डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
सोयाबीन.वैज्ञानिक नाम-ग्लाईसीन मैक्स सोयाबीन फसल है। यह दलहन के बजाय तिलहन की फसल मानी जाती है। सोयाबीन दलहन की फसल है, शाकाहारी मनुष्यों के लिए इसको मांस भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें बहुत अधिक प्रोटीन होता है। इसका वानस्पतिक नाम ग्लाईसीन मैक्स है। स्वास्थ्य के लिए एक बहुउपयोगी खाद्य पदार्थ है। सोयाबीन एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है। इसके मुख्य घटक प्रोटीन, कार्बोहाइडेंट और वसा होते है। सोयाबीन में 38.40 प्रतिशत प्रोटीन, 22 प्रतिशत तेल, 21 प्रतिशत कार्बोहाइडेंट, 12 प्रतिशत नमी तथा 5 प्रतिशत भस्म होती है। सोयाप्रोटीन के एमीगेमिनो अम्ल की संरचना पशु प्रोटीन के समकक्ष होती हैं। अतः मनुष्य के पोषण के लिए सोयाबीन उच्च गुणवत्ता युक्त प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत हैं। कार्बोहाइडेंट के रूप में आहार रेशा, शर्करा, रैफीनोस एवं स्टाकियोज होता है जो कि पेट में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों के लिए लाभप्रद होता हैं।
सोयाबीन तेल में लिनोलिक अम्ल एवं लिनालेनिक अम्ल प्रचुर मात्रा में होते हैं। ये अम्ल शरीर के लिए आवश्यक वसा अम्ल होते हैं। इसके अलावा सोयाबीन में आइसोफ्लावोन, लेसिथिन और फाइटोस्टेरॉल रूप में कुछ अन्य स्वास्थवर्धक उपयोगी घटक होते हैं।सोयाबीन न केवल प्रोटीन का एक उत्कृष्ट स्त्रौत है बल्कि कई शारीरिक क्रियाओं को भी प्रभावित करता है। विभिन्न शोधकर्ताओं द्वारा सोया प्रोटीन का प्लाज्मा लिपिड एवं कोलेस्टेरॉल की मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया गया है और यह पाया गया है कि सोया प्रोटीन मानव रक्त में कोलेस्टेरॉल की मात्रा कम करने में सहायक होता है। निर्दिष्ट स्वास्थ्य उपयोग के लिए सोया प्रोटीन संभवतः पहला सोयाबीन घटक है।विश्व का 60ः सोयाबीन अमेरिका में पैदा होता है। भारत मे सबसे अधिक सोयाबीन का उत्पादन मध्यप्रदेश करता है। मध्यप्रदेश में इंदौर में सोयाबीन रिसर्च सेंटर है।
सोयाबीन घटकों के निर्दिष्ट स्वास्थ्य कार्य
घटक निर्दिष्ट स्वास्थ्य कार्य
प्रोटीन कोलेस्ट्राल को कम करना, मोटापा कम करना, उम्र बढ़ने से रोकना, कैंसर रोधी
प्रोटीन हाइडोंलाइजेट पोषक, मोटापा कम करना, उच्च रक्त चाप से बचाव
लेक्टिन प्रतिरक्षा क्रिया
टिंप्सिन इन्हीबिटर कैंसर रोधी
आहार फाइबर वसा को कम करना, पेट कैंसर रोधी
ऑलिगो.सैकराइड आंतों में पाए जाने वाले बिफीडो बैक्टीरिया के लिए लाभदायक
लिनोलिक एसिड आवश्यक फैटी एसिड, कोलेस्ट्राल को कम करना
लिनोलेनिक एसिड कोरोनरी हृदय रोग के जोखिम को कम करने में सहायक, एलर्जी रोधक
लेसिथिन वसा को कम करना, स्मृति में सहायक
स्टेरोल वसा को कम करना
टोकोफेरोल कोरोनरी हृदय रोग के जोखिम को कम करने में सहायक, एंटीऑक्सीडेंट गुण
विटामिन के थक्का रोधी, ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम, कैंसर रोधी
विटामिन बी बेरीबेरी रोग रोधी
फाईटेट कैंसर रोधी
सैपोनिन वसा को कम करना, एंटीऑक्सीडेंट गुण
आइसोफ्लावॉन ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम, कैंसर रोधी
सोयाबीन के प्रति किसानों का रूझान कम होता जा रहा है। अरहर व तुअर जैसी दलहन फसलों से मिल रहे अधिक मुनाफे के कारण किसान तिलहन फसल में शामिल सोयाबीन से किनारा करने लगे हैं। किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए अब कृषि विभाग किसानों को मुफ्त सोयाबीन बीज वितरित कर रहा है।कुमाऊं मंडल में खरीफ सीजन 2015.16 में 11141 हेक्टेयर क्षेत्रफल में तकरीबन 15920 मीट्रिक टन सोयाबीन का उत्पादन किया गया, लेकिन इस बार किसानों के सोयाबीन के प्रति घटते रूझान से सोयाबीन का रकबा घटने का अनुमान लगाया जा रहा है। खरीफ सीजन 2017.18 में कुमाऊं के विभिन्न जिलों से सोयाबीन के बीज की मात्र तीन हजार क्विटल की डिमांड आई है, जबकि पहले यह पांच से दस हजार क्िवटल के करीब थी।
पिछले दो खरीफ सत्रों में सोयाबीन बोने वाले किसानों को सूखा और अतिवृष्टि जैसे मौसमी कारकों के कारण नुकसान उठाना पड़ा। उपज की अपेक्षा अच्छी कीमत न मिलने के कारण भी किसानों को तिलहनी फसल सोयाबीन से मोह भंग हो रहा है। फैक्ट्री बंद होने से उत्पादन पर असर हल्दूचौड़ में सोयाबीन फैक्ट्री बंद होने के बाद सोयाबीन के उत्पादन में लगातार कमी आई है। अब उत्पादन के अनुरूप खपत न होने के कारण भी किसान सोयाबीन नहीं खरीद रहे। फैक्ट्री में खपत न होने के कारण पहले उत्पादन पर जोर था। देश के अन्य राज्यों से भी सोयाबीन से तेल और अन्य उत्पाद तैयार करने के लिए सोयाबीन हल्दूचौड़ लाया जाता था, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। सोयाबीन के बीजों को लेकर लगातार किसानों की शिकायतें सामने आ रही है। विगत दो वर्षों से सोयाबीन के सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहे हैं। इस बार खरीफ सीजन 2018 में वितरित किए गए सोयाबीन बीज को लेकर भी शिकायतें सामने आने लगी हैं। कृषि विशेषज्ञ इसके पीछे मौसम में परिवर्तन को एक बड़ी वजह मान रहे हैं। प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकुल बीज न मिलने से दिक्कतें हो रही है। इस बार नैनीताल जिले के कोटाबाग ब्लाक में सोयाबीन का सात क्िवटल बीज खराब निकला, जबकि तराई.भाबर के इलाकों में शिकायतें नहीं आई।
खरीफ सीजन 2018 में कुमाऊं के छह जिलों में 1024.66 क्विंटल सोयाबीन का बीज किसानों का वितरित किया गया। जबकि विगत वर्ष 2017 में केवल 652.25 क्विंटल बीज ही वितरित किया गया। सोयाबीन के बीजों पर बीज ग्राम योजना के अंतर्गत किसानों को प्रति किलो बीज की खरीद पर 36 रुपये की सब्सिडी दी जाती है। साथ ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन तिलहन पर प्रति किलो 40 रुपये की सब्सिडी दी जाती है। सब्सिडी पर मिल रहे बीजों को लेकर किसान अक्सर अच्छे परिणाम नहीं आने की शिकायत करते हैं। हालांकि सोयाबीन की फसल अभी तैयार हो रही है, इसलिए यह सीजन की समाप्ति के बाद ही पता चल पाएगा कि वितरित किए गए बीजों से कितनी मात्रा में फसल का उत्पादन हुआ। तीन स्तरों पर होती है बीजों की जांच किसानों को वितरित करने के लिए राष्ट्रीय बीज विकास निगम एवं तराई बीज विकास निगम से मांग के अनुरूप कृषि विभाग को बीज उपलब्ध कराए जाते हैं। बीजों की पहली जांच उत्पादक संस्था करती है, इसके बाद उत्तराखंड राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था बीजों की जांच करती है। तीसरे स्तर पर कृषि विभाग अपनी लैब में बीजों की गुणवत्ता जांचता है।
राजकीय कृषि परीक्षण एवं प्रदर्शन केंद्र की प्रयोगशाला में परीक्षण के बाद ही बीज वितरण के लिए गोदामों में भेजे जाते हैं। इतने स्तरों पर जांच के बाद भी सोयाबीन उत्पादन में किसानों को अनुकूल परिणाम नहीं मिल रहे। स्थानीय स्तर पर तैयार नहीं हो पा रहे बीज सोयाबीन की खरीद के लिए कृषि विभाग को तराई बीज विकास निगम और राष्ट्रीय बीज विकास निगम पर ही निर्भर रहना पड़ता है। ज्यादातर बीज मध्यप्रदेश और देश के अन्य सोयाबीन उत्पादक राज्यों से होते हैं। प्रदेश की जलवायु, पर्वतीय क्षेत्रों की भौगोलिक परिस्थितियों में यह बीज मौसम अनुकूल न होने पर अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाते। बीज खराब होने का यह भी है कारण सोयाबीन के बीज अन्य अनाजों के मुकाबले ज्यादा नाजुक होते हैं। बुवाई कुछ घंटों बाद बारिश होने से इन बीजों में फंगस लग जाता है। यहां तक की बीज के छिलके में क्रैक आने से भी बीज नहीं पनप पाता। बीज के पैकेट को ट्रांसपोर्टेशन के दौरान पटकने से भी बीज को नुकसान पहुंचता है। जमीन से तीन इंच से ज्यादा गहराई पर बोने से भी बीज पौधा नहीं बन पाता। तिलहन उद्योग के शीर्ष संगठन सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन सोपा के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल सोयाबीन का उत्पादन 1.148 करोड़ टन रहेगा, जबकि पिछले साल यह 83.6 लाख टन के करीब था। विश्व में सोयाबीन के उत्पादन में भारत पांचवे स्थान पर है। कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार सोयाबीन का उत्पादन 1.37 करोड़ टन और सरसों का उत्पादन 87.8 लाख टन रहने का अनुमान है। मूंगफली का उत्पादन 65 लाख टन होने का अनुमान है। सरकार के लाख प्रयास के बावजूद देश दाल के उत्पादन के मामले में अब तक आत्मनिर्भर नहीं है।