डा० हरीश चंद्र अंन्डोला
सफलता मेहनत के बूते संस्कार के बूते प्राप्त होती है। पिथोंरागढ़ जिले के बागेश्वर अलमोड़ा के बीच के क्षेत्र से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की जो क्षेत्रीय इंटर कॉलेज के प्रथम छात्र जिन्होंने अखिल भारतिय सेवा में विभिन्न राजकिय प्रशासिनक पदों पर कार्य किया पिता माता के सयोग के बूते नाम लिया जाता है। सोम्यता के लिए माता श्री डी० फील की डिग्री के साथ इंटर कॉलेज कि प्रधानाचार्य पद की सेवा की उनके सम्बध के आज के उत्तराखंण्ड व हिमाचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री वर्तमान मुख्य की रिशतेदार थी। विभिन्न पदो पर आसानी है। उनका पैत्रिक निवास उत्तराखण्ड के पहले निवार्चित मुख्यमंत्री के संस्दीय क्षेत्र नैनिताल के हलदवानी के वर्तमान के नगर निगम क्षेत्र में स्थित है। उनके पुत्र देश के विभिन्न विभागों जैसे विजलेनस के र्निदेशक, गोवा, अंडमान निकोबार, दिल्ली के विभिन्न केंन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों सचिव पदों पर कार्या करने के उपरान्त सर्वगीय बच्ची सिंह रावत विज्ञान और प्रोद्यिगकी के रूप में कार्या किया जिसमें कई फैसले राज्य के सिर्वागिन विकास राष्ट्रीय विकास के लिए योजनाओं को धरतल पर उतराने का भरसक प्रयास किया। जिनका लाभ राज्यवाशियों को पहुंच रहा होंगा। राष्ट सेवा उन्होंने दो हजार चार में सेवेछिक सेवानिर्वित लिया। उनके पुत्र एवमं पुत्र वधु डा० चिकत्सक के रूप में अमेरिका में सेवा प्रधान कर रहे है। और उनका सेवा करने का मन है। वर्तमान में भंडारी जी सामाजिक सेवा के क्षेत्र में राज्य की सेवा निसार्वथ रूप से राज्य के जरूरत मंदो की सेवा कर रहे है।
उत्तराखंड में विकास की नीव रखने वाले] शैक्षिक एवं औद्योयोगिक क्रांति के जनक स्व.नारायण दत्त तिवारी हैं प्रदेश के विकास में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। प्रदेश में दून] उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय] संस्कृत विश्वविद्यालय वीर माधो सिंह भण्डारी उत्तराखण्ड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय एवं सिडकुल जैसे उद्यमों की स्थापना एन डी तिवारी के कार्यक्राल में हुई। उत्तराखंड के स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले भीमताल की पहली पर्वतीय औद्योगिक घाटी उन्हीं में से एक है। उन्होंने प्रदेश के विकास में कई मील के पत्थर स्थापित किए। कभी लोगों की कलाइयों की शान कही जाने वाली हिंदुस्तान मशीन टूल्स (एचएमटी) का रानीबाग का कारखाना भी तिवारी की ही देन है। एनडी तिवारी विशाल व्यक्तित्व के धनी थे। दूरदर्शिता उनके अंदर कूट-कूट कर भरी थी। केंद्र में उद्योग मंत्री रहते हुए 1980 के दशक में ही उन्होंने उत्तराखंड की पलायन की समस्या को भांप लिया था। इसीलिए उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे औद्योगिक आस्थान खोलने पर जोर दिया। लगभग 100 एकड़ में स्थापित भीमताल की औद्योगिक घाटी उनकी इसी सोच का परिणाम रही। पर्वतीय क्षेत्रों में स्थापित होने वाली यह पहली औद्योगिक विकास यात्रा थी। प्राकृतिक रूप से बेहद खूबसूरत भीमताल को इलेक्ट्रॉनिक घाटी के रूप में विकसित करने का उनका सपना था। यूपी राज्य औद्योगिक निगम लिमिटेड के सहयोग से स्थापित इस इलेक्ट्रॉनिक घाटी में लगभग 100 से अधिक औद्योगिक इकाइयां स्थापित हुईं। इन इकाइयों ने यहां एक दशक से अधिक समय तक उत्पादन किया। सैकड़ों स्थानीय युवाओं को रोजगार मिला। जिसके कारण कुछ हद तक पहाड़ों से होने वाले पलायन पर भी रोक लगी। तिवारी ने काशीपुर एवं कुमाऊं के अन्य क्षेत्रों को भी विकसित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। काशीपुर को भी उद्योग के रूप में उन्होंने अनेक तोहफे दिए। इनमें से कई औद्योगिक इकाइयां आज भी काम कर रही हैं और राज्य के विकास में सहयोग कर रही हैं। बतौर पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने नवगठित राज्य के हित में अनेक कल्याणकारी योजनाएं संचालित कीं। देहरादून] हरिद्वार एवं उधमसिंह नगर को औद्योगिक नगरी के रूप में विकसित करने में उनका अहम योगदान रहा। अपने राज्य की सेवा की] जो उन्हें आज तक ऐसा करने वाला एकमात्र सीएम बनाता है। उन्होंने उत्तराखंड के शुरुआती विकास में एक उल्लेखनीय भूमिका निभाई] जो राज्य के
औद्योगिक क्षेत्र को मजबूत करने और इसे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने पर केंद्रित था। राज्य की आर्थिक प्रगति में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए एनडी तिवारी को प्यार से &^विकास पुरुष^ कहा जाता था। उन्होंने केंद्र में अपनी विपक्षी सरकार] जो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार थी] को राजी किया और राज्य के लिए एक औद्योगिक पैकेज हासिल करने में कामयाब रहे और कई उद्योगपतियों को निवेश करने और व्यवसाय स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया। बजाज ऑटो के चेयरमैन राहुल बजाज ने भी एनडी तिवारी के कहने पर पंतनगर में प्लांट लगाने का श्रेय उन्हें दिया। गए।
और उनका मनान है कि राज्कीय पहले निर्विचित मुख्यमंत्री द्वारा प्रथक राज्य के विकास कार्या को सम्मान किया जाना चाहिए। जैसे उनके कार्या काल में विश्वविद्यालयों की स्थापना की नीव रखना एवमं झील औद्योगिक विकास की नीव रखी थी। पूर्व सचिव सुरेश कुमार भंडारी का मानाना है की उनके नाम से कोई संस्था विश्वविद्यालय का नाम नहीं रखा गया है। सीधे शब्दों में कहे तो उनके बाद की सरकारें उनके विकास की नींव को भूल गई। उनके जन्म दिवस पर याद करना ये काफी नहीं है। नहीं तो आने वाली पीढ़ियाँ ऐसे विकासवादी व्यक्तित्व का नाम कागजों में सीमित रहेगा। आज के समाज के लिए / सरकारों के लिए विचारणीय है।