डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में पारंपरिक रूप से उगाए जाने वाले संतरे और माल्टा के सूखते पेड़ों को बचाने की कवायद उद्यान विभाग ने शुरू कर दी है। करीब डेढ़ दशक पहले कपकोट ब्लाक के रमाड़ी गांव में संतरे के पेड़ सूखने लगे थे। लेकिन रमाड़ी के उद्यमियों और उद्यान विभाग की मेहनत रंग लाई और एक बार फिर से माल्टा, नींबू और संतरा के बागान फलों से लकदक होने लगे।
दरअसल, रमाड़ी का संतरा बागेश्वर और कुमाऊं के साथ ही देश की राजधानी दिल्ली तक लोगों की पसंद है। लोग संतरा खरीदने के लिए हल्द्वानी से व्यापारी रमाड़ी गांव पहुंच जाते थे। इतना ही नहीं, बल्कि दिल्ली तक रमाड़ी का संतरा भेजा जाता था। करीब डेढ़ दशक पहले रमाड़ी के संतरे के पेड़ों पर संकट के बादल मंडराए। एक के बाद एक पड़े सूखने लगे। धीरे-धीरे रमाड़ी का यह प्रसिद्ध संतरा समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया। हजारों पेड़ों में से गिने चुने पेड़ ही रह गए थे। इस पर रमाड़ी के किसानों के साथ ही उद्यान विभाग की मेहनत रंग लाई और फिर से फलों की बागवानी शुरू हो गई। अपर उद्यान अधिकारी कुलदीप जोशी ने बताया कि उद्यान विभाग ने रमाड़ी के संतरा को पुनर्जीवन देने के लिए अहम कदम उठाए। मिट्टी का परीक्षण कराया। फल उत्पादकों को संतरा के पेड़ों को खाद, पानी देने की विधि बताई। सूखे पेड़ों की कटिंग कर फिर से फल देने लायक बनाया। वर्तमान में विभाग द्वारा प्रतिवर्ष चालीस हजार से ज्यादा पौधे किसानों को दिए जा रहे हैं।
संतरा, माल्टा, नींबू के वर्तमान हालातों पर जानकार किसान बताते हैं कि पहले के जमाने में इन फलों की गुड़ाई निराई के साथ ही मेहनत भी खूब की जाती थी, तो फल भी अच्छे होते थे। जलवायु परिवर्तन भी इस एक कारण हो सकता है। उनका कहना है कि किसानों को इस बात पर भी ध्यान देना होगा। वहीं, पर्यावरण प्रेमी किशन सिंह मलड़ा कहते हैं कि किसानों को हर साल फल तोड़ने के बाद पेड़ों को नियमित रूप से गोबर की खाद और पानी दिया जाना चाहिए। रासायनिक खाद डालने के बाद सिंचाई की जरूरत पड़ती है। सिंचाई नहीं होने से जो पेड़ सूख जाते हैं उन्हे पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता है। रमाड़ी के संतरों को सुरक्षित रखने के लिए किसानों को तकनीकी ट्रेनिंग दी गई. पौधों के संरक्षण के लिए फील्ड लेवल पर जाकर काम किया गया. लंबे समय के बाद इस साल मेहनत का फल दिखा है. वर्तमान में गांव में संतरे तोड़े जा रहे हैं और कुछ फल अभी पकने रह गए हैं. किसानों और विभाग को इस बार अच्छी ऊपज की उम्मीद थी. अब जाकर रमाड़ी गांव के किसानों और हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट की मेहनत रंग लाई. उन्होंने कहा कि इस साल फिर गांव के संतरों के पेड़ फलों से लद रहे हैं. उम्मीद की जा रही है कि अभी और अच्छा फल उत्पादन होगा. पिछली बार करीब 450 कुंतल संतरे का उत्पादन हुआ था. इस साल इससे दोगुना पैदावार की उम्मीद है. स्थानीय किसानों से भी बात की गई है. उनका कहना है कि इस साल उन्हें भी अच्छे मुनाफे की उम्मीद है. विभाग ने सूखे हुए संतरों के पेड़ों को पुनर्जीवित करने का काम किया है. किसानों को पेड़ों को खाद देने का तरीका, पानी देने की विधि, सूखे पेड़ों की कटिंग की विधि और तकनीकी तरीके से अच्छी उपज लेने की विधि बताई गई. रमाड़ी गांव का संतरा बागेश्वर की शान है. आज भी इसका प्रचलन पहले की तरह बना हुआ है जोकि क्षेत्र के लिए गर्व की बात है. पूर्व सीएम और राज्यपाल रहे भगत सिंह कोश्यारी का भी इन संतरों को देशभर में पहचान दिलाने में विशेष योगदान रहा है. रमाड़ी के संतरों का स्वाद इतना स्वादिष्ट होता है कि यदि आप एक बार इन संतरों को चख लेंगे, तो आप जीवनभर इसका स्वाद नहीं भूल पाएंगे. उन्होंने कहा कि रमाड़ी गांव के संतरों में पहाड़ी संतरों का स्वाद बसता है. इन संतरों की प्रजाति को संरक्षित करना बेहद जरूरी है ताकि भविष्य की पीढ़ियों को भी इस संतरे का स्वाद चखाया जा सके. संतरा, माल्टा, नींबू के वर्तमान हालातों पर जानकार किसान बताते हैं कि पहले के जमाने में इन फलों की गुड़ाई निराई के साथ ही मेहनत भी खूब की जाती थी, तो फल भी अच्छे होते थे। जलवायु परिवर्तन भी इस एक कारण हो सकता है। उनका कहना है कि किसानों को इस बात पर भी ध्यान देना होगा। वहीं, पर्यावरण प्रेमी किशन सिंह मलड़ा कहते हैं कि किसानों को हर साल फल तोड़ने के बाद पेड़ों को नियमित रूप से गोबर की खाद और पानी दिया जाना चाहिए। रासायनिक खाद डालने के बाद सिंचाई की जरूरत पड़ती है। सिंचाई नहीं होने से जो पेड़ सूख जाते हैं उन्हे पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता है।लेखक के.अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।