डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
होली का त्योहार एक भाईचारे से जुड़ा पर्व है। जिसमें हर कोई भेदभाव भूलकर रंगों के साथ इस पर्व को मनाता है। रंगों के इस त्योहार में का हर्बल रंग व गुलाल बाजार में और भी खिल रहा है। साथ ही कोरोना के संक्रमण पर भी यह भारी पड़ रहा है। पानी वाले रंग की अपेक्षा सूखे व हर्बल गुलाल की मांग इस होली के त्योहार पर खासी बढ़ी है। रासायनिक रंगों का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होता है। होली पर ज्यादातर ऐसे ही रंगों का प्रयोग किया जाता है। जबकि बाजार में हर्बल रंगों का विकल्प मौजूद है। लेकिन हर्बल रंगों की कास्ट कुछ अधिक होने के कारण इसे खरीदना नहीं चाहते हैं। इसे दखते हुए नैनीताल की चेली संस्था ने अच्छी पहल की है। संस्था ने चुकुन्दर, गुलाब के फूल, गेंदा के फूल व पालक से हर्बल रंग तैयार किया है। बंगलुरू, पुड्डुचेरी, शिमला से उनकी डिमांड भी आ चुकी है। रंगों का पर्व होली नजदीक है। होली पर बाजारों में मिलावटी रंगों की आवक तेजी से बढ़ रही है। इन रंगों का प्रयोग करने से भयंकर साइड इफेक्ट भी नजर आते हैं। ऐसे में अब हर्बल रंगों का प्रचलन साल दर साल बढ़ रहा है। महिला समूह व स्वयंसवीं संस्थाएं इसमें आगे आ रही है।
नैनीताल की संस्था ने भी हर्बल रंग तैयार किये हैं। संस्था ने इंटरनेट मीडिया के माध्यम से बिक्री आरंभ कर दी है। संस्था की संचालिका के अनुसार फूलों से रंग बनाए जा रहे हैं। रंग सुखाने का काम बेहद सावधानीपूर्वक करना होता है। संस्था की ओर से रंग के साथ अबीर भी तैयार किया है। रंग का सौ ग्राम का पैकेट सौ जबकि 50 ग्राम का पैकेट 30 रुपये में उपलब्ध है। अब तक पांडुचेरी, शिमला, पुणे समेत अन्य शहरों से ऑर्डर मिल चुके हैं। होली में प्राकृतिक रंगों का उपयोग होना चाहिए ताकि स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण की भी रक्षा हो सके। हर्बल गुलाल का स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है, बल्कि यह ठण्डक प्रदान करता है। इसके आंखों में चले जाने से कोई जलन नहीं होता है। इसके अलावा त्वचा तथा बालों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।
हल्दी, गेंदा, गुलाब, चुकन्दर, पालक, अनार जैसे प्राकृतिक पुष्प तथा फलों से बने जैविक अथवा हर्बल गुलाल स्वास्थ्य के लाभकारी है।प्रयुक्त फूलों का उपयोग हर्बल गुलाल बनाने के लिए किया जाता है। बचे हुए हिस्से का उपयोग जैविक खाद बनाने के लिए किया जाता है। गुलदस्ते में कपड़े और प्लास्टिक का उपयोग वहां की साबुन इकाई में पैकिंग सामग्री के रूप में किया जाता है। उन्होंने कहा कि इसी तरह पिछले साल दिपावाली में बनचरौदा की महिलाओं द्वारा बनाए मिट्टी और गोबर के दीये, सजावटी सामान दिल्ली व देश के अन्य राज्यों में खूब लोकप्रिय हुए। कोरोना के चलते लोग अब पुरानी परंपरा पर लौट रहे हैं, इस कारण अब बाजार में हर्बल गुलाल और रंगों की मांग काफी बढ़ी है। सायनयुक्त और गीले रंगों के विकल्प के तौर पर प्राकृतिक रंगों ने जगह बनाई है। हर्बल गुलाल, चंदन और विभिन्न फूलों से बने प्राकृतिक रंगों की बाजार में बहार है। नैनीताल में एक स्वयं सहायता समूह इस समस्या से बचाने में बड़ी भूमिका अदा करता है। इस समूह की महिलाएं गेंदे, गुलाब, पालक, हल्दी को मैदे और मक्की के आटे में मिलाकर हर्बल कलर तैयार करती हैं। हल्द्वानी के हरियानपुर गांव में ये स्वयं सहायता समूह चलता है। जिसमें गांव की महिलाएं होली के एक महीने पहले से तैयारी में जुट जाती हैं। होली आते ही हर्बल रंगों की डिमांड बढ़ जाती है। उत्तराखंड के अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश से लेकर बेंगलुरु तक के दुकानदारों के ऑर्डर आते हैं। हर्बल कलर बनाने वालों का कहना है कि यह स्किन पर कोई बुरा असर नहीं डालता, शरीर के अंदर जाने पर भी इसका कोई नुकसान नहीं है। हर्बल कलर की विश्वसनीयता स्वाभाविक रूप से बनी रहती है।