डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
गढ़ी कैंट छावनी बोर्ड को कई सरकारी भवनों से बकाया भवन कर नहीं मिल रहा है, इनमें राजभवन से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक शामिल हैं। बोर्ड ने कई बार संबंधित विभागों से पत्राचार भी किया पर कुछ नहीं हुआ। ऐसे में स्टाफ और पेंशनर्स को वेतन-भत्ते तक देने में दिक्कत हो रही है।बजट के अभाव में विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं। दो साल से चुनाव भी नहीं हुए।गढ़ी गैंट छावनी क्षेत्र में मुख्यमंत्री आवास, राजभवन, बीजापुर गेस्ट हाउस, एफआरआई, व्हाइट हाउस सहित कई प्रमुख सरकारी भवन हैं। इन सभी पर कर के रूप में छावनी परिषद का लाखों रुपये सालाना बनता है। इनमें से कुछ भवनों ने कुछ समय पूर्व अपना कर अदा कर दिया था, लेकिन मुख्यमंत्री आवास का कर 2009 से अदा नहीं हुआ। अब मुख्यमंत्री आवास पर 85 लाख से ज्यादा का कर बकाया है। राजभवन पर करीब 23 लाख रुपये का कर था, जिसमें से 13 लाख रुपये जमा किए जा चुके हैं पर करीब 10 लाख रुपये अभी भी बकाया हैं। बीजापुर गेस्ट हाउस पर 20 लाख से ज्यादा बकाया है। बताया जाता है कि बीजापुर गेस्ट हाउस जब से बना तब से एक बार ही पांच लाख रुपये जमा कराए गए। सबसे बुरी हालत एफआरआई की है। एफआरआई पर करीब कई करोड़ रुपये बकाया थे, जब कैंट बोर्ड ने बार-बार पत्राचार किया तो बताया गया कि एफआरआई को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया है। आधा हिस्सा एफआरआई का है, जबकि बाकि आधे में सेंटर एकेडमी स्टेट फॉरेस्ट और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी का क्षेत्र है। जिसके बाद 2.63 करोड़ की वसूली के लिए एफआरआई और दो करोड़ के लिए बाकि दोनों संस्थानों को बिल भेजा है प्रेमनगर में संयुक्त चिकित्सालय है। यह स्वास्थ्य विभाग के अधीन है। इस अस्पताल पर गढ़ी कैंट छावनी बोर्ड के करीब 58 लाख रुपये बकाया हैं। कई बार छावनी परिषद की ओर से सीएमओ देहरादून को इस संबंध में पत्र लिखा गया, लेकिन आज तक बकाया कर जमा नहीं किया गया। गढ़ी कैंट क्षेत्र में सिंचाई विभाग की पानी की चक्की है। इस पर भी करीब दो लाख रुपये का कर बकाया है। इस बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए गढ़ी कैंट बोर्ड के सीईओ का कहना है कि गढ़ी कैंट छावनी बोर्ड का करोड़ों रुपए सरकारी कार्यालयों पर कर बकाया है. बोर्ड समय-समय पर संबंधित विभागों के साथ पत्राचार करता है, लेकिन अब तक कर का भुगतान नहीं किया गया है.गढ़ी कैंट छावनी बोर्ड में कुल आठ वार्ड है और बोर्ड का सालाना खर्चा करीब 48 करोड़ रुपए है. केंद्र से बोर्ड में करीब 25 करोड़ आते है. बाकी खर्चा बोर्ड कर के रूप इकट्ठा करता है. साथ ही गढ़ी कैंट छावनी बोर्ड का हाउस टैक्स भी नगर निगम के हाउस टैक्स से 10 प्रतिशत अधिक है.बड़े भवनों पर करोड़ों रुपए का कर बकाया होने के कारण बोर्ड को स्टाफ और पेंशनर्स को वेतन भत्ता तक देने में दिक्कत हो रही है. साथ ही बोर्ड का भी विकास नहीं हो रहा है. इतना ही नहीं 6 महीने पहले स्टाफ की तीन महीने की सैलरी भी रुक गई थी, जिसके बाद केंद्र से अनुरोध करने पर रकम आई थी.वहीं, सीईओ का कहना है कि बोर्ड के स्टाफ से लेकर विकास कार्य का खर्चा अधिकतर कर से होता है, लेकिन समय से कर जमा नहीं होने पर बोर्ड को बजट की कमी से जूझना पड़ता है. अगर सभी भवनों से बकाया कर आ जाता है, तो बोर्ड की स्थिति काफी हद तक सही हो पाएगी और विकास कार्य भी कर पाएंगे. छावनी बोर्ड को उम्मीद थी कि सरकारी भवनों से कर वसूली से बजट में सुधार होगा, लेकिन बार-बार के नोटिस के बावजूद संबंधित विभागों की उदासीनता विकास कार्यों के लिए संकट पैदा कर रही है. इस मुद्दे को लेकर छावनी बोर्ड अब और सख्ती दिखाने की योजना बना रहा है. सरकारी भवनों पर बकाया कर न केवल छावनी बोर्ड के कामकाज में बाधा डाल रहा है, बल्कि प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर रहा है. इस स्थिति का समाधान सरकार की ओर से गंभीर पहल के बिना संभव नहीं है। सबसे पहले, सभी विभागों को बकाया टैक्स का भुगतान शीघ्र करना चाहिए और कंन्टोनमेंट बोर्ड को इसका पूरा लाभ मिलना चाहिए। साथ ही, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विभागों के बीच समन्वय बेहतर हो, ताकि भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति न हो। यदि इस समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो गढ़ी कैंट कंन्टोनमेंट बोर्ड की आर्थिक स्थिति और भी विकट हो सकती है।गढ़ी कैंट कंन्टोनमेंट बोर्ड में करोड़ों रुपये के बकाए का भुगतान न होने से न केवल सरकारी कर्मचारियों की सैलरी पर असर पड़ रहा है, बल्कि विकास कार्यों में भी रुकावट आ रही है। सरकार को इस गंभीर स्थिति को ध्यान में रखते हुए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। यदि इस मुद्दे को जल्द हल नहीं किया गया, तो इसका असर राज्य के समग्र विकास पर पड़ सकता है।।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।