————– प्रकाश कपरुवाण।।
ज्योतिर्मठ, 25अप्रैल।
ग्रीष्म काल के छः माह भगवान बद्रीविशाल के गर्भगृह मे भगवान बद्रीनाथ के साथ नित्य पूजित गरुड़ जी की मूर्ति शीतकाल के छः माह बिना पूजा के मंदिर समिति के खजाने के एक बॉक्स मे बन्द रहते है, भगवान नारायण के साथ पूजी जाने वाली गरुड़ मूर्ति का छः माह बॉक्स मे बन्द रहना धार्मिक दृष्टि से कितना जायज है यह तो सनातन धर्म के झंडाबरदार भली भांति बता पाएंगे, लेकिन बॉक्स मे बन्द गरुड़ भगवान को लेकर स्थानीय लोगों एवं धर्म के जानकारों के बीच चर्चाएं अवश्य शुरू हो गई है।
दरसअल भगवान बद्रीविशाल के कपाट खुलने व बन्द होने की एक विशिष्ठ धार्मिक परंपरा है, कपाट खुलने से पूर्व ज्योतिर्मठ -जोशीमठ के नृसिंह मंदिर “मठागण”मे तिमुण्डा मेला व गरुड़छाड़ उत्सव आयोजित होता है और गरुड़छाड़ उत्सव के अगले दिवस ही नृसिंह मंदिर व नवदुर्गा सिद्धपीठ से ही श्री बद्रीनाथ के मुख्य पुजारी श्री रावल आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य की पवित्र गद्दी के साथ प्रथम पड़ाव पाण्डुकेश्वर के लिए प्रस्थान करते हैं जहाँ एक प्रवास के उपरांत वे भगवान उद्धव एवं कुबेर जी की डोलियों को साथ लेकर कपाट खुलने से पूर्व श्री बद्रीनाथ धाम के पहुँचते हैं।
भगवान बद्रीविशाल के कपाट खुलने से पूर्व जोशीमठ मे गरुड़छाड़ उत्सव का होना भी यही दर्शाता है कि भगवान श्रीहरि नारायण अपने वाहन गरुड़ मे सवार होकर ग्रीष्म काल के छः माह भक्तों को दर्शन देने के लिए बद्रीकाश्रम के लिए प्रस्थान कर रहे हैं, लेकिन भगवान नारायण के वाहन श्री गरुड़ जी की मूर्ति बॉक्स मे बन्द होकर बद्रीनाथ पहुँचती है और भगवान बद्रीविशाल के गर्भगृह मे सुसज्जित की जाती है।
भगवान बद्रीविशाल के गर्भगृह मे भगवान श्री बद्रीनाथ के साथ जो विग्रह नित्य पूजे जाते हैं उनमे श्री कुबेर जी, श्री गरुड़ जी, श्री उद्धव जी, श्री नारद जी, एवं श्री नारायण व नर प्रमुख हैं, कपाट बन्द होने के बाद श्री कुबेर जी व उद्धव जी देव डोलियों मे पाण्डुकेश्वर आते हैं और अनवरत पूजे जाते हैं जबकि आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य की पवित्र गद्दी एवं श्री गरुड़ जी जोशीमठ आते हैं, पवित्र गद्दी की तो शंकराचार्य गद्दी स्थल मे शीतकाल के छः माह तक पूजा की जाती है लेकिन गरुड़ जी बॉक्स मे बन्द होकर जोशीमठ पहुँचते है और छः माह बिना पूजा के बॉक्स मे ही बन्द रहते हैं।
गर्भगृह मे भगवान बद्रीविशाल के साथ विराजमान श्री गरुड़ जी का कितना महत्व है यह प्रतिदिन भगवान की महाभिषेक पूजा शुरू होने से पूर्व पुष्पांजलि के पहले श्लोक मे ही वर्णित है —–
।। “बन्दे श्री नारसिंहम गरुड़ सुरमुनी क्रोड़ केदार गंगा”।।
लेकिन विडंबना है कि जिन श्री गरुड़ भगवान का नाम नित्य पूजा मे सर्वप्रथम लिया जाता हो वही गरुड़ जी छः माह बॉक्स मे बन्द रहते हैं।
बदरीश पंचायतन मे छःमाह पूजे जाने वाले श्री गरुड़ जी की इस दशा के लिए क्या अकेले श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति या देवपुजाई समिति एवं रैंकवाल पंचायत जोशीमठ भी जिम्मेदार है ?।
——– भगवान बद्री नारायण के गर्भ गृह मे पूजित मूर्ति की पूजा वर्ष पर्यन्त होनी ही चाहिए, गरुड़ जी की मूर्ति नृसिंह मंदिर या मठ भंडार मे भी रखकर पूजा की जा सकती थी, लेकिन पूर्व वर्षो मे ऐसा क्यों नहीं हुआ इसकी उन्हें जानकारी नहीं है, यदि गरुड़ जी की मूर्ति मंदिर खजाने मे भी है तो वहाँ भी दीया-बत्ती तो होनी ही चाहिए :——
राधाकृष्ण थपलियाल, धर्माधिकारी श्री बद्रीनाथ धाम।.
:——– गरुड़ जी की मूर्ति को उत्सव के रूप मे श्री बद्रीनाथ धाम पहुँचाने का विचार अच्छा है, लेकिन वे धर्माचार्यों की राय व सहमति के उपरांत ही निर्णय ले सकेंगे :— विजय थपलियाल, सीईओ, श्री बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति।।
:——– श्री गरुड़ जी की मूर्ति को उत्सव के रूप मे श्री बद्रीनाथ धाम ले जाने का विचार सराहनीय है, यह एक अच्छी पहल होगी,, जनश्रुति के अनुसार पूर्व मे ऐसा होता था:— आचार्य भुवन चन्द्र उनियाल, निवर्तमान धर्माधिकारी श्री बद्रीनाथ धाम।।