ज्योतिर्मठ।
लखनऊ स्थित बिरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (BSIP) के वैज्ञानिक—डॉ. हुकम सिंह और डॉ. रणवीर सिंह नेगी,इन दिनों उत्तराखंड के नीति-मलारी-सुमना क्षेत्र में एक आधिकारिक भूवैज्ञानिक अध्ययन पर हैं। उनका उद्देश्य है गढ़वाल हिमालय की उन शैल-संरचनाओं की खोज करना, जो करीब 520-510 मिलियन वर्ष पुराने समुद्री जीवन के जीवाश्म संरक्षित किए हुए हैं, जो कैंब्रियन काल के हैं।
यह दूरस्थ क्षेत्र तैथ्यन हिमालय का हिस्सा है, जो एक समय में विशाल और प्राचीन तैथिस महासागर की तलहटी हुआ करता था। यह महासागर अब भले ही लुप्त हो गया हो, लेकिन उसकी कहानियाँ आज भी इन चट्टानों के माध्यम से सामने आती हैं। BSIP के वैज्ञानिक इन तलछटी अनुक्रमों का अध्ययन कर भारतीय उपमहाद्वीप में समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के प्रारंभिक विकास को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर, डॉ. सिंह और डॉ. नेगी ने पीएम श्री राजकीय आदर्श बालिका इंटर कॉलेज, ज्योतिरमठ का दौरा किया और प्रभारी प्रधानाचार्य श्रीमती तारा राणा समस्त शिक्षिकाओं और छात्राओं के साथ एक विशेष इंटरैक्टिव सत्र आयोजित किया, जिससे पृथ्वी के अतीत और उसके भविष्य को सुरक्षित रखने के महत्व के प्रति जिज्ञासा जगाई जा सके।
कार्यक्रम की मुख्य विशेषता थी जीवाश्मों की प्रत्यक्ष प्रदर्शनी, जिसमें छात्राओं को निम्नलिखित वास्तविक जीवाश्म देखने को मिले:
• सिंडोरा वृक्ष की जीवाश्मित लकड़ी (प्लियो-प्लीस्टोसीन काल, लगभग 30–10 लाख वर्ष पूर्व) झारखंड से, जिसे आधुनिक नीलगिरी (यूकेलिप्टस) की ताजी लकड़ी के साथ दिखाया गया, ताकि यह बताया जा सके कि समय के साथ जीवन की कहानी जीवाश्मों में कैसे संरक्षित होती है।
• ग्लॉसोप्टेरिस टेन्यूनर्विस नामक बीज फर्न की पत्ती की छाप (लेट पर्मियन काल, लगभग 260–250 मिलियन वर्ष पूर्व), जो ओडिशा से प्राप्त हुई है।
• उत्तराखंड के टनकपुर क्षेत्र से प्राप्त Cinnamomum (तेजपत्ता) प्रजाति की सुंदर रूप से संरक्षित जीवाश्मित पत्ती।
इस दौरान वैज्ञानिकों ने छात्रों को विश्व पर्यावरण दिवस के महत्व के बारे में जागरूक किया और बताया कि कैसे प्राकृतिक विरासत और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना हम सभी की जिम्मेदारी है।
विश्व पर्यावरण दिवस 2025 की थीम “प्लास्टिक प्रदूषण को हराएं” के अनुरूप, उन्होंने प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने की आवश्यकता पर बल दिया। छात्रों को एकल-प्रयोग प्लास्टिक का उपयोग कम करने, स्थानीय सफाई अभियानों में भाग लेने और स्थायी जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया गया।
वैज्ञानिकों ने पुरापादविज्ञान (Palaeontology) के मूल सिद्धांतों को भी समझाया और बताया कि कैसे जीवाश्म जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता में समय के साथ हुए बदलावों की जानकारी देते हैं। उन्होंने पृथ्वी विज्ञान और पुरापादविज्ञान में करियर विकल्पों पर भी चर्चा की और विशेष रूप से छात्राओं को वैज्ञानिक अनुसंधान में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
यह प्रयास BSIP की दूरस्थ हिमालयी क्षेत्रों में विज्ञान शिक्षा, पर्यावरणीय चेतना और धरोहर संरक्षण को बढ़ावा देने की निरंतर प्रतिबद्धता का हिस्सा है।