हर वर्ष की भांति इस बार भी सिद्धपीठ हरियाली देवी की यात्रा का आगाज दीपावली से एक दिन पूर्व किया गया। यात्रा को लेकर स्थानीय ग्रामीणों से लेकर प्रवासियों में खासा उत्साह देखा गया। हरियाली देवी योगमाया का बालस्वरूप है, जो कि शुद्ध स्वरूप में वैष्णवी है।
यात्रा में जसोली गांव की स्थानीय महिलाओं द्वारा मांगलिक गायनों के साथ हरियाली देवी की डोली को नम आखों से हरियाल पर्वत की ओर विदा किया गया। ढोल-नगाड़ो तथा शंख की ध्वनि के साथ हजारों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में जसोली गांव से हरियाली देवी की डोली हरियाल पर्वत की ओर रवाना हुई। हरियाल पर्वत मां हरियाली देवी का मूल उत्पत्ति स्थान है, जिसको देवी का मायका माना जाता है।
मूल मायका होने के कारण साल में एक बार दीपावली पर्व पर मां हरियाली की डोली को हरियाल पर्वत ले जाने की यह पौराणिक परंपरा है, जिसको हरियाली देवी कांठा यात्रा का स्वरूप दिया गया है। हरियाली देवी डोली यात्रा की अगुवाई धर्म भाई हीत और लाटू के निशान द्वारा की गई।
देश की यह एक मात्र ऐतिहासिक देव यात्रा है, जो रात के पहर में की जाती है। इस यात्रा में हजारों श्रद्धालु मां हरियाली की डोली के साथ जसोली गांव से दस किमी पैदल चलकर हरियाली के घने वनों के बीच से होकर अगले दिन सुबह पांच बजे हरियाल पर्वत देवी के मायके मूल मंदिर में पहुंचे। जहां पर देवी के मायके पाबो गांव के लोगों ने डोली का भव्य स्वागत कर देवी को हरियाल पर्वत मंदिर में विराजमान किया।
जिसके पश्चात् देवी के पुरोहितों द्वारा वेद मंत्रो के साथ पूजा-अर्चना की गई और गाय के दूध से निर्मित खीर का देवी को भोग लगाया गया। पूजा अर्चना समाप्त होने के पश्चात् हवन का आयोजन किया गया, जिसमें 108 गायत्री तथा देवी मंत्रों के साथ आहुति दी गई और हवन समाप्त होने के बाद सभी भक्तों को प्रसाद वितरित कर देवी डोली पुुनः जसोली लिए रवाना हुई।