शंकर सिंह भाटिया
आप कहीं के भी रहने वाले हों, देहरादून आओ, नदी-खालों में कब्जा कर रहने लगो, सरकार आपके लिए रेड कारपेट लेकर खड़ी मिलेगी। लेकिन टूट रही पहाड़ियों के बीच खतरनाक जीवन यापन करने के लिए मजबूर मूल निवासी अपने हाल पर छोड़ दिए गए हैं। बिना बारिश बिना भूकंप के जिस तरह पैनगढ़ गांव में रात में आए भूस्खलन से एक पूरा परिवार असमय काल के गाल में समा गया, पहाड़ के 395 गांवों के लोग इसी खतरे से जूझ रहे हैं। लेकिन जब कोई ऐसी घटना होती है, थोड़ी देर के लिए सक्रियता दिखाई देती है, कुछ समय बाद सबकुछ ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।
उत्तराखंड सरकार के पास अवैध कब्जा कर नदी-खालों में बस गए लोगों को पुनर्वासित करने के लिए हजारों करोड़ का बजट उपलब्ध है, लेकिन जो वास्तव में आपदाओं से जूझ रहे हैं, उनके लिए कोई बजट नहीं है। जब उनके पुनर्वास की बारी आती है तो केंद्र सरकार पर मामला छोड़ दिया जाता है कि जब केद्र सरकार इसके लिए बजट देगी तब देखा जाएगा। उत्तराखंड की इस कड़वी सच्चाई के लिए यहां के जनप्रतिनिधि कम जिम्मेदार नहीं हैं। देहरादून समेत दूसरे तराई के शहरों में अवैध कब्जा कर राज्य से बाहर के लोगों को लाकर बसाने वाले जनप्रतिनिधि खम ठोककर यह काम करा रहे हैं, उन्हीं के दबाव में अवैध बसाए गए लोगों के पुनर्वास के लिए सरकार अरबों का बजट जारी कर देती है। पहाड़ के जनप्रतिनिधि अपनी सरकार पर ऐसा दबाव बनाने में भी नाकाम रहे हैं।
सन् 2013 की आपदा से पहले उत्तराखंड में 233 गांवों को रहने योग्य नहीं पाया गया। 2013 की आपदा ने पहाड़ में ऐसे गांवों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी कर दी। उसके बाद दैवी आपदा प्रभावित गांवों की संख्या तेजी से बढ़कर 395 हो गई। हालांकि इतनी बड़ी आपदा आने के बाद भी सर्वेक्षण की गति नहीं बढ़ी न ही पुनर्वास में तेजी आई। आपदा प्रबंध विभाग ने अब तक 225 गांवों का सर्वेक्षण किया है। 2013 से पहले इन 233 गांवों में से 101 गांवों का सर्वेक्षण किया गया था। अब आपदा प्रबंधन विभाग दावा कर रहा है कि सर्वेक्षण कार्य में तेजी लाने के साथ पुनर्वास कार्य में भी गति लाई जा रही है। सवाल उठता है कि क्या उत्तराखंड सरकार पुनर्वास के लिए चमोली जिले के पैनगढ़ जैसी घटनाओं का इंतजार कर रही है?
सरकार दावा कर रही है कि पुनर्वास योजना के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2021-22 में 45 गांवों के 521 परिवारों का पुनर्वास किया जा चुका है। जिस पर सरकार ने 21.27 करोड़ खर्च किए हैं। सरकार का दावा है कि इसके अलावा 42 अन्य आपदा प्रभावित परिवारों का पुनर्वास कार्य गतिमान है।
आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार पुनर्वास योजना के अंतर्गत पिथौरागढ़ जिले में 243 परिवारों का पुनर्वास किया गया, जिसके लिए 10.26 करोड़ की धनराशि जारी हुई। उत्तरकाशी जनपद में 114 आपदा प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए 4.3 करोड़ की धनराशि जारी की गई।
रूद्रप्रयाग जिले में 76 परिवारों के पुनर्वास के लिए 3.24 करोड़, टिहरी जिले में 37 परिवारों के लिए 1.57 करोड़, बागेश्वर जिले के 13 परिवारों के पुनर्वास के लिए 55.25 लाख रुपये, अल्मोडा़ जिले के 8 परिवारों के लिए 32.80 लाख रुपये तथा चमोली जिले के 30 परिवारों के पुनर्वास के लिए 1.27 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई है। विभाग के अनुसार वित्तीय वर्ष 2017-18 में आपदा प्रभावित 12 गांवों के 177 परिवारों का पुनर्वास हुआ। वर्ष 2018-19 में 6 गांवों के 151 परिवारों और वित्तीय वर्ष 2019-20 में 7 गांवों के 360 परिवारों एवं वित्तीय वर्ष 2020-21 में 13 गांवों के 258 आपदा प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया गया। वित्तीय वर्ष 2021-22 में 45 गांवों के 521 आपदा प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया जा चुका है। 10 आपदा प्रभावित गांवों के 42 परिवारों का पुनर्वास किया जा रहा है। इनकी सूची शासन स्तर बनाई जा चुकी है, कार्यवाही शुरू होने का इंतजार है। इस सूची में चमोली जनपद के थराली ब्लॉक में सूना कुल्याडी तोक के 3 परिवार, झलिया गांव के 2 परिवार, रूद्रप्रयाग जिले के 15 परिवार, उत्तरकाशी जिले का एक परिवार तथा पिथौरागढ़ में 21 परिवार शामिल हैं।
सरकार के ये दावे यदि सही हैं, तब भी यह प्रयास उंट के मुंह में जीरे के समान हैं। यदि वास्तव में आपदा पीड़ितों के साथ न्याय करना है तो सभी को पुनर्वासित करना होगा और यह कार्य जितना जल्दी हो उतना जल्दी करना होगा।
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