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Uttarakhand Samachar

72 साल के लच्छीराम कुमाऊंनी गीत गाकर पर्यावरण बचा रहा ये उत्तराखंडी लोकगायक

25/02/25
in उत्तराखंड, देहरादून, संस्कृति
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के पहाड़ों में बसने वाले लोगों में प्रतिभा की कमी नहीं होती. पढ़ाई के साधन न भी हों तो भी यहां के लोग मेहनत और लगन से अपनी राहे बनाते हैं. देवभूमि उत्तराखंड चारों ओर से हरा भरा है. प्रकृति ने इस प्रदेश को खूबसूरत वादियों से नवाजा और यहां के वाशिंदों ने इसे बचाए रखने के लिए कभी पेड़ लगाए तो कभी पेड़ बचाओ के लिए आंदोलन किए. इन दिनों रामनगर में पर्यावरण बचाने के अनोखे संदेश देते सुनाई पड़ते हैं लच्छी राम और उनका पूरा ग्रुप. जिन्होंने लोकगीतों और लोकनृत्य के जरिए पर्यावरण को बचाने का बीड़ा उठाया हुआ है. उत्तराखंड के उस शख्स से, जो अपने जीवन के 45 साल पर्यावरण संरक्षण को समर्पित कर चुके हैं. 72 वर्षीय लच्छीराम और उनकी टीम लोगों को पर्यावरण संरक्षण का सुंदर संदेश देने के साथ ही लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं. लच्छीराम और उनकी टीम ने नैनीताल जिले के रामनगर स्थित कॉर्बेट पार्क में अनोखे अंदाज में पर्यावरण बचाने का संदेश दिया. कॉर्बेट पार्क के बिजरानी पर्यटन जोन में सफारी के लिए जा रहे पर्यटकों, स्थानीय ग्रामीणों, नेचर गाइडों और जिप्सी चालकों को उन्होंने कुमाऊंनी सांस्कृतिक नाटक के ज़रिए ‘पेड़ लगाओ, वन बचाओ’ का संदेश दिया. वहीं लच्छी राम ने बातचीत में बताय कि “हम 1980 से लोगों को जागरूक कर रहे हैं. जंगल और पर्यावरण हमारी धरोहर हैं, इनकी रक्षा करना हम सबकी जिम्मेदारी है. कोई भी जंगल में आग न जलाए, कूड़ा न फेंके और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएवहीं लच्छीराम और उनकी टीम के इस प्रयास को पर्यटकों और स्थानीय ग्रामीणों ने खूब सराहा. उन्होंने भी वन संरक्षण में सहयोग देने का वादा किया. उन्होंने कहा कि ‘यह बहुत अच्छी पहल है, हमें समझ में आया कि पर्यावरण की रक्षा करना कितना ज़रूरी है. लच्छीराम जी का यह प्रयास सराहनीय है’लच्छी राम और उनकी टीम प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण का संदेश फैला रहे हैं, उत्तराखंड सांस्कृतिक विभाग के सहयोग से वे स्थानीय समुदायों को पेड़ लगाने और प्रकृति की रक्षा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. लच्छी राम का कहना है कि बढ़ते प्रदूषण और वनों की कटाई के कारण पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है, जिसे रोकने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी है. उनकी यह पहल लोगों में जागरूकता बढ़ा रही है और हरित भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो रही है. देवभूमि उत्तराखंड चारों ओर से हरा भरा है. प्रकृति ने इस प्रदेश को खूबसूरत वादियों से नवाजा और यहां के वाशिंदों ने इसे बचाए रखने के लिए कभी पेड़ लगाए तो कभी पेड़ बचाओ के लिए आंदोलन किए. इन दिनों रामनगर में पर्यावरण बचाने के अनोखे संदेश देते सुनाई पड़ते हैं लच्छी राम और उनका पूरा ग्रुप. जिन्होंने लोकगीतों और लोकनृत्य के जरिए पर्यावरण को बचाने का बीड़ा उठाया हुआ है. उत्तराखंड के उस शख्स जो अपने जीवन के 45 साल पर्यावरण संरक्षण को समर्पित कर चुके हैं. 72 वर्षीय लच्छीराम और उनकी टीम लोगों को पर्यावरण संरक्षण का सुंदर संदेश देने के साथ ही लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं. पर्यावरण की रक्षा करना कितना ज़रूरी है. लोगों को बता रहे हैं कि अगर वृक्ष हैं, तभी मानव है, वरना हमारा अस्तित्व खतरे में है। लच्छीराम जी का यह प्रयास सराहनीय है’ उत्तराखंड की संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण का विशेष स्थान है। हम उस देवभूमि से हैं, जहां पशु-पक्षियों और पेड़ों से प्रेम करना सिखाया जाता है, प्रकृति को सम्मान देना सिखाया जाता है।.लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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