डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
मूलरूप से सुशीला बलूनी उत्तरकाशी के बड़कोट की रहने वाली थी. सुशीला बलूनी का विवाह नंदा दत्त बलूनी से हुआ. शुरुआती शिक्षा दीक्षा उन्होंने बड़कोट में ही ली थी. यही नहीं सुशीला बलूनी लंबे समय तक देहरादून बार एसोसिएशन की सदस्य भी रही. यही नहीं, उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान सुशीला बलूनी ने पूरे प्रदेश का भ्रमण करते हुए लखनऊ में लंबे समय तक संघर्ष किया था. सुशीला बलूनी सिर्फ लखनऊ तक ही सीमित नहीं रही बल्कि उनका संघर्ष लखनऊ से दिल्ली तक पहुंच गया. इस दौरान सुशीला बलूनी महिलाओं के उत्थान को लेकर हमेशा ही अपनी आवाज बुलंद करती दिखाई दी. राज्य आंदोलन के दौरान सुशीला बलूनी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लाया. साथ ही वो महिला आंदोलनकारियों का आंदोलन के दौरान नेतृत्व भी करती थी.सुशीला बलूनी, ना सिर्फ राज्य आंदोलनकारी रही बल्कि कई क्षेत्रों में भी उन्होंने अपनी किस्मत अजमाई. सुशीला बलूनी अधिवक्ता भी थी. इसके साथ ही सभासद और विधानसभा चुनाव में भी अपनी किस्मत आजमा चुकी हैं. सुशीला बलूनी, प्रदेश की महिलाओं के हितों के लिए किसी भी मंच पर बेबाकी से अपनी बात रखती थीं. साथ ही तमाम क्षेत्रों में लोगों को प्रेरणा भी देती थी. सुशीला बलूनी को उनके व्यक्तित्व के चलते किसी सभी सरकारों में तवज्जो दी जाती थी.. सुशीला बलूनी पहली ऐसी महिला हैं जिन्होंने अगस्त 1994 को कलेक्ट्रेट ऑफिस में बेमियादी अनशन किया था. यही नहीं, बलूनी पर्वती गांधी इंद्रमणि बडोनी के नेतृत्व में गठित उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के केंद्रीय संयोजक मंडल की सदस्य भी रही. इसके अलावा उत्तराखंड राज्य निर्माण में कई बार जेल जाने के साथ ही लाठीचार्ज के दौरान कई बार घायल भी हुई. पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा, सुशीला बलूनी के राजनीतिक गुरु थे. जिन से ही प्रेरित होकर सुशीला बलूनी राजनीति में भी आई. राज्य आंदोलनकारी सुशीला बलूनी प्रदेश की पहली ऐसी महिला थी जिन्होंने राज्य आंदोलन की लड़ाई लड़ी. सुशीला बलूनी ने अलग राज्य की मांग को लेकर अपने दो साथियों रामपाल और गोविंद राम ध्यानी के साथ मिलकर देहरादून के कचहरी स्थित शहीद स्मारक पर आंदोलन शुरू किया. कुल मिलाकर उत्तराखंड राज्य निर्माण में सुशीला बलूनी की एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यही नहीं, सुशीला बलूनी एक समाजसेवी के रूप में भी काम करती रही. अधिवक्ता रही बलूनी तमाम संगठनों में रहकर राज्य के विकास और जनता की सेवा के लिए लंबे समय तक काम किया. उत्तराखंड राज्य गठन के बाद साल 2002 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान सुशीला बलूनी ने क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन इस चुनाव में भी बलूनी को सफलता नहीं मिली. इसके बाद साल 2003 में मेयर पद के लिए किस्मत आजमाई, लेकिन त्रिकोणीय समीकरण के चलते बलूनी को सफलता नहीं मिली. इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी ने उन्हें भाजपा की सदस्यता दिलाई. लिहाजा, भाजपा सरकार में उत्तराखंड आंदोलनकारी सम्मान परिषद और उत्तराखंड राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. वह संयुक्त संघर्ष समिति की महिला अध्यक्ष के रूप में लगातार संघर्ष रत रही। राज्य आंदोलन के दौरान वह पूरे प्रदेश के भ्रमण व लखनऊ से लेकर दिल्ली तक संघर्षरत रही। वह शराब बंदी से लेकर महिलाओं के उत्थान से लेकर राज्य आंदोलन के लिए जेल भरो , रेल रोको , धरना प्रदर्शन आदि में मुख्य भूमिका निभाई। पृथक राज्य आंदोलन में लिए उनका बड़ा योगदान रहा है, जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। पुण्यतिथि पर शत्- शत् नमन *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*