रिपोर्ट.सत्यपाल नेगी/रुद्रप्रयाग
उत्तराखण्ड में चकबन्दी मोर्चा के संयोजक एंव कट्टर पहाड़वाद की सोच रखने वाले समाज सेवी रानीखेत निवासी केवलांन्द तिवाड़ी फकीर वर्तमान में उठी भू.कानून की बहस पर चिंता जताते हुए, अपनी बात से सभी को सजग और सावधान भी करने को लेकर लिखते है.. हमें पहले ये सार्वजनिक कराना होगा कि इन 21 सालों में किसने उत्तराखण्ड में कितनी भूमि कब्जाई है और कहाँ.कहाँ।..चाहे वे राजनीतिक दलों की भूमि हो या नेता व व्यापारियों की जमीनें।..
उत्तराखंड मांगे भू.कानून’ यानि राज्य के वर्तमान भू.कानून की आड़ में बड़े.बड़े भू.खण्ड जो बीते दिनों कब्जाए गये हैं, उनका आनन फानन में इस सरकार के रहते तुरंत नियमितीकरण कराने की ये एक साजिश हो सकती है… इनका नियमितीकरण करने से पहले किसने कितनी जमीनें कब्जाई हैं, सर्वजनिक होना भी जरूरी है।
1960-62 के बाद से भूमि बंदोबस्त को पहाड़ में रोका गया है… जबकि अभी तक तीन बंदोबस्त हो गये होते, जिससे प्रत्येक कास्तकार परिवार के पास कम से कम 50-60 नाली जमीन हो गई होती, तो वे आज पलायन क्यों करते?
लेकिन, हम कुछ मुट्ठी भर लोग बीते 40 सालों से चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं कि भूमिबंदोबस्ती.चकबंदी कराओ… हमारे बिखरे खेतों की कुल भूमि एक सांथ चकों में दिलाओ…
ताकि गांवों में ही रहकर जीविकापार्जन के साधन जुटाकर पलायन से बचते हुए जल.जंगल.जमीन आदि संसाधनों की भी सही देखभाल व दोहन हो सके, किन्तु इसे भूमाफियाओं के दबाव में शासन.प्रशासन ने तो अनदेखा किया ही लेकिन आम जनता ने भी हमें नजरअंदाज किया है जिसका नतीजा अब सामने आने लगा है कि श्मूलनिवासियों तुम जल्दी पहाड़ छोडो गैरों को जो बसाना है… एक साजिश के तहत रात.रात में मैदानी क्षेत्रों से बंदरों को पहाड़ छोड़ना, सुवरों, बाघों का आतंक बढने देना तथा स्वास्थ, शिक्षा, रोजगार आदि के लिए भी मूलनिवासियों को पहाड़ से मैदानी भागों की ओर भागने के लिए मजबूर करना आदि आदि साजिशों को लोग कब समझेंगे।
हमारा स्पष्ट कहना है कि मूलनिवासियों की वर्तमान कृषिभूमि जो अभी भी गोलखातों की हिस्सेदारियों में दूर.दूर टुकड़ों में फंसी है उसे, तहसीलों में उपलब्ध खाते खतौनियोंनुसार जिसकी जितनी है, चकबंदी की प्रक्रिया के द्वारा प्रत्येक परिवार को उनके व्यक्तिगत स्वामित्व के रिकार्डों सहित एक.दो चकों में दिलाया जाय तथा इसे गैर कृषि कार्यों के लिए बेचने पर भी तुरंत रोक लगाई जाय ताकि उनमें स्वरोजगार से आर्थिकी के साधन जुटा कर गांवों से पलायन रुकेण् लेकिन मूलनिवासियों को उनकी 2.4 नाली जमीन भी चकों में नहीं देकर गैरों को पहाड़ के पहाड़ देना क्या ये साजिस नहीं हैघ् इसलिए पहाड़ से कुजा एक्ट को भी समाप्त करके अथवा इसमें संसोधन करके इसके तहत विगत में विकासीय संस्थानों के लिए भूमिधरों की जो नाप कृषिभूमि ली गई है उसे भी गाँव के अंतर्गत उपलब्ध बेनाप भूमि से वापस दिलाया जाय।
सरकारों की पहाड़ बिरोधी भू.कानूनों से प्रत्येक राजस्व गांव के अंतर्गत की कुल कृषि भूमि के साथ साथ पनघटों, चराहगाहों, बुग्यालों आदि की जमीनों को भी बचाने एवं उनका उचित उपयोग हेतु हमने 8 आठ बिन्दुओं की नियमावली जो बनाई है।