देहरादून। सीमा पर दुश्मन से लोहा लेते हुए पति की शहादत के बाद पत्नी का सेना ज्वाइन कर मोर्चा संभालने का संकल्प देश भक्ति की एक मिशाल है। यह उत्तराखंड की परंपरा है और देशभक्ति को लेकर एक लंबी लकीर खींचने का माद्दा भी।
जब शहीद दीपक नैनवाल का शव 2018 में तिरंगे से लिपटकर घर पहुंचा था, तब दो छोटे-छोटे बच्चों की पूरी जिम्मेदारी ज्योति के सिर पर आ गई थी। वह पति की शहादत के बाद टूटी बिखरी नहीं बल्कि पति की शहादत ने ज्योति को एक नया संकल्प दिया। ज्योति ने दुश्मन के साथ लोहा लेने का संकल्प लिया। इसके लिए सेना ज्वाइन करने से बेहतर विकल्प नहीं हो सकता था। पढ़ी लिखी ज्योति ने संबंधित परीक्षा पास की और चेन्नई स्थित आफीसर्स ट्रेनिंग एकेडमी ज्वाइन की। आज इस दृढ़ संकल्पित महिला के इंतजार की घड़ी पूरी हो गई है। आज अकेडमी से ज्योति पास आउट होकर सेना में अफसर के तौर पर काम करने योग्य बन जाएंगी।
देहरादून जिले के हर्रावाला के रहने वाले सेना में नायक दीपक नैनवाल दस अप्रैल 2018 को जम्मू.कश्मीर के कुलगाम में आतंकी मुठभेड़ में घायल हो गए थे। उन्हें आतंकावादियों की तीन गोलियां लगीं, इसके बाद भी वह हिम्मत से लड़ते रहे। करीब एक महीने दस दिन बाद 20 मई 2018 को दीपक ने देश के लिए अपना सबसे बड़ा बलिदान दे दिया। शहीद की पत्नी ज्योति इस सबसे बड़ी विपदा से नहीं टूटी। ज्योति का संकल्प उन्हें एक नई दिशा की तरफ ले गया। जब शहादत हुई पति सेना में वार्स थे, पत्नी ने अपनी इच्छाशक्ति के बल पर अफसर का ओहदा हासिल किया है।
शहीद दीपक नैनवाल और ज्योति नैनवाल के बेटी लावण्या और बेटा रेयांश दो बच्चे हैं। लावण्या कक्षा चार में और रेयांश कक्षा एक में पढ़ते हैं। वह परिवार साथ चेन्नई गए हैं। बच्चों ने अपने शहीद पिता को फौजी वर्दी में देखा था, अब मां की उपलब्धि से दोनों अभिभूत हैं। रेयांश तो खुद फौजी ही बनना चाहता है।
शहीद दीपक नैनवाल का परिवार देश सेवा के लिए मिसाल है। दीपक के पिता चक्रधर नैनवाल रिटायर्ड फौजी हैं। वह 1971 के भारत-पाक युद्ध और कारगिल युद्ध में हिस्सा ले चुके हैं। दादा सुरेशानंद नैनवाल स्वतंत्रता सेनानी थे।
ऐसा नहीं कि यह पहला वाकया हो, इससे पहले भी उत्तराखंड में कई अन्य शहीदों की पत्नियां सेना ज्वाइन कर चुकी हैं। इससे पहले देहरादून के शहीद मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल की पत्नी निकिता, शहीद शिशिर मल्ल की पत्नी संगीता और शहीद अमित शर्मा की पत्नी प्रिया सेमवाल भी सेना की वर्दी पहन चुकी हैं और भारतीय सेना का हिस्सा बन देश सेवा की परंपरा को मजबूत कर रही हैं।