उत्तराखंड (लक्ष्मण सिंह नेगी)उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट से खीमा ने अपने संघर्ष की कहानी शुरू की अस्कोट मैं वर्ष 1975 में इनका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। खीमा चार भाई बहनों में सबसे बड़ी है इनके पिताजी का नाम देव सिंह ,माता ललिता जेठी था माता पिता की मृत्यु काफी पहले होने के कारण उसे पर घर का पूरा भार उस पर गया था।
वह अपने ही गांव की स्कूल में कक्षा 12 तक पढ़ाई कर पायी और उसके बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी उसके दो भाई सेना में कार्यरत है और एक छोटी बहन की शादी हो चुकी है वह अकेले ही एकल जीवन यापन करतीहै और उसने समाज के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया । वह अस्कोट मैं अर्पण संस्था के संपर्क में 2001 में आयी और उसने उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा सर्वप्रथम बालवाड़ी शिक्षण कार्य से अपनी शुरुआत की बालवाड़ी पर्यावरण शिक्षा केंद्र के संचालन के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में संगठन निर्माण का कार्य प्राथमिकता से करती रही और उसी से आगे बढ़ती रही उस क्षेत्र में बनराजी जनजाति के लिए निरंतर संघर्षरत है वह पित्र सत्ता के खिलाफ मुखर होकर काम कर रही है।
महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए लगातार बालिकाओं को जागरूक करती है वनराजी जनजाति के लोगों को वनों में उनके हक दिलाने के लिए वन अधिकार कानून 2006 के तहत दावा प्रपत्र भरने का काम वह लोगों के साथ मिलकर करती रही है वह बताती है कि उन्होंने 2009 में वन अधिकार कानून के तहत दावे प्रस्तुत किए थे वर्ष 2013 में जाकर 45 परिवारों को जमीन का अधिकार पत्र मिल सका जबकि 38 परिवारों को 2022 में अधिकार पत्र मिले हैं जिन लोगों को अधिकार पत्र मिले हैं सरकार ने उन्हें राजस्व गांव घोषित नहीं किया है आज भी वनराजी जनजाति के लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं है वह बताती है कि आगे लड़ाई राजस्व गांव बनाने की हैसरकार से बन राजी जनजाति के लोगों को पटटा दिया है उसे राजस्व गांव घोषित किया जाना बाकी है ।
उन्हें 14 दिसंबर 2022 को दिल्ली में एक कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाली स्वयंसेवी संस्था एक्शन एड के द्वारा मानव अधिकारों के रक्षा करने के लिए सम्मानित किया गया सम्मान मिलने के बाद उनसे बात की गई तो उसने बताया कि 20 वर्षों से लगातार जनजाति गांव में लोगों के साथ उनके संघर्षों में साथ देती रही है लोगों के साथ ही उसका जीवन शुरू होता है और पूरी दिनचर्या उन्हीं के साथ व्यतीत हो जाती है वह बताती है कि मेरा परिवार लोगों के संघर्ष ही परिवार का रूप है। वह बता दिया कि क्षेत्र में महिलाओं और बच्चों में आज भी कुपोषण जैसी समस्याओं से लोग जूझ रहे हैं स्वास्थ्य की समस्या पहाड़ों में सबसे खराब है आज भी दूरदराज के लोगों के लिए स्वास्थ्य उपचार के लिए हल्द्वानी या देहरादून बरेली जाना पड़ता है।