डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में पलायन रोकने के लिए मशरूम जबरदस्त आधार बन सकता है। हजारों युवा मशरूम की खेती से जुड़ चुके हैं वहीं कई युवा मशरूम उत्पादन को अपनी समृद्धि का आधार सकते हैं क्योंकि मशरूम की मांग इतनी ज्यादा है कि स्थानीय बाजार में भी आसानी से बिक जाती है। अगर हजारों युवा भी मशरूम की खेती करें तो फिर मशरूम की पूर्ती करना असंभव है। देहरादून, हल्द्वानी, कोटद्वार, अल्मोड़ा, बागेश्वर, उत्तरकाशी, रुद्रपुर, श्रीनगर गढ़वाल, गौचर, नैनीताल, चम्पावत जैसे छोटे शहरों में मशरूम कहीं दिखता ही नहीं है। सब्जी मार्केट में मशरूम एक मिनट में ही बिक जाती है। जब हमारे आस.पास ही बाजार है तो हम उसे बेचने की फ़िक्र क्यों पालते हैं। एक बार उगा कर देखिए बाजार आपके पास दौड़ के चला आएगा।
पंजाब और हरियाणा देश की आधा से ज्यादा मशरूम उगाते हैं। उत्तरी राज्यों में मशरूम उत्त्पादन अच्छा होता है, इसलिए उत्तराखंड का नाम भी अब मशरूम के अग्रणी उत्पादकों में शामिल हो सकता है। इसके लिए बेरोजगार युवाओं को आगे आने की आवश्यकता है। यह बिना खेत की खेती है और इसमें कम लागत में कई गुना आमदनी है। जो बेरोजगार युवाओं को स्वलंबी बना सकता है। आपको बता दें कि मशरूम की खेती में होने वाले फायदे को देखकर इन दिनों इसकी खेती में शहरी युवा भी खासी दिलचस्पी ले रहे हैं। यही कारण है कि आजकल नए.नए तरीकों से मशरूम की खेती हो रही है। आप भी इसकी खेती से जुड़कर अच्छी आमदनी बना सकते हैं। कम लागत पर कई गुना आमदनी आपको 15 किलोग्राम मशरूम बनाने के लिए 10 किलोग्राम गेहूं के दानों की आवश्यकता होती है। यदि आप एक बार में 10 क्विंटल मशरूम उगा लेते हैं तो आपका कुल खर्च 40.50 हजार रुपए आएगा और उसकी कीमत करीब 2 लाख रूपये से अधिक होगी। इसके लिए आप पुराने घरों में रैक लगाकर इसे ज़माना होगा। उत्तराखंड में भूसा आसानी में कम कीमत पर आपको मिल सकता है। 10 ग्राम लगता है बीज सबसे पहले गेहूं को उबाला जाता है और इस पर मशरूम पाउडर डाला जाता है, जिससे मशरूम का बीज तैयार हो जाता है। इसे तीन महीने के लिए इस बीज को 10 किलोग्राम गेहूं के भूसे में 10 ग्राम बीज के हिसाब से रखा जाता है। 3 महीने बाद गेहूं के ये दाने मशरूम के रूम में अंकुरित होने शुरू हो जाते हैं। इसके बाद इन्हें 20 से 25 दिनों के लिए पॉलिथीन में डालकर 25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान वाले कमरे में रखा जाता है। इसके बाद मशरूम बिकने के लिए तैयार होता है।
ओइस्टर मशरूम की देश में सबसे अधिक मांग है। ब्रांडेड स्टोर पर भी सबसे ज्यादा ओइस्टर मशरूम ही बिकता है। इस मशरूम के दाम कम से कम 150 से 200 रुपए प्रति किलोग्राम हैं। स्थानीय बाजार को आसानी से आप इनके इस्टाल लगा सकते हैं। यदि आप बेहतर मार्केटिंग कर किसी रिटेल स्टोर से करार कर सकते हैं तो दाम और भी बेहतर मिल सकते हैं। सालभर में दो बार इसे पैदा किया जा सकता है। पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती हैए मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है। देहरादून की बेटी युवा उद्यमी दिव्या रावत पर यह पंक्तियां सटीक बैठती हैं। मशरूम गर्ल के नाम से मशहूर दिव्या ने मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में स्वरोजगार की नई इबारत लिख युवाओं को रास्ता दिखाया है कि वे नौकरी करने वाली नहीं, बल्कि नौकरी देने वाले बनें। दिव्या कहती हैं कि बदली परिस्थितियों में नौकरियों के सीमित अवसर को देखते हुए यही सबसे बेहतर विकल्प भी है। इससे जहां स्थानीय संसाधनों का बेहतर उपयोग होने से आर्थिकी संवरेगीए वहीं रोजगार की समस्या से भी दो.चार नहीं होना पड़ेगा। वह कहती हैं कि युवाओं और महिलाओं को स्वरोजगार के क्षेत्र में आगे आकर क्षेत्र, प्रदेश और देश की तरक्की में अपना योगदान देना चाहिए। दिव्या ने अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के बूते यह दर्शाया है कि हौसले बुलंद हों तो क्या कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। उनकी कामयाबी की दास्तान इसकी तस्दीक भी करती है। दिव्या ने पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने सोशल वर्क के क्षेत्र में कदम रखा, लेकिन एक संस्था में नौकरी रास नहीं आई और खुद के बूते किस्मत लिखने की ठानी। साढ़े पांच साल पहले दिव्या ने देहरादून में सौम्या फूड प्राइवेट लिण् कंपनी स्थापित कर मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में कदम रखा उन्होंने न सिर्फ मशरूम उत्पादन शुरू किया, बल्कि देहरादून समेत राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी युवाओं और महिलाओं को इसके लिए प्रेरित किया। धीरे.धीरे दिव्या मशरूम गर्ल के नाम से पहचानी जाने लगी। वह देहरादून में बटन, ओएस्टर और मिल्की मशरूम के उत्पादन के साथ ही उच्च हिमालयी क्षेत्र की मिल्यिकत कीड़ा जड़ी का उत्पादन भी अपनी लैब में कर रही हैं। साढ़े पांच साल के सफर में दिव्या की कंपनी का टर्नओवर 15 करोड़ तक पहुंच चुका है।
उच्च हिमालयी क्षेत्र की मिल्कियत कीड़ा जड़ी यारसा गंबू को शक्तिवर्द्धक औषधि के रूप में ही जाना जाता था, लेकिन अब आप दून में कीड़ा जड़ी चाय का भी आनंद ले सकते हैं। मशरूम गर्ल दिव्या रावत ने पिछले साल से दून में कीड़ा.जड़ी का दून में उत्पादन शुरू करने के साथ ही कीड़ा.जड़ी चाय की बिक्री प्रारंभ कर दी है। दिव्या का दावा है कि यह देश का पहला कीड़ा जड़ी चाय रेस्टोरेंट है। इसमें ग्राहकों को कीड़ा.जड़ी चाय से होने वाले तमाम फायदों से भी रूबरू कराया जा रहा है। कीड़ा.जड़ी उत्पादन के लिए दिव्या ने अपने घर में एक विशेष लैब बनाई है। उन्होंने मई 2017 में कीड़ा.जड़ी का उत्पादन शुरू किया और वर्तमान में दो माह में करीब 60 किग्रा कीड़ा जड़ी तैयार हो रही है। इसकी बाजार में कीमत 1.20 करोड़ रुपये प्रति किलो है। दिव्या लंबे अर्से से मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में काम कर रही हैं। साथ ही देहरादून समेत पहाड़ के गांव.गांव जाकर लोगों को भी मशरूम उगाने का प्रशिक्षण देती हैं। उन्होंने खाली पड़े खंडहरों, मकानों में मशरूम उत्पादन शुरू किया। इसके बाद कर्णप्रयाग, चमोली, रुद्रप्रयाग, यमुना घाटी के विभिन्न गांवों की महिलाओं को इस काम से जोड़ा। उन्होंने जितनी गंभीरता से मशरूम के प्रोडक्शन पर ध्यान दिया, उतनी ही मशक्कत से इसकी मार्केटिंग में भी हस्तक्षेप किया। अब तो प्रदेश सरकार ने उनके कार्यक्षेत्र रवाई घाटी को मशरूम घाटी घोषित कर दिया है। दिव्या बताती हैं कि अब दून समेत राज्यभर में पांच हजार से अधिक युवाओं और महिलाओं को मशरूम उत्पादन से संबंधित प्रशिक्षण दिया जा चुका है। इनमें से अधिकांश ने उत्पादन भी प्रारंभ कर दिया है।उत्तराखंड की दिव्या रावत जैसी बेटियों पर सिर्फ उत्तराखंड को ही नहीं, बल्कि पूरे देश को नाज है, जो देश के कई अन्य राज्यों में युवाओं को मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग दे रही हैं।
हजारों युवाओं एवं महिलाओं को आज यदि रोजगार नसीब हो रहा है, तो सिर्फ दिव्या के साहसिक कदम से। 29 वर्षीय दिव्या को उनकी उपलब्धि के लिए वर्ष 2017 में विश्व महिला दिवस पर मशरूम क्रांति के लिए राष्ट्रपति भवन में सम्मानित भी किया जा चुका है। उत्तराखंड सरकार इन्हें पहले ही अपना ब्रांड एंबेसेडर घोषित कर चुकी है। इसके अलावा उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। । उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रदेश में उच्च गुणवत्तायुक्त के फसल उत्पादन कर देश.दुनिया में स्थान बनाने के साथ राज्य की आर्थिकी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में पलायान को रोकने का अच्छा विकल्प बनाया जा सकता है। अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती हैण्उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं ही नहीं, यहां के खान.पान में भी विविधता का समावेश है। पहाड़ में पारा गिरने पर किसानों की आय नहीं गिरेगी। पारा गिरने पर भी पौष्टिक मशरूम की खेती संभव होगी। कृषि विज्ञान केंद्र ने एक ऐसी प्रजाति इजाद की है बटन मशरूम। यह मशरूम सर्दियों के मौसम भी उगाई जा सकेगी। कृषि विज्ञान केंद्र बागेश्वर काफलीगैर के विशेषज्ञों के मुताबिक सफेद और बटननुमा आकार होने की वजह से सर्दियों में होने वाली इस मशरूम का नाम बटन मशरूम है। बटन मशरूम की 14 से 22 डिग्री सेल्सियस तापमान में आसानी से पैदावार हो जाती है। सर्द मौसम में बंद कमरे में टनल में कंपोस्ट खाद के साथ बीज मिला देते हैं। 20.25 दिनों में ये मशरूम उगने लगेगी। यह बेहद पौष्टिक और स्वादिष्ट होती है। इसकी बाजार में बेहद मांग है। इस तरह किसान पारा गिरने पर भी आय बढ़ा सकता है।
अभी तक पहाड़ में सर्दियों में मशरूम की खेती नहीं होती है। सिर्फ गर्मियों और बारिश में मशरूम की पैदावार होती है। बारिश में हुई मशरूम में जहरीला होने का खतरा बना रहता है। विकास प्रदर्शनी में कृषि विज्ञान केंद्र के स्टाल पर इस मशरूम की जबरदस्त मांग हैं। बटन मशरूम की जाड़े के मौसम में पहाड़ी जनपदों में खेती हो सकती है। सिर्फ 20.25 दिनों में अच्छी फसल हो जाएगी। इसकी बाजार में मांग हैं और दाम भी अच्छे मिलते हैं। इससे किसान सर्दियों में भी आय कर सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि गरीबी दूर करने के लिए मशरूम की खेती किसानों के लिए एक बेहतर उपाए हैं। बहुत से सफल किसान इसका जीता जागता उदाहरण हैं। मशरूम खाने में जितना लजीज होता हैए उतना ही हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी होता है। मशरूम में कई ऐसे जरूरी पोषक तत्वों का भंडार है, जिसकी जरुरत हमारे शरीर को होती है। विटामिन बी, डी, पोटैशियम, कॉपर, आयरन और सेलेनियम जैसे कई खनिज और विटामिन इसमें पर्याप्त मात्रा में मौजूद होते हैं। शायद ही आपको ये मालूम होगा कि मशरूम का इस्तेमाल कई बिमारियों के इलाज में भी किया जाता है। पिछले कुछ सालों में मशरूम की मांग हमारे देश में तेजी से बढ़ी है। भारत, जहां की ज्यादातर आबादी शाकाहारी है, वहां शरीर में जरूरी पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए भी मशरूम का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाने लगा है। वहीं भारत में मशरूम की बढ़ती मांग को देखते हुए अब इसकी खेती भी बड़े पैमाने पर की जाने लगी है। देश के कई राज्यों में मशरूम की खेती वृह्त रुप से की जा रही है, लेकिन कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि अब भी बाजार की मांग की तुलना में मशरूम का उत्पादन कम हैं। हालांकि अब तो कई ऐसे तकनीक बाजार में आ गए हैं।