पौड़ी के पालिकाध्यक्ष यशपाल बेनाम के निर्वाचन को निर्दलीय प्रत्याशी आशुतोष नेगी की कोर्ट में चुनौती
पौड़ी। ये चुनाव भी कितने अजीब होते हैं। जीतने की क्षमता रखने वाला चाहे चोर हो, बदमाश हो, डकैत हो या फिर असामाजिक तत्व राजनीतिक पार्टियां उसे टिकट देती हैं। इन राजनीतिक दलों के लिए जीत के आगे सारी नैकिताएं दरकिनार हो जाती हैं।
निकाय चुनाव से पहले पौड़ी के पालिकाध्यक्ष यशपात बेनाम की वित्तीय शक्तियां सीज कर दी गई थी। वित्तीय शक्तियों सीज करने वाली कोई और नहीं, बल्कि भाजपा की राज्य सरकार ही थी। तब यशपाल बेनाम निर्दलीय तौर पर चुनाव जीतकर पालिकाध्यक्ष बने थे। भाजपा को किसी भी तरह से जीत चाहिए थी, चुनाव से ठीक पहले जीतने वाले उम्मीदवार के तौर पर यशपाल बेनाम की पहचान की गई और उन्हें भाजपा में शामिल किया गया, इसके लिए बाकायदा सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिस यशपाल बेनाम की पालिकाध्यक्ष के तौर पर वित्तीय शक्तियां भाजपा सरकार ने सीज की थी, निकाय चुनाव से ठीक पहले उन्हीं बेनाम को भाजपा ने गले लगा लिया।
निकाय चुनाव में जीत भी यशपाल बेनाम की हो गई। भाजपा इस जीत से गदगद थी। आखिर उसे एक और निकाय में जीत हासिल हुई। चुनावी जीत की इस आपाधापी में भाजपा यह भूल गई कि उसी की सरकार ने कुछ महीने पहले इसी यशपाल बेनाम की वित्तीय शक्तियों सीज कर दी थी। यदि तत्कालीन पालिकाध्यक्ष यशपाल बेनाम की वित्तीय शक्तियां सीज की गई थी तो कोई पुख्ता कारण भी होंगे। जिन कारणों का अब तक निपटारा नहीं हुआ है। अब सवाल उठ रहा है कि पिछले कार्यकाल में जिस पालिकाध्यक्ष की वित्तीय शक्तियां सीज कर दी गई थी, नए चुनाव जीतकर आने के बाद उसकी वित्तीय शक्तियां कैसे बहाल की जा सकती हैं?
इसी को आधार बनाते हुए निकाय चुनाव में निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़े आशुतोष नेगी ने जिला एवं सत्र न्यायालय पौड़ी में यशपाल बेनाम के चुनाव को रद्द करने की मांग करते हुए याचिका दायर की है। हालांकि इस मामले में अभी सुनवाई की तारीख नहीं लगी है।
सवाल उठता है कि चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक चले जाने की राजनीतिक दलों की इस प्रवृत्ति पर रोक कैसे लग सकेगी? जनता जब तक जागरूक नहीं होगी, गलत प्रत्याशियों को गुणदोष के आधार पर वोट नहीं देगी, राजनीतिक दल इसी तरह का चरित्र दिखाते रहेंगे।