• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड पहाड़ों में बुरांश लालिमा रोजगार बढ़ाने में हो रहा सहायक

16/05/25
in उत्तराखंड, देहरादून
Reading Time: 1min read
0
SHARES
19
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

देवभूमि की सुंदरता में चार चांद लगाने वाला बुरांश पर्वतीय अंचलों में खिलने लगा है. जिससे पर्वतीय
क्षेत्रों के जंगलों की नजारा बेहद खूबसूरत नजर आ रहा है. जो देवभूमि के लोकगीत, साहित्य, संस्कृति और
सौंदर्य को खुद में समेटे हुए है. औषधीय गुणों से भरपूर बुरांश के फूल को उत्तराखंडी संस्कृति में भी अहम
स्थान रखता है. जिसका वर्णन प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने अपनी कविताओं में भी किया है. उन्होंने
कविताओं में लिखा है कि बुरांश की जैसे कोई दूसरा सुंदर वृक्ष नहीं है. भारत में बुरांश के पेड़ उत्तराखण्ड
और हिमांचल प्रदेश में 1800-3600 मीटर की मध्यम ऊँचाई वाले मध्य हिमालयी क्षेत्र में पाये जाते है।
उत्तराखण्ड सरकार ने बुरांश को राज्य वृक्ष घोषित किया है। नेपाल में बुरांश के फूल को राष्ट्रीय फूल का
औहदा हासिल है। बुराँश सदाबहार पेड़ है। बुराँश के पेड़ भारत के अलावा नेपाल, बर्मा, श्रीलंका, तिब्बत,
चीन, जापान आदि देशों में पाये जाते है। अंग्रेज इसे रोह्डोडेन्ड्रान कहते है। इस पेड़ की विश्व में छःह सौ से
ज्यादा प्रजातियों का पता चल चुका है। प्रजाति और ऊँचाई के आधार पर बुराँश के फूलों का रंग भी अलग-
अलग होता है। सूर्ख लाल, गुलाबी, पीला और सफेद। ऊँचाई बढ़ने के साथ बुराँश का रंग भी बदलता रहता
है। कम ऊँचाई वाले इलाकों में बुराँश के फूल का रंग लाल होता है। जबकि अधिक ऊँचाई वाले इलाकों में
बुराँश के फूल का रंग सफेद होता है।बसंत और फूल एक-दूसरे के पूरक हैं। जहां फूल हैं, वहां बारहों महीने
बसंत है। बसंत है, तो फूल हैं। फूल बसंत ऋतु के द्योतक है। वनों को प्रकृति का श्रृंगार कहा जाता है। वनों के
श्रृंगार से आच्छादित प्रकृति बसंत ऋतु में रंग-बिरंगे फूलों के नायाब गहनों से सज-संवर जाती है। फूलों का
यह गहना प्रकृति के सौंदर्य में चार चांद लगा देता है। फूल को सौन्दर्य, कमनीयता, प्रेम, अनुराग और
मासूमियत का प्रतीक माना जाता है। फूल का रंग उसकी सुन्दरता को बढा़ता है। प्रकृति के हरे परिवेश में
सूर्ख लाल रंग के फूल खिल उठे हों तो यह दिलकश नजारा हर किसी का मन मोह लेता है।उत्तराखण्ड के
हरे-भरे जंगलों के बीच चटक लाल रंग के बुरांश के फूलों का खिलना पहाड़ में बसंत ऋतु के यौवन का
सूचक है। बसंत के आते ही इन दिनों पहाड़ के जंगल बुरांश के सूर्ख लाल फूलों से मानो लद गये है। बुरांश
बसन्त में खिलने वाला पहला फूल है। बुरांश ने धरती के गले को पुष्पाहार से सजा सा दिया है। बुरांश के
फूलने से प्रकृति का सौंदर्य निखर उठा है।बुरांश जब खिलता है तो पहाड़ के जंगलों में बहार आ जाती है।
घने जंगलों के बीच अचानक चटक लाल बुराँश के फूल के खिल उठने से जंगल के दहकने का भ्रम होता है।
जब बुराँश के पेड़ लाल फूलों से ढक जाते है तो ऐसा आभास होता है कि मानो प्रकृति ने लाल चादर ओढ़
ली हो। बुराँश को जंगल की ज्वाला भी कहा जाता है। उत्तराखण्ड के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में
बुराँश की महत्ता महज एक पेड़ और फूल से कहीं बढ़कर है। बुराँश उत्तराखण्ड के लोक जीवन में रचा-बसा
है। बुराँश महज बसंत के आगमन का सूचक नहीं है, बल्कि सदियों से लोक गायकों, लेखकों, कवियों,
घुम्मकड़ों और प्रकृति प्रेमियों की प्रेरणा का स्रोत रहा है। उत्तराखंड के जाने माने लोककवि गिरीश चन्द्र
तिवारी 'गिर्दा' ने भी अपनी रचनाओं में बुरांश की सुंदरता का व्याख्यान किया है. बुरांश के पेड़ को पहाड़
के लोकजीवन में गहरी आत्मीयता मिली हुई है, इसलिए इसे राज्य वृक्ष का गौरव प्राप्त है. देश के पहले
प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने संस्मरणों में बुरांश का सुंदर चित्रण किया है. गढ़वाली और
कुमाऊंनी लोकगीतों और लोककथाओं में भी बुरांश के फूल के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है. बुराँश
उत्तराखण्ड के हरेक पहलु के सभी रंगों को अपने में समेटे है।हिमालय के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन,
प्रियसी की उपमा, प्रेमाभिव्यक्ति, मिलन हो या विरह सभी प्रकार के लोक गीतों की भावाभिव्यक्ति का
माध्यम बुराँश है। उत्तराखण्ड के कई लोक गीत बुराँशके इर्द-गिर्द रचे गये है। विरह गीतों की मुख्य विषय-
वस्तु बुराँश ही है। पहाड़ में बुराँशके खिलते ही कई भूले-बिसरे लोक गीत एकाएक स्वर पा जाते है- ”उ कुमू
य जां एक सा द्यूं प्यार सवन धरती मैं, उ कुमू य जां कुन्ज, बुंरूस, चम्प, चमेलि, दगडै़ फुलनी।”बुराँश का
खिलना प्रसन्न्ता का द्योतक है। बुराँश का फूल यौवन और आशावादिता का सूचक है। प्रेम और उल्लास की
अभिव्यक्ति है। बुराँश का फूल मादकता जगाता है। बुराँश का गिरना विरह और नश्वरता का प्रतीक है।
बुराँश रहित जंगल कितने उदास और भावशून्य हो जाते है। इस पीडा़ को लोकगीतों के जरिये बखूबी
महसूस किया जा सकता है।  बसन्त ऋतु में जंगल को लाल कर देने वाले इस फूल को देखकर नव
विवाहिताओं को मायके और रोजी-रोटी की तलाश में पहाड़ से पलायन करने को अभिशप्त अपने पति की
याद आ जाती है। अपने प्रियतम् को याद कर वह कहती है- ”अब तो बुरांश भी खिल उठा है, पर तुम नहीं
आए।”बुरांश के फूल में हिमालय की विराटता है। सौंदर्य है। शिवजी की शोभा है। पार्वती की झिलमिल
चादर है। शिवजी सहित सभी देवतागण बुराँश के फूलों से बने रंगों से ही होली खेलते है। लोक कवि चारू
चन्द्र पाण्डे ने लिखा यह बुराँश आधारित होली गीत लोक जीवन में बुराँश की गहरी पैंठ को उजागर करता
है- ”बुरूंशी का फूलों को कुम-कुम मारो, डाना-काना छाजि गै बसंती नारंगी। पारवती ज्यूकि झिलमिल
चादर, ह्यूं की परिन लै रंगै सतरंगी। लाल भई छ हिमांचल रेखा, शिवजी की शोभा पिङलि दनिकारी।
सूरजा की बेटियों लै सरग बै रंग घोलि, सारी ही गागरि ख्वारन खिति डारीबुरांश ने लाल होकर भी क्रान्ति
के गीत नहीं गाए। वह हिमालय की तरह प्रशंसाओं से दूर एक आदर्शवादी बना रहा। फिर भी बुरांश ने
लोगों को अपनी महिमा का बखान करने पर मजबूर किया है। बुराँश ने लोक रचनाकारों को कलात्मक
उन्मुक्तता, प्रयोगशीलता और सौंदर्य बोध दिया। होली से लेकर प्रेम, सौंदर्य और विरह सभी प्रकार के लोक
गीतों के भावों को व्यक्त करने का जरिया बुराँश बना।पहाड़ के लोक गीतों में सबसे ज्यादा जगह बुराँश को
ही मिली है। एक पुराने कुमाऊँनी लोक गीत में जंगल में झक खिले बुराँश को देख मॉ को ससुराल से अपनी
बिटिया के आने का भ्रम होता है। वह कहती है – ”वहॉ उधर पहाड़ के शिखर पर बुरूंश का फूल खिल गया
है। मैं समझी मेरी प्यारी बिटिया हीरू आ रही है। अरे! फूले से झक-झक लदे बुरूंश के पेड़ को मैंने अपनी
बिटिया हीरू का रंगीन पिछौडा़ समझ लिया।” गढ़वाल के प्रसिद्व कवि चन्द्रमोहन रतूडी़ ने नायिका के होठों
की लालिमा का जिक्र कुछ यूं किया है – ”चोरिया कना ए बुरासन आंेठ तेरा नाराणा।” यानि – ”बुराँश के
फूलों ने हाय राम तेरे ओंठ कैसे चुरा लिये।” संस्कृत के अनेक कवियों ने बुराँश की महिमा को लेकर श्लोकों
की रचना की है।छायावादी कवि सुमित्रा नन्दन पंत भी बुराँश के चटक रंग से प्रभावित हुए बिना नहीं रह
सके। उन्होंने बुराँश पर यह कुमाऊँनी कविता लिखी थी – ”सार जंगल में त्वीं जस क्वें न्हॉ रें क्वें न्हॉ। फूलन छे
के बुरूंश जंगल जस जली जां। सल्ल छ, दयार छ, पई छ, अंयार छ। सबनाक फागन में पुग्नक भार छ। पे त्वी
में ज्वानिक फाग छ। रंगन में त्यार ल्वे छ, प्यारक खुमार छ।” भावार्थ यह कि – “सारे जंगल में तेरा जैसा
कोई नहीं रे, कोई नहीं। जब तू फूलता है, जंगल के जलने का भ्रम होता है। जंगल में साल है, देवदार है,
पईया है, और अयार समेत विभिन्न् प्रजातियों के पौधें है। सबकी शाखाओं में कलियों का भार है। पर तुझमें
जवानी का फाग है। तेरे रंगों में लौ है, प्यार का खुमार है।”पहाड़ के रोजमर्रा के जीवन में बुराँश किसी
वरदान से कम नहीं है। बुराँश के फूलों का जूस और शरबत बनता है। इसे हृदय रोग और महिलाओं को होने
वाले सफेद प्रदर रोग के लिए रामबाण दवा माना जाता है। बुराँश की पत्तियों को आयुर्वेदिक औषधियों में
उपयोग किया जाता है। बुराँश की लकडी़ स्थानीय कृषि उपकरणों से लेकर जलावन तक सभी काम आती
है। चौडी़ पत्ती वाला वृक्ष होने के नाते बुराँश जल संग्रहण में मददगार है। पहाडी़ इलाकों के जल स्रोतो को
जिंदा रखने में बुराँश के पेडा़े का बडा़ योगदान है। इनके पेडा़े की जडे़ भू-क्षरण रोकने में भी असरदार मानी
जाती है। बुराँश का खिला हुआ फूल करीब एक पखवाड़े तक अपनी चमक बिखेरता रहता है। बाद में इसकी
एक-एक कर पंखुड़िया जमीन पर गिरने लगती है। पलायन के चलते वीरान होती जा रही पहाड़ के गॉवों
की बाखलियों की तरह। दुर्भाग्य से पहाड़ में बुराँश के पेड़ तेजी के साथ घट रहे हैं। अवैध कटान के चलते
कई इलाकों में बुराँश लुप्त होने के कगार पर पहुॅच गया है। नई पौधंे उग नहीं रही है। जानकारों की राय में
पर्यावरण की हिफाजत के लिए बुराँश का संरक्षण जरूरी है। अगर बुराँश के पेड़ों के कम होने की मौजूदा
रफ्तार जारी रही तो आने वाले कुछ सालों के बाद बुराँश खिलने से इंकार कर देगा। नतीजन आत्मीयता के
प्रतीक बुरांश के फूल के साथ पहाड़ के जंगलों की रौनक भी खत्म हो जाएगी। बुरांश सिर्फ पुराने लोकगीतों

में ही सिमट कर रह जाएगा। बसंत ऋतु फिर आएगी। बुरांश विहीन पहाड़ में बसंत के क्या मायने रह
जाएंगे। नीरस और फीका बसंत। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में इस बार बुरांश का फूल अधिक मात्रा में
हुआ है. ऐसे में पौड़ी के जंगलों में बर्बाद हो रहे बुरांश को आजीविका से जोड़ने के लिए सीडीओ पौड़ी ने
प्रयास किए हैं. मुख्य विकास अधिकारी पौड़ी की ओर से जंगलों में अधिक मात्रा में हुए बुरांश को एकत्र
करने वाली महिलाओं को आमदनी कराई जा रही है. साथ ही महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ी
महिलाओं को इसका जूस, जैम और अचार बनाने को कहा गया है. बुरांश के फूलों को व्यावसायिक स्तर पर
उपयोग में लाने के लिये जिले में एक विशेष कार्यक्रम की शुरुआत की गई है. इस पहल के माध्यम से
स्थानीय स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाया गया है.
कार्यक्रम के अंतर्गत जिन क्षेत्रों में बुरांश के फूल अधिक मात्रा में हुए हैं, वहां की महिलाओं द्वारा इन फूलों
का इकट्ठा किया जा रहा है. एकत्रित फूल संबंधित समूहों को उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इनसे जूस, स्क्वैश,
जैम एवं अन्य उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं. यह प्रयास न केवल महिलाओं को आय का स्रोत प्रदान कर रहा
है, बल्कि जिले के प्राकृतिक संसाधनों के सतत और प्रभावी उपयोग को भी बढ़ावा देगा. जानकारी के
अनुसार, बुरांश को लेकर शुरू किए गए कार्यक्रम का उद्देश्य जिले में पाए जाने वाले बुरांश के फूलों का
व्यावसायिक दोहन करना है. इस कार्यक्रम के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को सक्रिय रूप से
शामिल किया जा रहा है. जिन क्षेत्रों में बुरांश प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, वहां की महिलाएं इन फूलों को
एकत्रित कर रही हैं. समूहों को यह कच्चा माल उपलब्ध कराया जा रहा है. इससे तरह-तरह के उत्पाद तैयार
किए जा रहे हैं. उत्तराखंड के राज्य वृक्ष बुरांश का खूबसूरत फूल अपनी खूबसूरती और औषधीय गुणों के
लिए जाना जाता है. बुरांश के फूल से बना रस रक्तचाप को नियंत्रित करने और हृदय को मजबूत बनाने में
सहायक होता है. बुरांश एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है तथा शरीर से विषैले तत्व निकालने में मदद
करता है. इससे इम्यूनिटी मजबूत होती है. बुरांश का जूस पेट संबंधी विकारों को दूर कर पाचन तंत्र को
मजबूत करता है. जानकारों ने बुरांश पर जलवायु परिवर्तन के असर पर चिंता जताई. जानकारों का कहना
है कि बुरांश के पेड़ के फूल के फूलने का पैटर्न बदल रहा है. ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है, टेम्परेचर बढ़ रहा है.
जो बुडिंग होती है वो टेम्परेचर से प्रभावित होती है. टेम्परेचर और प्रेसिपिटेशन दोनों मिलकर जो है बुडिंग
में मदद करता हैं. तो इसका मतलब जब ये दोनों पैटर्न से क्लाइमेट से प्रभावित हो रहे हैं. बता दें कि बुरांश
फूल मूल रूप से हिमालय में पाए जाते हैं. इनमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के कुछ हिस्से
शामिल हैं. इस फूल का सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व है. त्योहारों और अनुष्ठानों में इसका काफी
इस्तेमाल होता है. उत्तराखंड में बुरांश के स्वास्थ्य लाभों के अलावा, इसका सांस्कृतिक महत्व भी है।
रोडोडेंड्रोन फूल नेपाल का राष्ट्रीय फूल और हिमाचल प्रदेश का राज्य फूल है। स्थानीय लोग बुरांश के फूलों
का उपयोग अचार, जैम, सिरप और शहद बनाने के लिए करते हैं। इसके अलावा, पौधे की लकड़ी का
उपयोग खुखरी के हैंडल और उपहार बॉक्स बनाने में किया जाता है, जो ग्रामीण समुदायों के लिए आय का
एक आवश्यक स्रोत है। बुरांश का फूल प्राकृतिक रूप से कई स्वास्थ्यवर्धक पोषक तत्वों से भरा होता है।
आमतौर पर लोग जूस या स्क्वैश के रूप में इसका सेवन करते हैं। इन फूलों के रस से सूजन, लीवर की
बीमारियों, गठिया के दर्द, ब्रोंकाइटिस जैसी समस्याओं में काफी राहत मिलती हैं। इसके अलावा यह फूल
कई प्रकार के कैंसर के विकास को रोकने में भी गुणकारी है। इतना ही नहीं बुरांश के फूल का जूस शरीर में
इंसुलिन का सही संतुलन बनाता है और त्वचा, ह्रदय और लिवर से जुड़ी समस्याओं को ठीक करने के लिए
भी जाना जाता है। हालांकि बुरांश के लिए कहा जाता है की ये कई बार अलग-अलग समय में खिलते हैं,
प्रकाश का ज्यादा होना तथा फाइटोक्रोम की क्रिया भी बुरांश के खिलने की प्रक्रिया को प्रभावित करती
है.फूल खिलना बुरांश के जीवन चक्र का महत्पूर्ण प्रवाह है. प्रकाश से फोटो रिसेप्टर और मेरिस्टम को
एक्टिवेशन मिलता है, फ्लोरिजन और नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस भी इसे प्रभावित करते हैं. जो ऊर्जा चक्र
को भी प्रभावित करते है. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

ShareSendTweet
http://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/02/Video-National-Games-2025-1.mp4
Previous Post

डोईवाला : शहीदों की स्मृति में लगाया रक्तदान शिविर

Next Post

मुख्यमंत्री के हाथों ई-रूपी प्रणाली एवं चार नई कृषि नीतियों का शुभारंभ

Related Posts

उत्तराखंड

“इकोलॉजी और इकोनॉमी के समन्वय” की भावना के अनुरूप ठोस और नवाचारपरक प्रस्ताव तैयार करें: मुख्यमंत्री

June 19, 2025
13
उत्तराखंड

आश्वासन देकर विधायक टम्टा ने कराया मोख तल्ला के ग्रामीणों का आंदोलन स्थगित

June 19, 2025
178
उत्तराखंड

कांग्रेसियों ने दिव्यांग बच्चों संग कैक काटकर वरिष्ठ नेता राहुल गांधी का मनाया जन्मदिन

June 19, 2025
5
उत्तराखंड

गढ़वाल राइफल केंद्र में योगाभ्यास सत्र में 1500 से अधिक जवानों ने किया प्रतिभाग

June 19, 2025
7
उत्तराखंड

राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु के उत्तराखण्ड आगमन पर मुख्यमंत्री धामी और राज्यपाल ने स्वागत किया

June 19, 2025
14
उत्तराखंड

जीवन का मुख्य उद्देश्य भगवान की भक्ति करना: शुकदेव

June 19, 2025
9

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

“इकोलॉजी और इकोनॉमी के समन्वय” की भावना के अनुरूप ठोस और नवाचारपरक प्रस्ताव तैयार करें: मुख्यमंत्री

June 19, 2025

आश्वासन देकर विधायक टम्टा ने कराया मोख तल्ला के ग्रामीणों का आंदोलन स्थगित

June 19, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.