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उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच – दिल्ली के तत्वावधान में मातृभाषा कक्षा का हुआ भव्य समापन

10/06/25
in उत्तराखंड, देहरादून, साहित्य
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मातृभाषा कुमाउनी, गढ़वाली की कक्षाओं के समापन के प्रथम सत्र का शुभारंभ सरस्वती मॉं की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्जवलन के साथ किया गया। इसके उपरांत बच्चों द्वारा मंचस्थ अतिथियों का बैच लगाकर व पुष्प भेंट कर सम्मान किया गया। संगीत के साथ बच्चों द्वारा कुमाऊनी में सरस्वती वंदना ” दैणी है जये मॉं सरस्वती” के साथ अतिथियों के सम्मान में स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया। हारमोनियम पर त्रिभुवन जलाल व महिमा जलाल व ढोलक पर दक्ष रावत द्वारा संगत दी गयी।मातृभाषा शिक्षण कक्षा केन्द्र – दुभणा, क्षेत्र – ताड़ीखेत (अल्मोड़ा) में केन्द्र प्रमुख व मातृभाषा शिक्षक त्रिभुवन सिंह जलाल के सहयोग से विगत 02 मई से संचालित कक्षाओं का आज समापन किया गया। मातृभाषा शिक्षक त्रिभुवन सिंह जलाल जी द्वारा सभी मंचस्थ अतिथियों का स्वागत करते हुए मातृभाषा कक्षाओं के उद्देश्य पर अपनी बात रखी।अपनी मातृभाषा को संरक्षण, संवर्द्धन प्रदान करना हम सब की नैतिक जिम्मेदारी है। अपनी साहित्य- संस्कृति अपने रीति -रिवाज को अगली पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाना आवश्यक है। तभी भावी पीढ़ी अपनी साहित्य – संस्कृति से परिचित हो पाएगी। अपनी साहित्य संस्कृति के संरक्षण के लिए त्रिभुवन जलाल (प्र.अ.) पूर्व से ही प्रयास करते आये हैं। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि पूर्व जिला पंचायत सदस्य चन्द्रशेखर भट्ट ने अपनी बात रखते हुए कहा, कि आज के बच्चे अपनी साहित्य- संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, उन्हें अपनी संस्कृति से जोड़े रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। भारत ज्ञान विज्ञान समिति – अल्मोड़ा उत्तराखंड के जिला सचिव व संयोजक मातृभाषा कुमाउं मंडल कृपाल सिंह शीला ने उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच- दिल्ली का प्रशंसनीय सहयोग के लिए आभार व्यक्त करने के साथ ही मातृभाषा कक्षा के सफल संचालन के लिए त्रिभुवन सिंह जलाल व सभी सहयोगियों,अभिभावकों व प्रतिभागी बच्चों का भी आभार व्यक्त किया । पूर्व कमांडर नौसेना दिगम्बर सिंह जलाल जी द्वारा कुमाऊनी भाषा के महत्व बताते हुए इस बात पर जोर दिया कि आज के समय में हमें अपनी कुमाऊनी भाषा को संरक्षण देने की अत्यधिक आवश्यकता है। आज हम अपने घरों में कुमाऊनी भाषा का बहुत कम मात्रा में प्रयोग करते हैं, जबकि अन्य लोग जैसे पंजाबी अपनी पंजाबी में व गढ़वाली अपनी गढ़वाली में ही बात करते हैं। मंचस्थ अतिथि ऑनरेरी कैप्टन लक्ष्मण सिंह रावत जी द्वारा उत्तराखंड की अपनी एक अलग भाषा बनाये जाने व स्कूलों के पाठ्यक्रम में इसे शामिल करने पर बल दिया। पूर्व प्रधान -दुभड़ा रामसिंह रावत ने कहा, कि हम चाहे जितनी भाषा सीखें, बोले पर अपनी मातृभाषा को कभी ना भूलें। हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए। यह हमारी मातृभाषा होने के साथ हमारी अपनी पहचान है। मंचस्थ नवाचारी शिक्षक दामोदर पाण्डे,दीपक शर्मा व महेन्द्र सिंह बिष्ट जी द्वारा मातृभाषा कुमाऊनी के संरक्षण के सफल प्रयासों के लिए डॉउत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच – दिल्ली के तत्वावधान में मातृभाषा कक्षा का हुआ भव्य समापन :-

मातृभाषा कुमाउनी, गढ़वाली की कक्षाओं के समापन के प्रथम सत्र का शुभारंभ सरस्वती मॉं की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्जवलन के साथ किया गया। इसके उपरांत बच्चों द्वारा मंचस्थ अतिथियों का बैच लगाकर व पुष्प भेंट कर सम्मान किया गया। संगीत के साथ बच्चों द्वारा कुमाऊनी में सरस्वती वंदना ” दैणी है जये मॉं सरस्वती” के साथ अतिथियों के सम्मान में स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया। हारमोनियम पर त्रिभुवन जलाल व महिमा जलाल व ढोलक पर दक्ष रावत द्वारा संगत दी गयी।मातृभाषा शिक्षण कक्षा केन्द्र – दुभणा, क्षेत्र – ताड़ीखेत (अल्मोड़ा) में केन्द्र प्रमुख व मातृभाषा शिक्षक त्रिभुवन सिंह जलाल के सहयोग से विगत 02 मई से संचालित कक्षाओं का आज समापन किया गया। मातृभाषा शिक्षक त्रिभुवन सिंह जलाल जी द्वारा सभी मंचस्थ अतिथियों का स्वागत करते हुए मातृभाषा कक्षाओं के उद्देश्य पर अपनी बात रखी।अपनी मातृभाषा को संरक्षण, संवर्द्धन प्रदान करना हम सब की नैतिक जिम्मेदारी है। अपनी साहित्य- संस्कृति अपने रीति -रिवाज को अगली पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाना आवश्यक है। तभी भावी पीढ़ी अपनी साहित्य – संस्कृति से परिचित हो पाएगी। अपनी साहित्य संस्कृति के संरक्षण के लिए त्रिभुवन जलाल (प्र.अ.) पूर्व से ही प्रयास करते आये हैं। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि पूर्व जिला पंचायत सदस्य चन्द्रशेखर भट्ट ने अपनी बात रखते हुए कहा, कि आज के बच्चे अपनी साहित्य- संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, उन्हें अपनी संस्कृति से जोड़े रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। भारत ज्ञान विज्ञान समिति – अल्मोड़ा उत्तराखंड के जिला सचिव व संयोजक मातृभाषा कुमाउं मंडल कृपाल सिंह शीला ने उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच- दिल्ली का प्रशंसनीय सहयोग के लिए आभार व्यक्त करने के साथ ही मातृभाषा कक्षा के सफल संचालन के लिए त्रिभुवन सिंह जलाल उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच – दिल्ली के तत्वावधान में मातृभाषा कक्षा का हुआ भव्य समापन :-

मातृभाषा कुमाउनी, गढ़वाली की कक्षाओं के समापन के प्रथम सत्र का शुभारंभ सरस्वती मॉं की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्जवलन के साथ किया गया। इसके उपरांत बच्चों द्वारा मंचस्थ अतिथियों का बैच लगाकर व पुष्प भेंट कर सम्मान किया गया। संगीत के साथ बच्चों द्वारा कुमाऊनी में सरस्वती वंदना ” दैणी है जये मॉं सरस्वती” के साथ अतिथियों के सम्मान में स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया। हारमोनियम पर त्रिभुवन जलाल व महिमा जलाल व ढोलक पर दक्ष रावत द्वारा संगत दी गयी।मातृभाषा शिक्षण कक्षा केन्द्र – दुभणा, क्षेत्र – ताड़ीखेत (अल्मोड़ा) में केन्द्र प्रमुख व मातृभाषा शिक्षक त्रिभुवन सिंह जलाल के सहयोग से विगत 02 मई से संचालित कक्षाओं का आज समापन किया गया। मातृभाषा शिक्षक त्रिभुवन सिंह जलाल जी द्वारा सभी मंचस्थ अतिथियों का स्वागत करते हुए मातृभाषा कक्षाओं के उद्देश्य पर अपनी बात रखी।अपनी मातृभाषा को संरक्षण, संवर्द्धन प्रदान करना हम सब की नैतिक जिम्मेदारी है। अपनी साहित्य- संस्कृति अपने रीति -रिवाज को अगली पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाना आवश्यक है। तभी भावी पीढ़ी अपनी साहित्य – संस्कृति से परिचित हो पाएगी। अपनी साहित्य संस्कृति के संरक्षण के लिए त्रिभुवन जलाल (प्र.अ.) पूर्व से ही प्रयास करते आये हैं। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि पूर्व जिला पंचायत सदस्य चन्द्रशेखर भट्ट ने अपनी बात रखते हुए कहा, कि आज के बच्चे अपनी साहित्य- संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, उन्हें अपनी संस्कृति से जोड़े रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। भारत ज्ञान विज्ञान समिति – अल्मोड़ा उत्तराखंड के जिला सचिव व संयोजक मातृभाषा कुमाउं मंडल कृपाल सिंह शीला ने उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच- दिल्ली का प्रशंसनीय सहयोग के लिए आभार व्यक्त करने के साथ ही मातृभाषा कक्षा के सफल संचालन के लिए त्रिभुवन सिंह जलाल व सभी सहयोगियों,अभिभावकों व प्रतिभागी बच्चों का भी आभार व्यक्त किया । पूर्व कमांडर नौसेना दिगम्बर सिंह जलाल जी द्वारा कुमाऊनी भाषा के महत्व बताते हुए इस बात पर जोर दिया कि आज के समय में हमें अपनी कुमाऊनी भाषा को संरक्षण देने की अत्यधिक आवश्यकता है। आज हम अपने घरों में कुमाऊनी भाषा का बहुत कम मात्रा में प्रयोग करते हैं, जबकि अन्य लोग जैसे पंजाबी अपनी पंजाबी में व गढ़वाली अपनी गढ़वाली में ही बात करते हैं। मंचस्थ अतिथि ऑनरेरी कैप्टन लक्ष्मण सिंह रावत जी द्वारा उत्तराखंड की अपनी एक अलग भाषा बनाये जाने व स्कूलों के पाठ्यक्रम में इसे शामिल करने पर बल दिया। पूर्व प्रधान -दुभड़ा रामसिंह रावत ने कहा, कि हम चाहे जितनी भाषा सीखें, बोले पर अपनी मातृभाषा को कभी ना भूलें। हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए। यह हमारी मातृभाषा होने के साथ हमारी अपनी पहचान है। मंचस्थ नवाचारी शिक्षक दामोदर पाण्डे,दीपक शर्मा व महेन्द्र सिंह बिष्ट जी द्वारा मातृभाषा कुमाऊनी के संरक्षण के सफल प्रयासों के लिए त्रिभुवन जलाल की प्रशंशा की, व सभी से अपनी मातृभाषा के संरक्षण के लिए घरों में भी कुमाऊनी में बातचीत करने का निवेदन किया। सत्र के बीच में संगीता जलाल द्वारा कुमाऊनी मुहावरे,भूमि,गरिमा जान्हवी ने ‘उत्तराखंड मेरी मातृभूमि’, लक्ष, ओम,दक्ष,चिराग, दीपांशु ने संगीत के साथ कुमाऊनी लोकगीत ‘बेडू पाकों बारुमासा’, मेधा जलाल ने कुमाऊनी आ्ण, महिमा जलाल ने कुमाऊनी भजन ‘डम-डम डमा डमरू बाजि रौ’, आदित्य रावत ने कुमाऊनी कहानी ‘सोने का अण्डा ‘, संगीता, आकांक्षा,मेघा,साक्षी,महिमा ने कुमाऊनी गीत ‘उतरैणी कौतिक लागि रौ’ कि संगीत के साथ सुंदर प्रस्तुति दी। मंचस्थ अतिथि हास्य कवि अमर सिंह बिष्ट ने ‘पुराने गुरुजी ‘पर एक हास्य व्यंग सुनाया व श्याम सिंह जलाल, नरेन्द्र सिंह जलाल जी द्वारा भी मातृभाषा के संरक्षण के साथ ही त्रिभुवन जलाल के अपनी मातृभाषा के संरक्षण के लिए किये गये प्रयासों की सराहना की। मातृभाषा कक्षा के समापन सत्र में उपस्थित प्रतिभागी बच्चों में भावेश,पीयुष, कार्तिक,तन्मय,हार्दिक, दीपांशु मेहरा व अभिभावकों में देव सिंह बिष्ट,लछम सिंह विष्ट, गोविंद सिंह जलाल, देवकी देवी,लक्ष्मी देवी,आशा देवी,हरी देवी, जशोदा जलाल हेमा रावत,दर्शन सिंह जलाल, हेमन्त रावत,देवकी देवी, मुन्नी जलाल, पुष्पा रावत, कमला जलाल,भगवत सिंह जलाल,पुष्कर सिंह, हीरा सिंह, ध्यान सिंह रावत,श्री देवी,मुन्नी देवी, शारदा देवी, पिंकी रावत,पुष्पा जलाल,माया रावत देवकी देवी आदि की सक्रिय उपस्थित रही‌। अन्त में मातृभाषा कक्षा के समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे कृष्ण सिंह रावत जी ने सभी मंचस्थ अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए सभी प्रतिभागी बच्चों से इन कक्षाओं से सीखी गयी बातों को अपने व्यवहार में लाने का निवेदन किया। और हम सब लोग भी अपने घरों में बच्चों से अपनी मातृभाषा कुमाऊनी में बातचीत कर इसके संरक्षण, संवर्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं‌। समापन सत्र का संचालन संयोजक मातृभाषा कक्षा त्रिभुवन जलाल ने किया। समापन सत्र पर सहयोग के लिए सभी प्रतिभागी बच्चों व अभिभावकों का समापन सत्र को सफल बनाने के लिए सभी का धन्यवाद,आभार ज्ञापित किया। पूर्व कमांडर नौसेना दिगम्बर जलाल के द्वारा कराये गये जलपान, मिष्ठान वितरण के साथ पन्द्रह दिवसीय मातृभाषा कक्षा का विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ समापन हुआ। सभी सहयोगियों,अभिभावकों व प्रतिभागी बच्चों का भी आभार व्यक्त किया । पूर्व कमांडर नौसेना दिगम्बर सिंह जलाल जी द्वारा कुमाऊनी भाषा के महत्व बताते हुए इस बात पर जोर दिया कि आज के समय में हमें अपनी कुमाऊनी भाषा को संरक्षण देने की अत्यधिक आवश्यकता है। आज हम अपने घरों में कुमाऊनी भाषा का बहुत कम मात्रा में प्रयोग करते हैं, जबकि अन्य लोग जैसे पंजाबी अपनी पंजाबी में व गढ़वाली अपनी गढ़वाली में ही बात करते हैं। मंचस्थ अतिथि ऑनरेरी कैप्टन लक्ष्मण सिंह रावत जी द्वारा उत्तराखंड की अपनी एक अलग भाषा बनाये जाने व स्कूलों के पाठ्यक्रम में इसे शामिल करने पर बल दिया। पूर्व प्रधान -दुभड़ा रामसिंह रावत ने कहा, कि हम चाहे जितनी भाषा सीखें, बोले पर अपनी मातृभाषा को कभी ना भूलें। हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए। यह हमारी मातृभाषा होने के साथ हमारी अपनी पहचान है। मंचस्थ नवाचारी शिक्षक दामोदर पाण्डे,दीपक शर्मा व महेन्द्र सिंह बिष्ट जी द्वारा मातृभाषा कुमाऊनी के संरक्षण के सफल प्रयासों के लिए त्रिभुवन जलाल की प्रशंशा की, व सभी से अपनी मातृभाषा के संरक्षण के लिए घरों में भी कुमाऊनी में बातचीत करने का निवेदन किया। सत्र के बीच में संगीता जलाल द्वारा कुमाऊनी मुहावरे,भूमि,गरिमा जान्हवी ने ‘उत्तराखंड मेरी मातृभूमि’, लक्ष, ओम,दक्ष,चिराग, दीपांशु ने संगीत के साथ कुमाऊनी लोकगीत ‘बेडू पाकों बारुमासा’, मेधा जलाल ने कुमाऊनी आ्ण, महिमा जलाल ने कुमाऊनी भजन ‘डम-डम डमा डमरू बाजि रौ’, आदित्य रावत ने कुमाऊनी कहानी ‘सोने का अण्डा ‘, संगीता, आकांक्षा,मेघा,साक्षी,महिमा ने कुमाऊनी गीत ‘उतरैणी कौतिक लागि रौ’ कि संगीत के साथ सुंदर प्रस्तुति दी। मंचस्थ अतिथि हास्य कवि अमर सिंह बिष्ट ने ‘पुराने गुरुजी ‘पर एक हास्य व्यंग सुनाया व श्याम सिंह जलाल, नरेन्द्र सिंह जलाल जी द्वारा भी मातृभाषा के संरक्षण के साथ ही त्रिभुवन जलाल के अपनी मातृभाषा के संरक्षण के लिए किये गये प्रयासों की सराहना की। मातृभाषा कक्षा के समापन सत्र में उपस्थित प्रतिभागी बच्चों में भावेश,पीयुष, कार्तिक,तन्मय,हार्दिक, दीपांशु मेहरा व अभिभावकों में देव सिंह बिष्ट,लछम सिंह विष्ट, गोविंद सिंह जलाल, देवकी देवी,लक्ष्मी देवी,आशा देवी,हरी देवी, जशोदा जलाल हेमा रावत,दर्शन सिंह जलाल, हेमन्त रावत,देवकी देवी, मुन्नी जलाल, पुष्पा रावत, कमला जलाल,भगवत सिंह जलाल,पुष्कर सिंह, हीरा सिंह, ध्यान सिंह रावत,श्री देवी,मुन्नी देवी, शारदा देवी, पिंकी रावत,पुष्पा जलाल,माया रावत देवकी देवी आदि की सक्रिय उपस्थित रही‌। अन्त में मातृभाषा कक्षा के समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे कृष्ण सिंह रावत जी ने सभी मंचस्थ अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए सभी प्रतिभागी बच्चों से इन कक्षाओं से सीखी गयी बातों को अपने व्यवहार में लाने का निवेदन किया। और हम सब लोग भी अपने घरों में बच्चों से अपनी मातृभाषा कुमाऊनी में बातचीत कर इसके संरक्षण, संवर्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं‌। समापन सत्र का संचालन संयोजक मातृभाषा कक्षा त्रिभुवन जलाल ने किया। समापन सत्र पर सहयोग के लिए सभी प्रतिभागी बच्चों व अभिभावकों का समापन सत्र को सफल बनाने के लिए सभी का धन्यवाद,आभार ज्ञापित किया। पूर्व कमांडर नौसेना दिगम्बर जलाल के द्वारा कराये गये जलपान, मिष्ठान वितरण के साथ पन्द्रह दिवसीय मातृभाषा कक्षा का विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ समापन हुआ।हरीशकार्यक्रम आनलाइन. डॉ हरीश चन्द्र अन्डोला दून यूनिवर्सिटी एबं त्रिभुवन जलाल की प्रशंशा की, व सभी से अपनी मातृभाषा के संरक्षण के लिए घरों में भी कुमाऊनी में बातचीत करने का निवेदन किया। सत्र के बीच में संगीता जलाल द्वारा कुमाऊनी मुहावरे,भूमि,गरिमा जान्हवी ने ‘उत्तराखंड मेरी मातृभूमि’, लक्ष, ओम,दक्ष,चिराग, दीपांशु ने संगीत के साथ कुमाऊनी लोकगीत ‘बेडू पाकों बारुमासा’, मेधा जलाल ने कुमाऊनी आ्ण, महिमा जलाल ने कुमाऊनी भजन ‘डम-डम डमा डमरू बाजि रौ’, आदित्य रावत ने कुमाऊनी कहानी ‘सोने का अण्डा ‘, संगीता, आकांक्षा,मेघा,साक्षी,महिमा ने कुमाऊनी गीत ‘उतरैणी कौतिक लागि रौ’ कि संगीत के साथ सुंदर प्रस्तुति दी। मंचस्थ अतिथि हास्य कवि अमर सिंह बिष्ट ने ‘पुराने गुरुजी ‘पर एक हास्य व्यंग सुनाया व श्याम सिंह जलाल, नरेन्द्र सिंह जलाल जी द्वारा भी मातृभाषा के संरक्षण के साथ ही त्रिभुवन जलाल के अपनी मातृभाषा के संरक्षण के लिए किये गये प्रयासों की सराहना की। मातृभाषा कक्षा के समापन सत्र में उपस्थित प्रतिभागी बच्चों में भावेश,पीयुष, कार्तिक,तन्मय,हार्दिक, दीपांशु मेहरा व अभिभावकों में देव सिंह बिष्ट,लछम सिंह विष्ट, गोविंद सिंह जलाल, देवकी देवी,लक्ष्मी देवी,आशा देवी,हरी देवी, जशोदा जलाल हेमा रावत,दर्शन सिंह जलाल, हेमन्त रावत,देवकी देवी, मुन्नी जलाल, पुष्पा रावत, कमला जलाल,भगवत सिंह जलाल,पुष्कर सिंह, हीरा सिंह, ध्यान सिंह रावत,श्री देवी,मुन्नी देवी, शारदा देवी, पिंकी रावत,पुष्पा जलाल,माया रावत देवकी देवी आदि की सक्रिय उपस्थित रही‌। अन्त में मातृभाषा कक्षा के समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे कृष्ण सिंह रावत जी ने सभी मंचस्थ अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए सभी प्रतिभागी बच्चों से इन कक्षाओं से सीखी गयी बातों को अपने व्यवहार में लाने का निवेदन किया। और हम सब लोग भी अपने घरों में बच्चों से अपनी मातृभाषा कुमाऊनी में बातचीत कर इसके संरक्षण, संवर्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं‌। समापन सत्र का संचालन संयोजक मातृभाषा कक्षा त्रिभुवन जलाल ने किया। समापन सत्र पर सहयोग के लिए सभी प्रतिभागी बच्चों व अभिभावकों का समापन सत्र को सफल बनाने के लिए सभी का धन्यवाद,आभार ज्ञापित किया। पूर्व कमांडर नौसेना दिगम्बर जलाल के द्वारा कराये गये जलपान, मिष्ठान वितरण के साथ पन्द्रह दिवसीय मातृभाषा कक्षा का विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ समापन हुआ।

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