डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
पिथौरागढ़ जिले से शुरू होने वाले कैलाश मानसरोवर यात्रा का पहला जत्था 4 जुलाई को उत्तराखंड पहुंच रहा है. सुबह दिल्ली से चलकर 52 लोग पिथौरागढ़ के टनकपुर पहुंचेंगे. जहां पर पूरे कुमाऊं संस्कृति और रीति रिवाज के साथ उनका स्वागत किया जाएगा. आखिरी बार साल 2020 में कैलाश मानसरोवर यात्रा की हुई थी.लंबे इंतजार के बाद शुरू हो रही कैलास मानसरोवर यात्रा में यात्रियों को लिपूलेख सीमा तक सड़क से पहुंचने की सुविधा तो मिलेगी, लेकिन इस मार्ग पर बने भूस्खलन जोन बड़ी चुनौती भी खड़ी करेंगे। उन्हें धारचूला से गुंजी तक 82 किमी सड़क में छह से अधिक भूस्खलन जोन से गुजरना पड़ेगा।मानसरोवर यात्री पहली बार धारचूला से लिपूलेख तक की दूरी वाहनों से तय कर शिवधाम पहुंचेंगे। धारचूला से गुंजी तक यह सड़क पिछले एक माह में 10 से अधिक बार भूस्खलन से बाधित हो चुकी है। आधार शिविर धारचूला से मांगती तक 28 किमी यात्रा वाहनों से करने के बाद पहले मानसरोवर यात्री छह से अधिक पड़ावों में रहकर पैदल चलकर लोग गुंजी पहुंचते थे। जबकि अब महज पांच से छह घंटे में यात्री इस दूरी को वाहनों से तय कर लेंगे। समुद्र सतह से 17 हजार 500 फीट से अधिक की ऊंचाई से होने वाली मानसरोवर यात्रा में चीन सीमा तक सड़क पहुंचने से यात्रियों को जहां राहत मिलेगी। लेकिन सड़क के डेंजर जोन यात्रियों को परेशान भी करेंगे।धारचूला को मानसरोवर के प्रवेश द्वार लिपुलेख से जोड़ने वाली सड़क का शुभारंभ पांच साल पहले रक्षा मंत्री ने वीसी के माध्यम से किया था। धारचूला से लिपूलेख तक सड़क की जिम्मेदारी सीमा सड़क संगठन की होगी। पिथौरागढ़ के डीएम ने यात्रा की तैयारी बैठक में बीआरओ को सड़क यात्रा अवधि में तत्परता से खोलने के निर्देश दिए हैं। दो समय यात्रा अवधि में सड़क की स्थिति प्रशासन के साथ साझा करने के भी निर्देश दिए हुए हैं। यात्रा अधिकारी, केएमवीएन ने बताया कि बीआरओ से तत्परता से सड़क खोलने को समन्वय बनाया है।कोरोनाकाल में रोकी गई कैलास मानसरोवर यात्रा का आगाज हो गया है। केएमवीएन अधिकारियों के मुताबिक, दिल्ली में यात्रियों के दस्तावेज और मेडिकल जांच की प्रक्रिया सोमवार से शुरू हो गई है। पहले दल में 50 यात्री शामिल रहेंगे। यह दल तीन जुलाई को टनकपुर और पांच को पिथौरागढ़ पहुंचेगा। कैलास मानसरोवर यात्रा उत्तराखंड में पिथौरागढ़ जिले में स्थित लिपूलेख पास से होगी। इस यात्रा रूट का संचालन कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) के पास है। इसमें टनकपुर से लिपुलेख तक आईटीबीपी सुरक्षा मुहैया कराएगी। धारचूला यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव भी माना जाता है. यहां पर भक्त एक दिन स्टे करेंगे और यहीं के बाजार में स्थानीय कारीगरों के बनाए उत्पाद भी भक्त अपने साथ लेकर जाते हैं. इसके बाद अगले दिन दल गुंजी के लिए सफर तय करेगा.एक दिन यही विश्राम की व्यवस्था भी कुमाऊं मंडल विकास निगम ने की है. यहां रुकने के बाद भक्तों की एक बार फिर से स्वास्थ्य जांच होगी. ये जगह चूंकि काफी ऊंचाई पर है, इसलिए उन्हें कोई तकलीफ तो नहीं है, इसकी जांच की जाएगी. भगवान शिवका निवास माने जाने वाले पवित्र कैलाश र्वतऔर मानसरोवर झीलकी यात्रा पर निकले भारतीय श्रद्धालुओंका पहला जत्था गुरुवार को तिब्बत पहुंच गया। यह यात्रा पांच वर्षों के लंबे अंतराल के बाद शुरू हुई है, जब भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में तनातनी के चलते तीर्थयात्रा पर रोक लगी थी।चीन में भारत के राजदूत शू फेइहोंग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर जानकारी साझा करते हुए कहा, “यह जानकर खुशी हुई कि तीर्थयात्रियों का पहला जत्था चीन के शिजांग (तिब्बत) स्वायत्त क्षेत्र स्थित मपाम युन त्सो (मानसरोवर) झील पर पहुंच गया है।”36 भारतीय तीर्थयात्रियों के इस पहले जत्थे को ऐतिहासिक माना जा रहा है। यह वह समूह है जो चीन की जमीन से होकर कैलाश मानसरोवर पहुंचा है, जो कि भारत-चीन संबंधों में एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।ज्ञात हो कि पिछले साल रूस के कजान में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री और चीनी राष्ट्रपति की मुलाकात हुई थी, जहां दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को फिर से पटरी पर लाने पर सहमति जताई थी।कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली को दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है। लंबे समय से बंद पड़ी यह यात्रा अब आधिकारिक रूप से एक नई शुरुआत की ओर बढ़ है।पिथौरागढ़ घाट सड़क पर दिल्ली बैंड क्षेत्र के पास भूस्खलन के कारण रात में लोगों की यात्रा की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सोमवार रात 9 बजे से पिथौरागढ़ की ओर से चम्पावत व रात 10:30 बजे से घाट से पिथौरागढ़ की ओर वाहनों की आवाजाही बंद करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय केवल आज रात के लिए है। कैलाश मानसरोवर यात्रा न केवल हिंदू बल्कि, जैन, बुद्ध समेत अन्य धर्म के लिए भी बेहद पवित्र यात्रा मानी जाती है. न केवल भारत, बल्कि विश्व के कई देशों से लोग इस यात्रा पर पहुंचते हैं. भारत से इस यात्रा का संचालन दो जगह से होता है. हाल में ही सिक्किम के नाथुला दर्रा से वैसे तो इस यात्रा की विधिवत शुरुआत हो गई है, लेकिन उत्तराखंड से इसकी शुरुआत 4 जुलाई को होगी. पहले दिन में 52 श्रद्धालु दल में होंगे, जो 52 किलोमीटर की परिक्रमा में शामिल होंगे. पहला जत्था दिल्ली से 4 जुलाई 2025 को टनकपुर (चंपावत, उत्तराखंड) पहुंचेगा. यह यात्रा अगस्त 2025 तक चलेगी. कैलाश मानसरोवर की ये यात्रा उत्तराखंड के लिपुलेख मार्ग से होगी. जिसकी अवधि 22-23 दिन की होगी. इसमें भारत और तिब्बत में विभिन्न पड़ावों पर ठहरने और कैलाश पर्वत की 52 किलोमीटर की परिक्रमा शामिल है.इस साल उत्तराखंड के लिपुलेख मार्ग से कुल 250 तीर्थ यात्रा यात्रा करेंगे, जिन्हें 50-50 यात्रियों के 5 जत्थों में विभाजित किया जाएगा. हर एक जत्था अलग-अलग तारीखों पर यात्रा शुरू करेगा और अंतिम जत्था 22 अगस्त 2025 तक वापस लौटेगा. उत्तराखंड में जिस तरह से बारिश का दौर जारी है. उसके मद्देनजर कुमाऊं मंडल विकास निगम इस बात का भी ध्यान रख रहा है कि दल जब टनकपुर से रवाना होगा तो मौसम की वजह से उन्हें कहीं रुकना ना पड़े. लिहाजा, हाल ही में खुद कुमाऊं मंडल विकास निगम के जीएम सड़क मार्ग से होकर वापस लौटे हैं.उन्होंने तमाम गेस्ट हाउस कर्मचारी की व्यवस्था और सड़क पर होने वाले भूस्खलन को लेकर अपना यह दौरा किया था. उन्होंने बताया कि सड़क मार्ग पूरी तरह से सुरक्षित है और जहां पर भूस्खलन होने की संभावना है. वहां पर हमने मशीनों को तैनात किया है. ताकि, अगर मार्ग बंद भी होता है तो तत्काल प्रभाव से मार्ग को खोलकर यात्रा सुचारू रूप से चलती रहे. हम उत्तराखंड से शुरू होने वाली यात्रा में यहां आने वाले श्रद्धालुओं को एक बेहतर अनुभव देने वाले हैं. मैं खुद कैलाश मानसरोवर यात्रा के पहले जत्थे के साथ उनके अनुभव को जानने की कोशिश करूंगा. उत्तराखंड सरकार ने कैलाश मानसरोवर यात्रा के मार्ग पर यात्रियों की सुविधा के लिए कई और बेहतर इंतजाम किए हैं. जो हमारे उत्तराखंड की संस्कृति को और ज्यादा महत्व दिलवाएंगे. इस बार 5 साल बाद शुरू हो रही यात्रा इसलिए खास है, क्योंकि जब भक्त तिब्बत की तरफ बढ़ेंगे तो उनके जहन में उत्तराखंड की सरकार की छवि वापस लौटने तक याद में रहे.”इनकी निगरानी भी रखी जाएगी। कैलाश पर्वत की ऊंचाई भले ही माउंट एवरेस्ट (8848 मीटर) से करीब 2000 मीटर कम है, लेकिन अब तक कोई भी इस पवित्र चोटी पर चढ़ाई नहीं कर सका है. इसकी सीधी और खतरनाक ढलान (65 डिग्री से भी ज्यादा) चढ़ाई को लगभग असंभव बना देती है. चढ़ाई की कुछ कोशिशें हुईं जरूर, लेकिन 2001 के बाद से इस पर्वत पर चढ़ाई पूरी तरह प्रतिबंधित कर दी गई है. श्रद्धालु अब सिर्फ इसकी 52 किलोमीटर की परिक्रमा कर सकते हैं, जिसे भी एक अत्यंत पुण्यकारी कार्य माना जाता है.! *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*