहीं किया और प्रजा परिषद पार्टी के बुलावे पर अगस्त 1952
में वह जम्मू में एक सभा में शामिल हुए और ‘एक देश में दो विधान दो प्रधान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे’ का नारा
दिया।डॉ. मुखर्जी को केवल जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान लागू करने की नीति के समर्थक के तौर पर ही नहीं
देखा जाना चाहिए। शिक्षा, समाज, संस्कृति और राजनीति में भी उनका योगदान बेहद उल्लेखनीय रहा है। उनकी
राजनीतिक यात्रा कलकत्ता विश्वविद्यालय क्षेत्र से 1929 में विधान परिषद से प्रारंभ हुई। बंगाल के हितों की रक्षा के
लिए वे फजलुल सरकार में वित्त मंत्री रहे। भारत सरकार के उद्योग मंत्री रहते हुए उन्होंने 6 अप्रैल, 1948 को
उद्योग नीति लागू की। तीन भागों में उद्योगों का विभाजन कर भारत में उद्योगों का विकास उनका प्रयास था।
औद्योगिक वित्त विकास निगम की स्थापना, ऑल इंडिया हैंडीक्राफ्ट, ऑल इंडिया हैंडलूम बोर्ड, खादी एवं ग्रामोद्योग
बोर्ड, चितरंजन रेलवे कारखाना, हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड, दामोदर नदी घाटी बहुउद्देशीय परियोजना सभी डॉ
श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संकल्प के साकार रूप हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के विभाजन के
समय, पाकिस्तान एवं पूर्वी पाकिस्तान पर विफल नीति के विरोध में उद्योग मंत्री से त्यागपत्र देकर वे भारत में
आए लाखों शरणार्थियों की सेवा में जुट गए। हमें कांग्रेस के राष्ट्रवादी विकल्प की आवश्यकता है , इस संकल्प को
पूर्ण करने के लिए उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ. श्यामा प्रसाद जनसंघ के
प्रथम अध्यक्ष बने। प्रथम लोकसभा चुनाव में साउथ कोलकाता से संसद सदस्य भी चुने गए।वर्ष 1934 से 1938
तक कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे युवा कुलपति होने का श्रेय भी उनके ही नाम है। इसी पद पर उन्होंने दो
कार्यकाल रहते हुए कलकत्ता विश्वविद्यालय को प्रगति की ऊंचाइयों पर पहुंचाया। ब्रिटिश इंडिया के प्रतीक 'ब्रिटिश
मोहर' को बदलकर उस स्थान पर 'खिलते हुए कमल में श्री अंकित' कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतीक चिह्न
बनाया। उनकी शिक्षा दृष्टि उनके ही शब्दों में मैं ऐसे व्यक्ति बनाना चाहता हूं जो नए बंगाल के योग्य नेता बनें।
इसी उद्देश्य से उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में अनेक नए पाठ्यक्रम प्रारंभ किए। साल 1943 में आए भीषण
अकाल में सरकार के निकम्मे एवं द्वेषपूर्ण व्यवहार को समाज के सामने लाते हुए स्वयं सेवा के मैदान में उतर
गए । बंगाल रिलीफ कमेटी बनाकर, साथ ही तत्कालीन अन्य सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं को उन्होंने साथ
लेकर यह सेवा कार्य किया। मुफ्त रसोई, निशुल्क अनाज वितरण, सस्ती कैंटीन, अनाज की दुकानें, आवास, वृद्धों
एवं बच्चों के लिए दूध एवं दवाइयों का वितरण कमेटी के माध्यम से कराया। देश के विभाजन की त्रासदी को
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी आंखों से देखा था। बंगाल के कलकत्ता, नोआखाली सहित अनेक स्थानों के दंगों में
मानवता कराह उठी थी। ग्रेट कलकत्ता के नाम से कुख्यात नरसंहार आज भी लोगों में सिहरन पैदा करता है। समाज
का मनोबल बढ़ाने, उचित मार्गदर्शन करने एवं पीड़ित मानवता की सेवा करने के लिए अस्वस्थ होते हुए भी उन्होंने
सभी स्थानों का प्रवास किया।भारत विभाजन के घोर विरोधी होने के बाद भी जब उनको लगा कि यदि हमने बंगाल

के विभाजन की बात नहीं की तब संपूर्ण बंगाल ही हमारे हाथ से चला जाएगा। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वे
भारतीय नेताओं के साथ-साथ अंग्रेज अधिकारियों से भी मिले। आज के भारत में, बंगाल उन्हीं के संकल्प का
परिणाम है। उनको नव बंगाल का 'शिल्पी' भी कहा जाता है। एकजुट भारत की उनकी इस सोच पर आगे कदम
बढ़ाने में हमें 70 वर्ष से भी अधिक का समय लग गया। प्रधानमंत्री के कुशल नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की
सरकार डॉ. मुखर्जी की इस सोच को वास्तविकता में बदल रही है। एक भारत, श्रेष्ठ भारत के नारे के माध्यम से
सरकार देश को एक सूत्र में पिरोने का काम कर रही है। जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान के अंतर्गत लाने के दो
वर्ष पूरे होने को हैं। मोदी सरकार की नीतियों में डॉ. मुखर्जी की आकांक्षाओं की झलक स्पष्ट देखी जा सकती है।
नई शिक्षा नीति को लागू करना डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की शिक्षा अभिव्यक्ति ही है। वह दिन दूर नहीं जब
भारतीय जनसंघ, जिसने बाद में भारतीय जनता पार्टी का स्वरूप लिया, के संस्थापक डॉ. मुखर्जी की राष्ट्रीय एकता
और अखंडता की भावना सशक्त होकर भारत को विश्व के श्रेष्ठ राष्ट्र के रूप में स्थापित करेगी। जहां हुए बलिदान
मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है" ये गगनभेदी नारा जब भी गूंजता है,हर राष्ट्रभक्त के रौंगटे खड़े हो जाते हैं, भुजाएं
फड़कने लगती हैं तथा लहू में राष्ट्रभक्ति का ज्वार लावा बनकर दौड़ने लगता है. जिन अमर हुतात्मा श्यामा प्रसाद
मुखर्जी के नाम पर हम ये नारा लगता हैं, आज उन्हीं श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि है. कश्मीर को पूरी तरह
से भारत का हिसा बनाने के लिए तथा धारा 370 के खिलाफ आज के ही दिन डॉ. श्यामा मुखर्जी देश की
धर्मनिरपेक्ष राजनीति की बलि चढ़ा दिए गए थे.दूसरे शब्दों में कहें तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी को राष्ट्रप्रेम की ऐसी
क्रूर सजा मिली थी कि आज तक देश को अपने इस आदर्श की मृत्यु का रहस्य जान्ने से वंचित रखा गया है.
नकली धर्मनिरपेक्ष राजनीति की आंधी तथा हिंदू विरोध की सुनामी में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर की रक्षा के
लिए स्वयं को स्वाहा कर दिया था. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को इसलिए रहस्यमय से मौत दे दी गई थी क्योंकि वह
कश्मीर में धारा 370 लगाने का ज्वलंत विरोध कर रहे थे और जब देश की सेक्यूलर सत्ता नहीं मानी तो उन्होंने
कश्मीर कूच का एलान कर दिया था.आज कश्मीर की अखंडता के उस महान रक्षक अमर बलिदानी श्यामा प्रसाद
मुखर्जी को उनके बलिदान दिवस पर नमन करते हुए उनकी गाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प
है.। को शत शत नमन! अभिवंदन! *लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।*

Share4SendTweet3
https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/10/yuva_UK-1.mp4
Previous Post

पंचायत चुनाव की सभी तैयारियों को त्रुटिरहित समय पर करें पूर्ण : जिला निर्वाचन अधिकारी

Next Post

हेली सेवा का पहला चरण संपन्न, अब मानसून खत्म होने के बाद फिर से शुरू होगी

Related Posts

उत्तराखंड

जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर टाउनहॉल कार्यक्रम आयोजित किया गया

November 15, 2025
16
उत्तराखंड

प्रो. ऋतु रखोलिया को सम्मानित किया गया

November 15, 2025
10
उत्तराखंड

मुख्यमंत्री ने देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल में वेणु अग्रहारा ढ़ींगरा की पुस्तक लीडिंग लेडीज ऑफ इण्डिया पुस्तक का विमोचन किया

November 15, 2025
6
उत्तराखंड

नारायण नगर महाविद्यालय में जनजातीय गौरव दिवस अत्यंत उत्साह के साथ मनाया

November 15, 2025
9
उत्तराखंड

कालेज में संपन्न हुई करियर गाइडेंस एवं शारीरिक शिक्षा कार्यशाला

November 15, 2025
9
उत्तराखंड

अटल उत्कृष्ट पीएम श्री राजकीय इंटर कॉलेज देवाल में खंड स्तरीय संस्कृत प्रतियोगिता का आयोजन

November 15, 2025
6

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    67503 shares
    Share 27001 Tweet 16876
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    45757 shares
    Share 18303 Tweet 11439
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    38034 shares
    Share 15214 Tweet 9509
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    37426 shares
    Share 14970 Tweet 9357
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    37305 shares
    Share 14922 Tweet 9326

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर टाउनहॉल कार्यक्रम आयोजित किया गया

November 15, 2025

प्रो. ऋतु रखोलिया को सम्मानित किया गया

November 15, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.