उत्तराखंड समाचार (लक्ष्मण सिंह नेगी)
पौड़ी गढ़वाल पैठाणी का राहु मंदिर अति प्राचीन है यह मंदिर पौड़ी गढ़वाल पैठाणी गांव में पश्चिम पूर्वी नयार नदी के तट पर यह मंदिर स्थित है राहु देवता का मंदिर है इस मंदिर में शिव का ज्योतिर्लिंग भी है ऐसी मान्यता है कि यहां पर समुद्र मंथन के बाद जब राहुल ने अमृत पी लिया था ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र के द्वारा राहु का सर काट दिया था तो राहु का सर यहीं आकर के गिरा था आज भी यहां राहु शीला है जब मंदिर के अंदर शिवालय में पूजा की जाती है उसके बाद राहु की पूजा की जाती है शीला की भी पूजा की जाती है बहुत कम लोग हैं इस मंदिर के बारे में जानते हैं और यहां उत्तराखंड के बाहर के लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं।पैठाणी पौड़ी गढ़वाल पूरे विश्व का एकमात्र राहु का मंदिर पौड़ी गढ़वाल के पैठाणी ग्राम में स्थित है ऐसी मान्यता है कि जब देवता और असुरों ने समुद्र मंथन किया और उसके बाद समुद्र से 14 रत्न निकले थे जिसमें एक रन अमृत भी था जब देवताओं को अमृत पिलाया जा रहा था उसे सभा में एक राक्षस जिससे राहु कहा जाता है वह भी बैठ गया और उसने अमृत पी लिया और अमृत पीने के बाद उसने देवताओं के साथ युद्ध किया एक ऐसी मान्यता भी है कि भगवती दुर्गा ने काली का रूप धारण किया उसके बाद महासंग्राम हुआ और राहु का वध किया गया मान्यता है कि राहु का सर पैठाणी गांव में गिरा जहां पर पश्चिम और पूर्वी नयार नदी का तट है वहां पर आज भी राहु शीला मौजूद है यहां पर भगवान शंकर का प्राचीन मंदिर भी है जो पुरातत्व महत्व के हिसाब से बहुत ही महत्वपूर्ण है इस मंदिर के चारों कोनों पर शिवालय बने हुए हैं और यहां पर इंद्र महाराज भगवान शंकर की पूजा करते हुए दर्शाया गया है। पुरातत्व महत्व के हिसाब से यह मंदिर काफी प्राचीन माना जाता है लोगों के अनुसार राहु की दशा शांति करने के लिए पांडवों ने यहां इस मंदिर का निर्माण किया। पुरातत्व विभाग नहीं यहां पर मंदिर से संबंधित जानकारी नहीं लिखी गई है किंतु मंदिर पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है और अत्यधिक प्राचीन प्रतीत होता है मंदिर की शिलाये 6 फीट से भी ज्यादा लंबी है और ग्रेनाइट पत्थरों के से इस मंदिर का निर्माण कराया गया है वर्तमान समय में मंदिर का कुछ भाग धंस रहा है। पुरातत्व विभाग को इसके संरक्षण के लिए एक योजना बनानी चाहिए और उसे पर विचार करना चाहिए। राहु की दशा की शांति के लिए लोग यहां पर आकर पूजा पाठ करते हैं और भगवान शंकर को जलाभिषेक करते हैं।