रिपोर्टर-प्रियांशु सक्सेना
डोईवाला। विश्वभर में प्रसिद्ध देहरादूनी बासमती टाईप 3 चावल अब विलुप्त होने के कगार पर है, सरकार की उपेक्षा के साथ कंक्रीट के जंगल खेती की जमीन को निगल चुके हैं। साथ ही नदियों में दोषित पानी आने के साथ साथ अन्य कारणों से भी देहरादून की प्रसिद्ध बासमती विलुप्त होती जा रही है।
देहरादून के माजरा क्षेत्रों के साथ दूधली क्षेत्र में यह बासमती धान की फसल को बहुत अच्छा माना जाता था, लेकिन फसल का सही मूल्य न मिलने, कम पैदावार के साथ चावल छोटा होना व खेती में नदियों के प्रदूषित पानी के प्रयोग से सुगंध का न होना भी इसके विलुप्त का कारण बन रहा है। आज भी कुछ क्षेत्रों में देहरादून के प्रसिद्ध बासमती की फ़सल उगाई जा रही है, जो कि जैविक बासमती के नाम पर बिक रही है। जिसमें पेलियो बुढडी गांव के साथ सहजपूर ब्लाक, रायपुर ब्लाक व डोईवाला ब्लाक के कुछ किसान देहरादून की धरोहर व नाम को बचाने का प्रयास कर रहे हैं।
किसान उमेद बोरा ने कहा कि जैविक बासमती की मांग पूरे विश्व में है और हमे दुःख है कि फर्जी तरीके से आज भी देहरादून के बासमती चावल पूरे भारत वर्ष के साथ विदेशों में भी बेची जा रही है। कहा की बासमती को विलुप्त से बचाने का हमारा प्रयास भी निशफल होता दिख रहा है परंतु सरकार के साथ अगर जैव विविधता बोर्ड और किसान भी देहरादूनी बासमती को बचाने का कार्य मिलकर कर तो हम उसे विलुप्त होने से बचा सकते है।