ब्यूरो रिपोर्ट। पहली बार देहरादून में उत्तराखंड प्रीमियर लीग का आयोजन होने जा रहा है। इस लीग में प्रदेश के खिलाड़ियों के साथ भारतीय क्रिकेटर भी शामिल होंगे। क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड (सीएयू) की तरफ ये इस लीग की शुरुआत की जा रही है। टी-20 की ये लीग 15 सितंबर से शुरू होगी। ये लीग 22 सितंबर तक चलेगी। जिसमें महिला और पुरुष टीम के टोटल 16 मैच होंगे।इस लीग के मैच राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में खेले जिसमें भारतीय क्रिकेटर राजन कुमार, आकाश मधवाल, कुनाल चंदेला, आर समर्थ, एकता बिष्ट, नीलम बिष्ट और मानसी जोशी शामिल है। आईपीएल की तरह ही यूपीएल के पहले संस्करण में टोटल आठ टीमों के बीच मैच होंगे।उत्तराखंड प्रीमियर लीग 2024 का उद्घाटन समारोह भले ही बड़े धूमधाम से आयोजित किया गया हो, लेकिन इसमें ‘उत्तराखंडियत’ की आत्मा कहीं खोई हुई नजर आई। प्रदेश के नाम पर आयोजित इस भव्य कार्यक्रम में उत्तराखंड के सांस्कृतिक धरोहरों और स्थानीय कलाकारों को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया, जो कि राज्यवासियों के लिए गहरी निराशा का कारण बना। बॉलीवुड सिंगर बी प्राक, भोजपुरी गायक मनोज तिवारी और अभिनेता सोनू सूद की मौजूदगी के बावजूद दर्शकों में वो उत्साह देखने को नहीं मिला, जो पहाड़ी कलाकारों के कार्यक्रमों में होता है।स्थानीय कलाकारों को मंच से किया दूर: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में हुए इस बड़े आयोजन में किसी भी गढ़वाली या कुमाऊंनी कलाकार को मंच नहीं दिया गया। यह एक ऐसी चूक है जो राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं के साथ नाइंसाफी करती है। उत्तराखंड की हर धड़कन में बसी ‘रस्यांण’ जैसी परंपराएं, जो हमेशा से देवभूमि के आयोजनों का अभिन्न हिस्सा रही हैं, इस समारोह में नदारद रहीं। राज्य की आत्मा को पीछे छोड़ते हुए बाहरी कलाकारों को प्रमुखता दी गई, जिससे स्थानीय लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। पांडवाज ग्रुप के सदस्य ने इस अनदेखी पर दुख प्रकट करते हुए कहा, “इस आयोजन में बाहरी कलाकारों को ज्यादा तरजीह दी गई। अगर ‘अपने’ कलाकारों को मंच मिलता, तो यह आयोजन न सिर्फ सांस्कृतिक रूप से समृद्ध होता, बल्कि लोगों में जुड़ाव भीमहसूस होता।” उन्होंने आगे कहा कि बाहरी इवेंट कंपनियों को हायर करने के चलते इस तरह की सांस्कृतिक अनदेखी होती है। ये कंपनियां उत्तराखंड की सभ्यता और संगीत को समझने से कहीं ज्यादा प्रोफेशनल दृष्टिकोण रखती हैं, जिससे इस आयोजन की आत्मा ही खो जाती है।आयोजन में दिखी सांस्कृतिक शून्यता: उत्तराखंड प्रीमियर लीग का उद्देश्य युवाओं को खेल से जोड़ना और राज्य को एक नई पहचान दिलाना था, लेकिन सिर्फ नाम में ‘उत्तराखंडियत’ जोड़ने से यह संभव नहीं होता। संस्कृति, परंपराओं और लोक धरोहरों को मंच देना जरूरी था, ताकि राज्य की पहचान वाकई में मजबूत हो सके। पहाड़ी कलाकारों की अनुपस्थिति और राज्य की सांस्कृतिक झलक की कमी के चलते समारोह फीका रहा। दर्शकों में वह जोश और जुड़ाव नहीं दिखा, जो आमतौर पर स्थानीय कलाकारों के कार्यक्रमों में देखने को मिलता है।सोशल मीडिया पर भी दिखा फर्क: बॉलीवुड और बाहरी कलाकारों के प्रोफेशनल रवैये के कारण, न तो उनके सोशल मीडिया हैंडल पर इस आयोजन का कोई खास प्रमोशन हुआ और न ही स्थानीय कलाकारों के बीच कोई उत्साह दिखा। अगर राज्य के अपने कलाकारों को मंच मिलता, तो यह आयोजन न सिर्फ स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अधिक चर्चित हो सकता था।उत्तराखंड प्रीमियर लीग, जो राज्य की संस्कृति और खेल को एक साथ लेकर चलने का बड़ा मंच बन सकता था, ने राज्य के सांस्कृतिक धरोहर को नजरअंदाज कर दिया। पहाड़ी कलाकारों की अनुपस्थिति ने इस आयोजन को एक अधूरे अनुभव की तरह पेश किया, जो राज्यवासियों के दिलों में एक खालीपन छोड़ गया।उत्तराखंड के समृद्ध कलाकारों की अनदेखी: यह लीग उत्तराखंड के लिए अपनी संस्कृति को एक बड़े मंच पर लाने का सुनहरा अवसर था, लेकिन आयोजकों ने इसे गवां दिया। राज्य में नरेंद्र सिंह नेगी, प्रीतम भरतवाण, माया उपाध्याय, पवनदीप राजन और पांडवाज जैसे कलाकारों की लंबी कतार है, जो न केवल राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रखते हैं, बल्कि युवाओं के दिलों में भी गहरी जगह बनाते हैं। इन कलाकारों के संगीत और प्रदर्शन से उत्तराखंड की संस्कृति का हर रंग उभरकर सामने आता है। लेकिन इस बार इन्हें दरकिनार कर, आयोजकों ने बाहरी कलाकारों को बुलाकर राज्य की असली पहचान को छिपा दिया देवभूमि उत्तराखंड में जब भी कोई बड़ा आयोजन किया जाता है तो इसकी शुरुआत देवी देवताओं के नाम से की जाती है. इसे लेकर गढ़वाल और कुमाऊं की समृद्ध परंपरा है. कुमाऊं में छोलिया नृत्य, उत्तराखंड में नंदा राजजात झांकी के साथ ही गणेश वंदना इसका नायाब उदाहरण है. उत्तराखंड के सभी छोटे बड़े आयोजन में इसकी झलक देखने को मिलती है. क्रिकेट का महासंग्राम उत्तराखंड प्रीमियर लीग (यूपीएल) का उद्घाटन रविवार को हो गया है। समारोह को भव्य बनाने के लिए बॉलीवुड गायक बी प्राक ने लाइव प्रस्तुति दी। उनकी खनकती हुई आवाज से स्टेडियम गूंज उठा। उत्तराखंड प्रीमियर लीग का उद्देश्य युवाओं को खेल से जोड़ना और राज्य को एक नई पहचान दिलाना था, लेकिन सिर्फ नाम में ‘उत्तराखंडियत’ जोड़ने से यह संभव नहीं होता। संस्कृति, परंपराओं और लोक धरोहरों को मंच देना जरूरी था, ताकि राज्य की पहचान वाकई में मजबूत हो सके। पहाड़ी कलाकारों की अनुपस्थिति और राज्य की सांस्कृतिक झलक की कमी के चलते समारोह फीका रहा। दर्शकों में वह जोश और जुड़ाव नहीं दिखा, जो आमतौर पर स्थानीय कलाकारों के कार्यक्रमों में देखने को मिलता है। बॉलीवुड और बाहरी कलाकारों के प्रोफेशनल रवैये के कारण, न तो उनके सोशल मीडिया हैंडल पर इस आयोजन का कोई खास प्रमोशन हुआ और न ही स्थानीय कलाकारों के बीच कोई उत्साह दिखा। अगर राज्य के अपने कलाकारों को मंच मिलता, तो यह आयोजन न सिर्फ स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अधिक चर्चित हो सकता था।उत्तराखंड प्रीमियर लीग, जो राज्य की संस्कृति और खेल को एक साथ लेकर चलने का बड़ा मंच बन सकता था, ने राज्य के सांस्कृतिक धरोहर को नजरअंदाज कर दिया। पहाड़ी कलाकारों की अनुपस्थिति ने इस आयोजन को एक अधूरे अनुभव की तरह पेश किया, जो राज्यवासियों के दिलों में एक खालीपन छोड़ गया।(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।)लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)।