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उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन तंत्र पर सवाल

03/03/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
हर तरह की प्राकृतिक आपदा के लिहाज से उत्तराखंड संवेदनशील है। इसके बाद भी अभी तक प्रदेश में समुचित आपदा निगरानी तंत्र विकसित नहीं हो पाया है। खासकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में एवलांच और ग्लेशियर झीलों से निकलने वाली तबाही को लेकर मशीनरी के हाथ बंधे हुए हैं।माणा के पास एवलांच की घटना के बाद से आपदा प्रबंधन तंत्र एक बार फिर अति सक्रिय हो गया है। कुछ ऐसा ही फरवरी 2021 में तब हुआ था, जब चमोली जिले में ऋषि गंगा कैचमेंट से जल प्रलय निकली थी। उसके मुकाबले माणा की घटना बेहद छोटी है। तब सात फरवरी की सुबह रौंथी पार्वती से करीब आगा किलोमीटर लंबा हैंगिंग ग्लेशियर टूट गया था। उस समय इस तरह के खतरों से पहले से ही सचेत रहने के लिए तमाम कसरत की गई थी।यहां तक कि ग्लेशियर क्षेत्रों की सेटेलाइट से निरंतर निगरानी की बात भी सामने आई थी। ताकि समय रहते ग्लेशियर और ग्लेशियर झीलों में आ रहे असामान्य बदलावों की पहचान की जा सके, लेकिन जिस तरह से बदरीनाथ के माणा क्षेत्र में ग्रेफ के श्रमिक एवलांच जोन में निरंतर बर्फबारी के बीच काम करते पाए गए, उससे निगरानी तंत्र को लेकर सवाल भी खड़े होते हैं ग्लेशियर झीलों के बनने और फटने से लेकर एवलांच आने की प्रक्रिया आगे भी जारी रहेगी। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के पूर्व विज्ञानी और प्रमुख हिमनद विशेषज्ञ के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तराखंड के हजारों छोटे बड़े ग्लेशियरों का आकार निरंतर बदल रहा है।ग्लेशियर झीलें बन रही हैं और दो दर्ज के करीब झीलें चेतावनी भी दे रही हैं। ऐसे में ग्लेशियर क्षेत्रों में हर एक गतिविधि का संचालन प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर किया जाना आवश्यक है। उत्तराखंड में 30 सालों में बर्फ की मात्रा में 36.75 प्रतिशत की कमी आई है। यह स्थिति बताती है कि जलवायु परिवर्तन से एवलांच और ग्लेशियर झीलों के खतरे भी बढ़ेंगे। ऐसे में ग्लेशियर क्षेत्रों के लिए नए सिरे से निगरानी और सुरक्षा तंत्र बनाया जाना आवश्यक है। इसके बाद भी प्रशासन व आपदा प्रबंधन ने श्रमिकों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के लिए कोई प्रयास किया किया। यह गंभीर चूक मामला है। इस लापरवाही पर जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। उन्होंने प्रदेश सरकार से बर्फ में दबे श्रमिकों को निकालने के लिए युद्ध स्तर पर राहत व बचाव कार्य करने की मांग की है। प्रदेश का आपदा प्रबंधन तंत्र पूरी तरह से फेल है। उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन सचिव ने कहा, वहां पर मौसम लगातार खराब चल रहा है। मुख्यमंत्री लगातार स्थिति पर नजर रख रहे हैं। मुख्यमंत्री ने दो बार कंट्रोल रूम  का भ्रमण किया। उन्होंने हर चीज पर विस्तृत जानकारी ली। बचाव और राहत कार्य तेजी से चल रहे हैं। कल तक 55 में से 33 लोगों को बचाया गया। शेष 22 लोगों के लिए बचाव और राहत कार्य चल रहा है। 200 से ज्यादा लोगों को मौके पर (बचाव कार्य के लिए) भेजने की तैयारी है। चार हेलीकॉप्टर काम कर रहे हैं। जरूरत पड़ने पर और सुविधाएं ली जाएंगी। भारतीय वायुसेना का एक एमआई-17 हेलीकॉप्टर स्टैंडबाय पर है, मौसम साफ होते ही यह यहां पहुंच जाएगा।विनोद कुमार ने कहा जोशीमठ में मौसम साफ हो रहा है। हम माणा के पास एक हेलीपैड बना रहे हैं, क्योंकि हमारा हेलीपैड बर्फ से ढका हुआ है। बर्फ हटाने का काम जारी है। हमें उम्मीद है कि हेलीपैड तैयार होने के बाद बचाव और राहत कार्य में और तेजी आएगी। लगातार बर्फबारी के कारण रात में बचाव कार्य रोक दिया गया था। बचाव और राहत दलों को कोई खतरा न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए रात में ऑपरेशन रोक दिया गया था। शनिवार सुबह से ही काम फिर से शुरू हो गया है। जोशीमठ में हमारी मेडिकल टीम तैयार है।.लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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