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पीसीएस टॉपर हिमांशु कफल्टिया बच्चों के लिए खोल दी फ्री लाइब्रेरी

30/09/24
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला। मेहनत और लगन सच्ची हो तो किस्मत को भी बदला जा सकता है। ये लाइन पीसीएस टॉपर हिमांशु कफल्टिया पर एक दम फिट

बैठती है। आपको बता दें कि उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की पीसीएस परीक्षा-2016 का रिजल्ट जारी हो गया है। जिसमें

देहरादून के जिला पंचायत अधिकारी हिमांशु कफल्टिया समेत 5 अभ्यर्थी डिप्टी कलेक्टर बने हैं। ओखलकांडा ब्लॉक में तुसराड़

गांव के निवासी हिमांशु ने बैंक में क्लर्क की नौकरी से लेकर डिप्टी कलेक्टर बनने तक का सफर तय किया है। हालांकि ये आसान

नहीं था। उनकी जगह कोई और होता तो सोचता कि सरकारी नौकरी तो कर ही रहे हैं, आगे पढ़ कर कलेक्टर थोड़े ना बन

जाएंगे। पर हिमांशु अपनी क्षमताओं को जानते थे। उन्होंने खूब मेहनत की और सफलता की ऐसी इबारत लिख दी, जो लाखों

युवाओं को प्रेरणा देगी। हिमांशु  नैनीताल  के ओखलकांडा के तुसराड़ गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता जूनियर हाईस्कूल के

रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं, जबकि मां गृहणी है। हिमांशु की प्राइमरी एजुकेशन गांव में ही हुई। आगे की पढ़ाई उन्होंने रुद्रपुर के जवाहर

नवोदय विद्यालय से की। साल 2006 में  कुमाऊं यूनिवर्सिटी  से ग्रेजुएशन किया। बचपन से ही प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते थे।

कई परीक्षाएं भी पास की। दिल्ली के एक बैंक में क्लर्क रहे, एलआईसी में सहायक प्रशासनिक अधिकारी भी बने। पर वो सिविल

सेवा में जाना चाहते थे।मूल रूप से तुषराड गांव ओखलकांडा जनपद नैनीताल के रहने वाले हिमांशु कफल्टिया के पिता घनश्याम

कफल्टिया जूनियर हाईस्कूल के रिटायर्ड प्रधानाचार्य और मां गीता घरेलू महिला हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा वहीं गांव से हुई।

आगे की पढ़ाई उन्होंने रुद्रपुर के जवाहर नवोदय विद्यालय से की। हिमांशु बचपन से ही प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते थे।

साल 2006 में कुमाऊं यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया, साथ ही कई परीक्षाएं भी पास की। दिल्ली के एक बैंक में क्लर्क रहे,

एलआईसी में सहायक प्रशासनिक अधिकारी भी बने लेकिन वे इतने पर भी संतुष्ट नहीं थे क्योंकि वे सिविल सेवा में जाना चाहते

थे। हिमांशु शुरू से ही सिविल सर्विस में जाना चाहते थे। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी बैंक की नौकरी

छोड़ दी और सिविल सर्विस की तैयारी करने लगे। कहावत है न कि अगर मेहनत और लगन सच्ची हो तो किस्मत को भी बदला

जा सकता है। हिमांशु के साथ भी ऐसा ही हुआ। हिमांशु अफसर बनने के लिए तैयारी करते रहे। इस दौरान उनका गुप्तचर

विभाग और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में सेलेक्शन भी हो गया, पर हिमांशु ने ज्वाइन नहीं किया। हिमांशु तीन बार सिविल सेवा के

लिए इंटरव्यू दे चुके थे, पर सेलेक्शन नहीं हुआ। इस असफलता ने हिमांशु को तोड़ा नहीं, बल्कि दोगुने उत्साह से मेहनत करने की

सीख दी। कई बार असफल होने पर जहां लोग टूट जाते हैं वहीं हिमांशु पूरी तैयारी के साथ जुटे रहे। जिसका परिणाम यह हुआ

कि उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा पास की और पीसीएस में टॉप किया। आज वे जिला पंचायत कार्याधिकारी के रूप में कार्यरत

हैं। हिमांशु कहते हैं कि सफलता के लिए निरंतरता और एकाग्रता जरूरी है। अगर ध्यान लगाकर तैयारी की जाए तो असंभव को

संभव किया जा सकता है। एसडीएम बनने के बाद भी हिमांशु अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटे। उन्होंने वंचित बच्चों के लिए काम

करना शुरू किया। हिमांशु कफल्टिया को कभी खुद स्कूल जाने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता था। वे नहीं चाहते थे कि गांव के

अन्य बच्चों को भी ऐसा संघर्ष करना पड़े। इसलिए उन्होंने उत्तराखंड के हर गांव में एक पुस्तकालय स्थापित करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने बनबसा, ज्ञानखेड़ा, उचोलीगोठ, कालीगुंथ, सुखीढांग, सल्ली, तालियाबांज, बुदम, डंडा, फागपुर, छिनिगोठ, तुसरर और नाई सहित आस-पास के गांवें में 16 लाइब्रेरी शुरू की। हिमांशु इन लाइब्रेरी में प्रतियोगी परीक्षा की किताबें शामिल करते हैं ताकि बच्चों को उन्हें प्राप्त करने के लिए शहरों की यात्रा न करनी पड़े। हिमांशु कफल्टिया की पत्नी भी आईआरएस अधिकारी हैं। वे अपनी पत्नी के साथ मिलकर गांव-गांव जाकर बच्चों का मार्गदर्शन करते हैं ताकि बच्चों कों अपने भविष्य को लेकर किसी तरह की परेशानी न हो। उनकी इस मुहिम के कारण अब तक गांवें के 38 विद्यार्थियों ने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की है। हिमांशु कहते हैं कि शुरुआत में लाइब्रेरी का रखरखाव एक चुनौती थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने एक समाधान निकाला। वे ग्रामीणों से पुस्तकालय को बनाए रखने के लिए दान मांगते हैं, जैसे कि यह रामलीला या सामुदायिक आयोजन जैसे धार्मिक उत्सवों के लिए किया जाता है। यह मुख्य रूप से लाइब्रेरी को स्वच्छ और सुरक्षित रखने के लिए उनमें जिम्मेदारी की भावना पैदा करने के लिए किया जाता है। वे हर दिन लाइब्रेरी की सफाई करते हैं और त्योहारों के दौरान उन्हें सजाते भी हैं। यह लाइब्रेरी 24 घंटे खुली रहती हैं। छात्र सुबह 5 बजे ही लाइब्रेरी में आ जाते हैं और कभी-कभी देर रात तक रुकते हैं। हिमांशु कफ्लातिया ने आज अपनी मेहनत से सफलता की ऐसी इबारत लिख दी, जो लाखों युवाओं को प्रेरणा देगी। आज वे लाखों युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बन चुके हैं। उनके द्वारा किए गए कार्यों से बहुत से लोग प्रेरित हो रहे हैं। लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती… यह पंक्तियां पीसीएस टॉपर हिमांशु कफल्टिया पर एकदम सटीक बैठती हैं। हिमांशु ने कहा, "पीछे मुड़कर देखने पर मैंने बेरोजगार लोगों की एक लंबी कतार देखी जो संसाधनों की कमी के कारण इन परीक्षाओं के शुरुआती स्तर तक भी नहीं पहुंच सके।"उन्होंने आगे कहा, "मैंने दृढ़ संकल्प किया था कि मैं अपनी सेवा के दौरान कुछ ठोस व्यवस्था करूंगा ताकि प्रत्येक इच्छुक और जरूरतमंद प्रतिभागी को परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं मिल सकें। 2013 में गुंजन शर्मा से शादी करने के बाद हिमांशु के अभियान को और अधिक गति मिली। गुंजन इस तथ्य के बावजूद कि वह आईआरएस के लिए काम करती है, हिमांशु को खुश करने का प्रयास करती है।एलेरा कैपिटल फाउंडेशन के सीईओ राज भट्ट, हिमांशु की पहल से प्रभावित हुए और उन्होंने चंपावत की लाइब्रेरी को गोद लेने का फैसला किया। परोपकारी भट्ट ने हिमांशु के प्रयोग का विस्तार करने का निर्णय लिया क्योंकि उन्हें लगा कि यह प्रेरणादायक है। जब एसडीएम हिमांशु दबाव में होते हैं, तो उनके दो बेटे, वर्षीय अदित शौर्य और वर्षीय प्रज्ञान, उन्हें बेहतर महसूस करने में मदद करते हैं। राज्य में युवाओं को नई दिशा देने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। सबसे ज्यादा जरूरी है कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा के स्तर को सुधारा जाए। युवाओं को शिक्षा का महत्व और किताबों के करीब लाया जाएताकि वह ज्ञान हासिल कर सकें। युवाओं के लिए चंपावत जिले की पूर्णागिरी तहसील में एक पुस्तकालय खोला गया जो काफी सुर्खियों में हैं। यह पहल किसी और ने नहीं बल्कि  टनकपुर के एसडीएम हिमांशु कफल्टिया  ने शुरू की है। उन्होंने पिछले साल नवंबर में नागरिक पुस्तकालय का निर्माण कराया। पुस्तकालय में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए पुस्तकें उपलब्ध करवाई जा रही है। खास बात यह कि एसडीएम हिमांशु ने खुद के एक लाख रुपए खर्च कर बच्चों के लिए किताबें दिल्ली से मंगवाई। इस मुहिम का फायदा ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिले, इसके लिए एसडीएम हिमांशु ने व्यापार मंडल और स्थानीय लोगों से सहयोग की अपील की है। इसके फलस्वरूप एक एनजीओ ने पुस्तकालय में फर्नीचर की व्यवस्था की। बता दें कि नैनीताल जिला निवासी एसडीएम हिमांशु कफलटिया उत्तराखंड प्रांतीय लोक सेवा आयोग के 2016 बैच के टॉपर हैं। उन्हें सिटीजन लाइब्रेरी और कम्युनिटी कारखाना मॉडल के लिए आईसीएफ ग्लोबल एक्सीलेंस अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। मौजूदा वक्त में इस लाइब्रेरी में करीब 500 से ज्यादा किताबें है और 30 से ज्यादा छात्र-छात्राएं इसका फायदा उठा रहे हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में संसाधन की कमी है। बच्चों को प्रतियोगिता की तैयारी करने के लिए बाहर के राज्यों पर निर्भर होना पड़ता है। जो बाहर नहीं जाते हैं उन्हें हल्द्वानी व देहरादून जाकर तैयारी करनी पड़ती है। घर से बाहर रहकर तैयारी करने में उन्हें काफी खर्चा करना पड़ता है और यह बच्चों में दवाब भी बनाता है।इस पहल के बारे में जिसने भी सुना वह एसडीएम हिमांशु कफल्टिया को सलाम कर रहा है। लोगों का कहना है कि ऐसी सोच बच्चों को ऊर्जा से भर देती है। वह अपनी पढ़ाई के साथ साथ समाज को भी कुछ देने की तरफ भी सोचते हैं। एसडीएम ने उच्च स्तरीय किताबों की कमी को देखकर और बाहर के शहरों में उत्तराखंड के बच्चों के संर्घष को देखकर यह पुस्तकालय खोलने का विचार किया। बता दें कि इससे पहले सडीएम हिमांशु कफलटिया पंचायत के कार्य अधिकारी पद पर थे। उन्हें सीएम ने सराहनीय कार्यों के लिए प्रशस्ति पत्र देकर उनको सम्मानित भी किया था। यह सही बात है कि व्यक्ति की वास्तविक पहचान उसके व्यवहार, कार्यप्रणाली और कर्तव्यनिष्ठा से होती है। आम जनमानस के साथ ही आला अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और सरकारी कर्मचारियों पर भी यह बात सौ फीसदी लागू होती है। यही कारण है कि जहां एक ओर कुछ आला अधिकारियों/कर्मचारियों के तबादले पर लोगों द्वारा खुशी व्यक्त की जाती है तो कुछ अधिकारियों के तबादले पर शासन-प्रशासन को लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ता है। इसका ताज़ा राज्य के चंपावत जिले के टनकपुर से सामने आ रहा है। जहां पूर्णागिरी तहसील में एसडीएम के पद पर कार्यरत हिमांशु कफल्टियां का तबादला होने पर लोग इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए अधिकांश नौकरशाह शायद ही कभी आम जनता के साथ बातचीत करते हैं, और यह अक्सर देखा जाता है कि वे खुद को "विशेष" के रूप में देखते हैं। भले ही नौकरशाहों के पास अक्सर आम जनता के साथ मजबूत संचार कौशल होते हैं, उनमें से बहुत कम लोग अन्य बेरोजगार व्यक्तियों की मदद करने के लिए अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालते हैं, जो सिविल सेवाओं में शामिल होने में रुचि रखते हैं। वह कहते हैं, जिस चीज़ ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया वह है बच्चों द्वारा उनकी पहल पर प्रतिक्रिया देने का तरीका। “वे सभी उत्साहित हैं और स्वागत भी कर रहे हैं। यह उनके लिए बहुत बड़ी बात है कि एक एसडीएम और अन्य अधिकारी उनके छोटे से गांव का दौरा कर रहे हैं।“हमारे दौरे से बच्चे अधिक आत्मविश्वास महसूस करते हैं। ये पुस्तकालय किसी भी अन्य चीज़ से बढ़कर, उनके लिए आशा की किरण हैं। चूँकि मैं भी एक बहुत ही ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता हूँ, इसलिए मैं इन बच्चों से गहराई से जुड़ सकता हूँ, हिमांशु कहते हैं, ''अब यह एक आंदोलन जैसा लगने लगा है। "साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता देवेन्द्र मेवाड़ी, हेम पंत म्योर पहाड़ मेरी पच्च्यां के लेखक और कई हस्तियों ने पुस्तकालयों का दौरा किया है, जिससे बच्चों का आत्मविश्वास काफी बढ़ा है।एसडीएम की रोकने की कोई योजना नहीं है। पाइपलाइन में दो और पुस्तकालय हैं, और उन्हें उम्मीद है कि वे आगे भी बढ़ते रहेंग“मेरा लक्ष्य राज्य के हर गाँव और हर छोटे शहर में एक पुस्तकालय स्थापित करना है। सोशल मीडिया के आने से पढ़ने की आदत कम हो रही है। मैं इसे पुनर्जीवित करना चाहता हूं. यदि  इन ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को  सही समय पर सही दिशा न दी जाए तो वे नशे आदि की चपेट में आ जाते हैं। मेरा मानना है कि हाथ में किताब वाला कोई भी बच्चा कभी गलत नहीं कर सकता, पहले के समय में IAS, IPS को कम ही आम जनता के बीच आकर बातचीत करते हुए देखा जाता था. क्योंकि पहले लोग इन पदों को बहुत ऊंचा मानते थे पुस्तक मेले के लाभ पर वह कहते हैं कि इस मेले को आयोजित करवाने का उद्देश्य युवाओं में पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देना है। पुस्तक मेले से लोगों को बहुत सी नई किताबों के बारे में पता चलेगा और स्थानीय लोगों को पुस्तक मेले में आने वाले अच्छे लोगों से मिलकर बहुत कुछ सीखने का मौका मिलेगा।आरम्भ स्टडी सर्कल पिथौरागढ़ भी पिथौरागढ़ में कॉलेज के कुछ छात्रों का एक ऐसा समूह है, जो क्षेत्र में पढ़ने लिखने की संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयासों में जुटा है। आरम्भ से जुड़े महेंद्र रावत बताते हैं कि हम चाहते हैं कि क्षेत्र के बच्चों और युवाओं में पढ़ने लिखने की संस्कृति बढ़े, इसके लिए हम जगह-जगह पुस्तक मेलों का आयोजन करवाते हैं। इनमें धारचूला, डीडीहाट जैसे दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्र भी शामिल हैं। मेलों में स्कूली बच्चों की भागीदारी उत्साहवर्द्धक रहती है। वह पुस्तक परिचर्चा भी आयोजित करते हैं, जिसमें लोग अपनी पढ़ी किताबों पर प्रतिक्रिया देते हैं। लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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