डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
देश पर कुर्बान होने वाले जांबाजों में उत्तराखंड के वीरों का कोई सानी नहीं है। जब.जब देश की आन.बान पर कोई भी संकट आया है, तो उत्तराखंड के जांबाजों ने देश की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर किया है। यही वजह है कि जब भी सैनिकों की शहादत को याद किया जाता है तो उत्तराखंड के वीरों के अदम्य साहस के किस्से हर जुबां पर होते हैं। बात करें वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध की तो यहां भी उत्तराखंड के जाबांज सबसे आगे खड़े मिले। कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जवानों ने देश रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी। इनमें 37 जवान ऐसे थे, जिन्हें युद्ध के बाद उनकी बहादुरी के लिए पुरस्कार भी मिला था। आजादी से पहले हो या आजादी के बाद हुए युद्ध, देश के लिए शहादत देना उत्तराखंड के शूरवीरों की परंपरा रही है। आजादी के बाद से अब तक डेढ़ हजार से अधिक सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी है। कारगिल युद्ध में भी उत्तराखंड के वीरों ने हर मोर्चे पर अपने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे। कारगिल युद्ध में भी जवानों ने हर मोर्चे पर अपने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ाये थे। रक्षा मामलों के जानकार बताते हैं कि युद्ध लड़ने में ही नहीं, बल्कि युद्ध की रणनीति तय करने और रणभूमि में फहत करने में भी इनका अहम योगदान रहा है।
आजादी के बाद से अब तक राज्य के डेढ़ हजार से अधिक सैनिक देश रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर चुके हैं। किसी मां ने अपना बेटा खोया तो किसी पत्नी ने अपना पति और कई घर उजड़ गये। फिर भी ना ही देशभक्ति का जज्बा कम हुआ और ना ही दुश्मन को उखाड़ फेंकने का दम। वर्तमान में भी सूबे के हजारों लाल सरहद की निगहबानी के लिए मुस्तैद हैं और देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दे रहे हैं। राज्य के 30 सैनिकों को उनके अदम्य साहस के लिए वीरता पदकों से अलंकृत किया। राज्य की कुमाऊं और गढ़वाल रेजिमेंट ने कारगिल युद्ध में दुश्मन को मार भगाने में अहम योगदान दिया है। गढवाल रेजिमेंट के 54 सैनिक शहीद हुए थे। कारगिल युद्ध में भाग लेने वाली लगभग हर रेजिमेंट में उत्तराखंड के बहादुर सैनिक शामिल थे। भारतीय सेना ने 524 सैनिकों को खोया तो वहीं 1363 गंभीर रूप से घायल हुए। पाकिस्तानी सेना के लगभग चार हजार सैन्य बलों के जवान मारे गए।
भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 में कश्मीर में कारगिल युद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध में भारत को जीत हासिल हुई थी। यह जीत केवल भारत की सेना की नहीं बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टि से भी जीत थी। 26 जुलाई को विजय दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन कारगिल के उन सपूतों की याद में मनाया जाता है जिन्होंने पाकिस्तानियों के दांत खट्टे कर दिए थे और अपनी वीरता से भारत के इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों से लिख दिया था। इस युद्ध में चीन की भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े होते हैं। इस बात की चर्चा होती है कि चीन ने पिछले दरवाजे से कुछ ऐसी हरकतें कि जिससे ये बात जाहिर होती है कि उसने पाकिस्तान को मदद पहुंचाने की कोशिश की थी। हालांकि, चीन हमेशा से कहता आ रहा है कि वह स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है और किसी देश के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है, लेकिन पाकिस्तान के साथ उसके रिश्ते और फिर भारत के साथ पिछले विवाद को देखते हुए ड्रैगन की बातों पर यकीन करना मुश्किल लगता है।
स्वतंत्र भारत के लिये एक महत्वपूर्ण दिवस है। इसे हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। कारगिल युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ। इसमें भारत की विजय हुई। इस दिन कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान हेतु मनाया जाता है। कारगिल के युद्ध में अकेले उत्तराखंड से 75 सैनिकों ने अपनी शहादत दी थी। जिसमें गढ़वाल राइफल्स के 54, नागा रेजिमेंट के 19 जबकि कुमाऊं रेजिमेंट के 12 जवानों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। कारगिल युद्ध में जम्मू एंड कश्मीर की 13 जैक राइफल्स जोकि अब देहरादून में स्थित है, ने शौर्य और वीरता का जो इतिहास रचा उसके लिए उसे ब्रैवेस्ट ऑफ ब्रैव यानी वीरों में सबसे वीर का खिताब मिला। दिल मांगे मोर का नारा देने वाले परम वीर चक्र से सम्मानित कैप्टन विक्रम बत्रा 13 जैक से ही थे, जबकि कारगिल में परमवीर चक्र से सम्मानित रेजीमेंट के दूसरे सैनिक संजय कुमार हैं।
कारगिल युद्ध के बाद उत्तराखंड वीरता के सबसे ज्यादा मैडल पाने वाला प्रदेश बना था। आज देवभूमि के सीने पर 1282 मैडल शान से चमचमा रहे हैं। औसत देखा जाए तो हर माह देवभूमि से दो जवान देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर रहे हैं। इसके बावजूद भी इस पवित्र भूमि के युवाओं के समर्पण की पराकाष्ठा यह है कि आज भी आज भी प्रदेश के 1 लाख जवान सेना में मुस्तैदी से देश को अपनी सेवा दे रहे हैं। इतने जवान शहीद होने के बावजूद आज भी प्रदेश के युवाओं में सेना में भर्ती होने का वही जूनून और जज्बा है, जो 20 साल पहले था। आज कारगिल के ऑपरेशन विजय में अपना जीवन बलिदान कर देश के इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित करने वाले वीरों को याद करने का दिन है। हमारी ओर से भारत माँ के वीर सपूतों को श्रध्दांजलि! लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैंए वर्तमान दून विश्वविद्यालय में कार्यरत है।