उत्तराखंड में आईएएस और आईपीएस जैसे परिष्ठ पदों पर बैठे कुछ नौकरशाह जमीन कब्जाने, अवैध गतिविधियों में संलिप्त होने और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं, भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े आरोप उन पर लगे हैं, लेकिन जब कार्यवाही का मौका आता है तो कोई न कोई आंका उनके लिए सुरक्षा कवच बनकर आ जाता है और वह सजा से बच निकलते हैं। रिटायरमेंट के दस साल बाद पूर्व आईपीएस, पूर्व डीजीपी उत्तराखंड बीएस सिद्द्धू के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के निर्देश सरकार ने दिए हैं। जमीन कब्जाने और संरक्षित वन क्षेत्र से 25 साल के पेड़ काटने के आरोप में अब उत्तराखंड शासन ने मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही करने के निर्देश दिए हैं। सवाल उठता है कि क्या सिद्द्धू पर उनके द्वारा किए गए कथित अपराध के अनुसार कार्यवाही हो सकेगी? या वह भी बच निकलेंगे? सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि अब तक ऐसे अपराध करने वाले किसी बड़े अफसर या नेता पर उत्तराखंड में कार्यवाही नहीं हुई है। मोरी के संरक्षित वन क्षेत्र में संरक्षित क्षेत्र में पेड़ काटने और जमीन कब्जाने वाले आईएएस अफसर के खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहंी हुई है। एनएच 74 जमीन घोटाले में छोटे अफसरों को जेल भेजा गया, आईएएस अफसरों को कुछ समय के लिए निलंबित रखा गया, उसके बाद उन्हें प्रमोशन तक दे दिया गया। एक मुख्य सचिव रहे अफसर पर तो दूसरों के अपराध दबाने तथा खुद बड़े-बड़े अपराधों में संलिप्त होने के प्रमाण मौजूद हैं, लेकिन आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। अब तो वह उत्तराखंड की राजनीति में पैर जमाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
सिद्द्धू पर मसूरी वन प्रभाग के गिरवाली गांव में कूटरचना कर जमीन खरीदने और 25 पेड़ काटकर संरक्षित वन भूमि कब्जाने का आरोप है। वन विभाग इसकी जांच करा चुका है। पुलिस के राज्य में सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति पर जिस तरह के आरोप लगे हैं, वह पूरे पुलिस डिपार्टमेंट के साथ राज्य सरकार के लिए शर्म की बात है।
आरोप है कि तत्कालीन अपर तहसीलदार सदर के साथ मिलकर पूर्व डीजीपी ने जमीन पर कब्जा किया। इस कूट रचना में जमीन विक्रेता नकली नाथूराम खड़ा किया गया। जबकि असली नाथूराम की मृत्यु 1983 में हो चुकी थी। इसी तरह कुछ नकली गवाह भी खड़े किए गए। नकली विक्रेता से नकली गवाहों की उपस्थिति में 21 मई 2012 को जमीन की रजिस्टरी करवाई गई। आरोप है कि बीएस सिद्धू ने तत्कालीन अपर तहसीलदार सदर सुजाउद्दीन के साथ मिलकर जमीन की खरीद की और उस पर कब्जा किया। उसके बाद पेड़ काटे गए। सरकार के निर्देश पर शिकायतकर्ता आशुतोष सिंह प्रभागीय वन अधिकारी मसूरी वन प्रभाग ने मुकदमा दर्ज कराया है। इस मामले में तत्कालीन डीजीपी सहित आठ लोगों को आरोपी बनाया गया है।
गौरतलब है कि सिद्द्धू के डीजीपी रहते हुए उन कई पुलिस विभाग के छोटे अफसरों और वन विभाग के अफसरों की प्रताड़ना भी खूब चर्चाओं ने रही थी। ये ऐसे अफसर थे, जो मामले की तह तक जाकर निष्पक्ष जांच करना चाहते थे।
शिकायतकर्ता प्रभागीय वन अधिकारी मसूरी वन प्रभाग आशुतोष सिंह द्वारा दी गई तहरीर में कहा गया है कि तत्कालीन डीजीपी बीएस सिद्धू ने महानिदेशक पद पर रहते हुए भारतीय वन अधिनियम के तहत आरक्षित वन घोषित मसूरी रोड स्थित जमीन कब्जाई थी। साथ ही यह भी कहा गया है कि मेरठ के दो अधिवक्ता दीपक शर्मा व स्मिता दीक्षित के कहने पर सभी फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए। यही नहीं उन पर आरोप है कि वन भूमि पर खड़े 25 पेड़ भी काट दिए गए। यहां तक कि बीएस सिद्धू ने पद का दुरुपयोग करते हुए वन अधिकारियों व कुछ कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज दर्ज करवाए थे।
जांच पड़ताल करने के बाद तत्कालीन डीजीपी बीएस सिद्धू, तत्कालीन अपर तहसीलदार शूजाउद्दीन, महेंद्र सिंह, नकली नथुराम, दीपक शर्मा, स्मिता दीक्षित, सुभाष शर्मा और कृष्ण के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।
इस मामले में पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू का एक बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि उनके खिलाफ वन विभाग जुर्माना काटने की कार्रवाई कर चुका है, जुर्माने की इस कार्यवाही को वह गलत मानते हैं। उनका कहना है कि इस प्रकरण में जिला न्यायालय ने उनके खिलाफ आईपीसी में मुकदमा दर्ज करने की अनुमति को खारिज कर दिया था, इस स्थिति में यदि शासन ने उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अनुमति दी है, तो वह कानूनी कार्रवाई करेंगे।