देहरादून। पहाड़ में सरकार तीन हजार स्कूलों को बंद कर रही है। इस निर्णय के पीछे छात्रहीन स्कूल एक प्रमुख कारण बताया जाता है। स्कूलों के छात्र विहीन होने के पीछे मूल कारण पहाड़ से हो रहा पलायन है तो स्कूलों का शिक्षक विहीन होना भी एक कारण है। जब स्कलों में शिक्षक ही नहीं होंगे तो अभिभावक अपने नौनिहालों को दूसरे स्कूलों खासकर प्राइवेट स्कूलों में भर्ती कराएंगे ही।
पहाड़ के स्कूलों को राज्य सरकार, जनप्रतिनिधियों तथा केंद्रीय मंत्रियों द्वारा शिक्षकविहीन करने का एक मामला पिछले कुछ सालों से फिजाओं में है। कांग्रेसराज से ही चले आ रहे इस प्रकरण में केंद्रीय मानवसंसाधन विकास मंत्री भी कूद गए हैं। बताया जा रहा है कि उन्हीें के निर्देश पर अब इन शिक्षकों को पहाड़ भेजने से रोकने के लिए अंतिम मोहर लगी है।
मामला कांग्रेसराज में शुरू हुआ था। आचार सहिंता लगने से ठीक पहले पर्वतीय जनपदों से मैदानी जनपदों के सुगम विद्यालयों में लगभग 500 शिक्षक स्थानांतरित किये गए थे। लेकिन इनकी जगह पर किसी को पहाड़ नहीं भेजा गया। बाद में स्थानांतरणों को स्थगित करने निर्देश हुए। मामला कोर्ट तक भी गया। लेकिन पहाड़ से मुक्त होकर आए शिक्षक राजनीतिज्ञों की शरण में जाकर अपनी वापसी को रोकते रहे।
एक तरफ विधायक तथा नेता मुख्यमंत्री के माध्यम से इन शिक्षकों को मैदान में ही रोके रखने का आग्रह करते रहे, दूसरी तरफ शिक्षा निदेशालय के अफसर इन्हें मैदान में ही बनाए रखने के लिए आदेश पर आदेश जारी करते रहे, जिसमें एक लाइन जरूर लिखी होती कि शासन के आदेश के अनुक्रम में उन्हें यह कहने का निर्देश हुआ है।
मतलब यह कि पहाड़ के शिक्षकविहीन स्कूलों पर शिक्षकों और नेताओं का दबाव भारी पड़ता चला गया। इन सालों में इनमें से बहुत सारे स्कूल शिक्षक न होने की वजह से छात्र विहीन होते चले गए।
अब इन 500 शिक्षकों की पहाड़ वापसी के मामले में एक नया मोड़ आ गया है। इन शिक्षकों के द्वारा शिक्षा मंत्री पर भी माननीय केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल के माध्यम से दबाव बनाने के प्रयास किए गए। डा.निशंक के दिल्ली दरबार में बड़ी संख्या में ऐसे शिक्षक पहुंचे। पुख्ता सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, निशंक ने इन शिक्षकों को यथावत रखने के निर्देश दे दिए हैं।
गौरतलब है कि शिक्षा मंत्री के द्वारा विधानसभा में ली गयी समीक्षा बैठक दौरान पहाड़ के विद्यालयों में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए विभागीय अधिकारियों को कड़े निर्देश दिए गए थे। जिसमें माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में इन शिक्षकों को मूल विद्यालयों में भेजने को कहा गया।
शिक्षा मंत्री ने विभागीय अधिकारियों को विद्यालयवार डेटा उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही व बार-बार शिक्षा मंत्री के आदेशों की अवहेलना के कारण डेटा उपलब्ध नहीं कराया जा सका। जिसके कारण शिक्षा मंत्री ने अपनी कड़ी नाराजगी जताई और समीक्षा बैठक नहीं करने का फैसला किया।
शिक्षा मंत्री ने एक बार फिर विधानसभा स्थित अपने कक्ष में आयोजित बैठक में अपनी चिंता जाहिर की, जिसमें उन्होंने पहाड़ के दुर्गम स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति एवं पूर्ति करने के लिए अब स्कूल कैडर की बात कही है, लेकिन सचिव आर मीनाक्षी सुन्दरम के साथ ली गई इस बैठक में आचार संहिता के दौरान तबादला हुए शिक्षकों की पहाड़ वापसी के बारे में कोई दिशा निर्देश नहीं हुए। अर्थात अब हम यह मान लें कि डॉ निशंक से हुई शिक्षकों की मुलाकात काम कर गई?
पहाड़ में शिक्षकों की भारी कमी के बीच यह सवाल हर आदमी के जहन में है। आपको बता दें इन 500 शिक्षकों द्वारा हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसे कोर्ट ने निरस्त कर दिया था। केवल जो गंभीर रूप से बीमार हैं, उन पर आदेश लागू नहीं होता। इन शिक्षकों की पहाड़ वापसी का आदेश दिनाक 25 अप्रैल 2018 को होने के बाद भी इनकी वापसी नहीं हो पाई है।
इस आदेश को जारी हुए एक वर्ष से भी ज्यादा समय होने के बाद भी यह मामला लटका हुआ है। इसके पीछे राजनितिक संरक्षण एकमात्र कारण नजर आ रहा है। पहाड़ की व्यवस्थाओं को बदहाल करने के लिए नेताओं के इसी तरह के निर्णय जिम्मेदार हैं। कुछ शिक्षकों की जिद के सामने पूरे पहाड़ की शिक्षा व्यवस्था को दरकिनार करने वाले नेता पहाड़ की बदहाली के लिए जिम्मेदार नहीं हैं?