स्वर्णप्राशन (आयुर्वेदिक इम्यूनाइजेशन)। स्वर्ण प्राशन हमारे सोलह संस्कारों में से एक है। स्वर्णप्राशन दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें पहला शब्द स्वर्ण और दूसरा प्राशन्न है। स्वर्ण का अभिप्राय सोने से है और प्राशन्न का चटाने से है। इस प्रकार सोने को चटाना ही स्वर्णप्राशन कहा जाता है।
जिस प्रकार एलोपैथिक पद्धति में बीमारी से बचने के लिए टीकाकरण किया जाता है, उसी प्रकार आयुर्वेद में बीमारी से बचने के लिए स्वर्णप्राशन किया जाता है। इस प्रकार स्वर्णप्राशन आयुर्वेदिक इम्यूनाइजेशन है। स्वर्णप्राशन के घटक स्वर्ण-भष्म, गोघृत, शहद, ब्राह्मी, शंखपुष्पी आदि द्रव्यों को मिलाकर स्वर्णप्राशन बनाया जाता है।
स्वर्णप्राशन के लाभ-1.इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ती है। 2.बुद्धि और स्मरण शक्ति तेज होती है। 3. बच्चों में बार-बार सर्दी, नजला, जुकाम, बुखार, खांसी, टांसिल की समस्या नहीं होती है। 4. भूख और पाचन प्रक्रिया को बढ़ता है। 5. बच्चों में शारीरिक और मानसिक समस्या पैदा नहीं होने देता। 6. सुनने, देखने, बोलने संबंधी प्रक्रियाओं का विकास करता है।
स्वर्णप्राशन देने की विधि क्या है-स्वर्णप्राशन मुख्यतः पुष्य नक्षत्र में देना चाहिए। यह जन्म से लेकर 16 साल तक के बच्चों को कराया जाता है। 0 से 1 वर्ष एक बूंद, 1 से 3 वर्ष दो बूंद, 3 से 16 वर्ष चार बूंद देना चाहिए। इस प्रकार स्वर्णप्राशन की उपयोगिता को देखते हुए पता चलता है कि स्वर्णप्राशन को एक अभियान की तरह चलाया जाना चाहिए। जिस प्रकार बच्चे के जन्म होने के बाद ही उनमें टीकाकरण की प्रक्रिया की जाती है, या जिस प्रकार पोलियो डाप पिलाने की व्यवस्था की जाती है, उसी प्रकार स्वर्णप्राशन की व्यवस्था भी की जानी चाहिए।
मर्म चिकित्सा केंद्र एवं मृत्युंजय क्लीनिक गढ़ी पीपलकोटी चमोली के चिकित्साधिकारी डा.विपिन चंद्रा का कहना है कि टीकाकरण अभियान की तरह स्वर्णप्राशन अभियान चलाने की अत्यंत आवश्यकता है।