डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में कोरोनावायरस संक्रमण लगातार घातक साबित हो रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि कोरोना वायरस की वजह से उत्तराखंड में मृत्यु दर अन्य हिमालयी राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है। इसके अलावा भारत के सभी राज्यों में मृत्यु दर के मामले में उत्तराखंड नौवें नंबर पर है। उत्तराखंड में कोरोना वायरस के कारण मौत की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। नए संक्रमण की वजह से 50 से कम उम्र के लोगों की मृत्यु दर ज्यादा है। कम्युनिटी फॉर सोशल डेवलपमेंट के आंकलन में यह बात सामने आई है।
इसमें बताया गया है कि हिमालयी राज्यों में से सबसे ज्यादा मृत्यु दर उत्तराखंड में है। अगर प्रति लाख जनसंख्या की बात करें तो उत्तराखंड में प्रति लाख जनसंख्या में मरने वालों की संख्या करीब 37 है। उत्तर प्रदेश में यह दर मात्र 8 और हिमाचल में 26 है। अब टॉप टेन हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड है। प्रति लाख जनसंख्या पर 37 मौत के साथ उत्तराखंड पहले नंबर पर है। 28 मौत के साथ हिमाचल दूसरे नंबर पर है। सिक्किम मैं भी प्रति लाख जनसंख्या पर 28 मौत हो रही है। मणिपुर में प्रति लाख जनसंख्या पर 18 मौत हो रही है। त्रिपुरा में प्रति लाख जनसंख्या पर 11 मौत हो रही है। मेघालय में प्रति लाख जनसंख्या पर 8 मौत हो रही है। नगालैंड में प्रति लाख जनसंख्या पर सात मौत हो रही है। अरुणाचल प्रदेश में प्रति लाख जनसंख्या पर चार मौत हो रही है। मिजोरम में प्रति लाख जनसंख्या पर दो मौत हो रही है। यह आंकड़े कम्युनिटी फॉर सोशल डेवलपमेंट द्वारा जारी किए गए हैंै।
प्रदेश में कोविड के कारण मरने वालों में कई रोगी अस्पताल पहुंचने के 48 घंटे के अंदर काल का ग्रास बन रहे हैं। यह माना जा रहा है कि लोग देर से उपचार के लिए पहुंच रहे हैं। पर्वतीय जिलों में मैदानी जिलों की तुलना में आरटीपीसीआर जांचें कम हो रही हैं। वहां कोरोना लक्षण वाले मरीज उतनी संख्या में अभी अस्पताल नहीं पहुंच रहे हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में चुनौती बढ़ती है, तो उससे निपटना उतना ही मुश्किल होगा। यह स्थिति भविष्य के लिहाज से अच्छी नहीं है। प्रधानमंत्री जहां टेस्ट, ट्रैक व ट्रीट पर जोर दे रहे हैं, सिस्टम इसी से दूर भाग रहा है। जिससे सिस्टम को पार पाना होगा। अन्यथा स्थिति विकट होती जाएगी। उत्तराखंड को प्रकृति ने कई अनमोल तोहफों से नवाजा है। इनमें ना सिर्फ हिमालय की गोद में बसी खूबसूरत वादियां हैं, बल्कि इन वादियों में हजारों किस्म की बेशकीमती जड़ी.बूटियां भी मौजूद हैं।
उत्तराखंड के पहाड़ बेशकीमती जड़ी.बूटी का खजाना हैं। लोग इनकी खेती भी करते हैं, प्राचीन काल से ही वनस्पतियों का उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार हेतु किया जाता है। इसका प्राचीनतम उल्लेख ऋग्वेद 3500 ईण् पूर्व में मिलता है। देश में उपलब्ध वनस्पति प्रजातियों में से लगभग 1000 किस्म के पौधे अपने विशेष औषधीय गुणों के कारण विभिन्नण्विभिन्न औषधियों में प्रयुक्त होते हैं और इनसे लगभग 8000 प्रकार के मिश्रित योग कम्पाउण्ड फारमुलेन्सस बनाये जाते हैं। जिनका विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। देशी चिकित्सा पद्धति जैसे आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी व प्राकृतिक चिकित्सा में प्रयुक्त दवाओं में उपयोग किये जाने वाले औषधीय पौधे विभिन्न जलवायु में फलते-फूलते हैं। इन पौधों के विभिन्न भाग जैसे जड़ए तनाए छालए पत्तियांए फलए फूल व बीज आदि जंगलों से ही एकत्र किये जाते हैं।
अभी तक अधिकांश वनौषधियों का प्राकृतिक स्रोतों से ही दोहन किया जा रहा है, फलस्वरूप अनेक महत्वपूर्ण औषधीय पौधे विलुप्त होने की कगार पर आ गये हैं। अगर अभी भी इनके संरक्षण हेतु उचित कदम नहीं उठाये गये तो ये वनस्पतियां सदैव के लिए विलुप्त हो जायेंगी लेकिन जो लोग यहां आकर नौकरी में रम गए, उन्होंने इस कारोबार के बारे में कभी गंभीरता से नहीं सोचा। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में भी औषधीय पादपों की खेती करने के लिए ली जा सकती है।