डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार होता है और यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक जमावड़ा माना जाता है। इस बार भी प्रयागराज में महाकुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू हो चुका है और 26 फरवरी तक चलेगा। जैसे-जैसे मेला आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है, जिसके कारण शहर के भीतर और बाहर भारी ट्रैफिक जाम देखने को मिल रहे हैं। प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है. इस दौरान लाखों श्रद्धालु रोज संगम में डुबकी लगा रहे हैं. प्रयागराज मेला प्रशासन की माने तो अब तक 54 करोड़ से ज्यादा लोग स्नान कर चुके हैं. इस बीच एक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि प्रयागराज स्थित गंगा और यमुना का पानी नहाने के लायक नहीं है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को एक रिपोर्ट सौंपा है. रिपोर्ट के मुताबिक, महाकुंभ मेले के दौरान उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में अलग-अलग स्थानों पर नदी के पानी में ‘फेकल कोलीफॉर्म’ का स्तर स्नान के गुणवत्ता मानकों (क्वालिटी स्टैंडर्ड) के अनुरूप नहीं था. फेकल कोलीफॉर्म पानी में सीवेज की मिलावट का मार्कर है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तय किए गए स्टैंडर्ड के मुताबिक 100 मिलीलीटर पानी में 2,500 यूनिट फेकल कोलीफॉर्म से ज्यादा नहीं होना चाहिए.नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव, ज्यूडिशियल मेंबर जस्टिस सुधीर अग्रवाल और एक्सपर्ट मेंबर ए सेंथिल वेल की बेंच 17 फरवरी को प्रयागराज में गंगा और यमुना नदियों में सीवेज के डिस्चार्ज को रोकने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस दौरान ये जानकारी सामने आई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड. ने 3 फरवरी को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल कोर्ट में ये रिपोर्ट सबमिट की थी. प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस रिपोर्ट के निष्कर्षों की समीक्षा की. और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को 19 फरवरी को वर्चुअली कोर्ट में पेश होने को कहा है. अधिकारियों को बढ़ते पॉल्यूशन लेवल के जवाब में किए गए उपायों के बारे में बताना होगा. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल कोर्ट ने पहले आई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को डिटेल्ड रिपोर्ट सबमिट करने का आदेश दिया था. लेकिन बोर्ड ने केवल पानी में हाई फेकल कोलीफॉर्म दिखाने वाले टे्स्ट रिपोर्ट सबमिट किया. इसके चलते एनजीटी ने आई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को एक व्यापक रिपोर्ट सबमिट करने के लिए अतिरिक्त समय दिया है. और इसके प्रमुख अधिकारियों को 19 फरवरी को अगली सुनवाई में मौजूद रहने का निर्देश दिया है.प्रयागराज में सीवेज और वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम की मॉनिटरिंग और ट्रीटमेंट दिसंबर 2024 से जांच के दायरे में है. दिसंबर 2024 में एनजीटी ने धार्मिक आयोजनों के दौरान पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियंत्रण का आह्वान किया था. महाकुंभ मेला एक धार्मिक आयोजन से कहीं अधिक है। यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और एकता का प्रतीक है। यहां आने वाले श्रद्धालु न केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए आते हैं, बल्कि इस मेले का हिस्सा बनकर वे एकजुटता और सामूहिकता का अनुभव करते हैं।यह आयोजन धार्मिक आस्थाओं और विश्वासों को प्रकट करता है, जहां लोग अपनी दुखों और कष्टों से मुक्ति के लिए पवित्र स्नान करते हैं। महाकुंभ मेला हर किसी के लिए एक जीवनभर की यादगार यात्रा बन जाता है, चाहे वह स्थानीय श्रद्धालु हों या विदेशी पर्यटक।प्रयागराज महाकुंभ मेला 2025 इस बार अपने चरम पर है। जैसे-जैसे मेला आगे बढ़ेगा, श्रद्धालुओं की संख्या और अधिक बढ़ेगी, जिससे ट्रैफिक जाम और अन्य चुनौतियाँ भी बढ़ेंगी। हालांकि प्रशासन ने इस स्थिति से निपटने के लिए कई इंतजाम किए हैं, लेकिन इस विशाल आयोजन के दौरान व्यवस्थाओं को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। वहीं, गंगा-यमुना जल की गुणवत्ता को लेकर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट पर सिर्फ नवंबर, 2024 तक के जल गुणवत्ता आंकड़े मौजूद हैं।ऐसा पहली बार नहीं है। 2019 में प्रयागराज के कुंभ पर सीपीसीबी की विश्लेषण रिपोर्ट खुद ही यह स्पष्ट करती है कि प्रमुख स्नान वाले दिनों में भी पानी की गुणवत्ता ठीक नहीं रही।सीपीसीबी की रिपोर्ट “एनवॉयरमेंटल फुटप्रिंट्स ऑफ मास बाथिंग ऑन वाटर क्वालिटी ऑफ रिवर गंगा ड्युरिंग कुंभ मेला” में यह स्पष्ट किया है।सीपीसीबी की इस रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के कुंभ मेले में 13.02 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया। वहीं, इस दौरान कर्सर घाट पर बीओडी और फीकल कोलिफॉर्म मानकों से अधिक पाए गए। जिस दिन प्रमुख स्नान हुआ उन अवसरों पर बीओडी के मान शाम को सुबह की तुलना में काफी बढ़े हुए पाए गए। इसके अलावा महाशिवरात्रि और उसके बाद फीकल कोलिफॉर्म सुबह और शाम दोनों समय मानकों से अधिक पाया गया।यमुना नदी में डिजॉल्वड ऑक्सीजन सभी अवसरों पर मानकों के अनुरूप था, जबकि पीएच बीओडी और फीकल कोलिफॉर्म कई अवसरों पर मानकों के अनुरूप नहीं थे। गंगा नदी की सहायक नदियों में, काली नदी को अन्य नदियों की तुलना में सबसे अधिक प्रदूषित पाया गया।पीएच का मान यदि 6 से 8 के बीच नहीं है तो स्नान के वक्त यह आपकी आंखों, कान और नाक जैसे संवेदनशील अंगों में जलन पैदा कर सकता है। वहीं, नदी में डिजॉल्वड ऑक्सीजन यदि 5 एमजी प्रति लीटर से कम है तो नदी मृतप्राय होने लगती है। वहीं, फीकल कोलिफॉर्म ज्यादा होने का मतलब है कि नदी में मल की मौजूदगी स्वीकार्य सीमा से ज्यादा है। सीपीसीबी की रिपोर्ट में चौंकाने वाला यह है कि संगम जहां विशेष तौर पर लोग स्नान करते हैं वहां जल कुंभ के दौरान प्रदूषित ही बना रहा।रिपोर्ट के मुताबिक संगम पर गंगा नदी की जल गुणवत्ता की निगरानी दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को की गई। सुबह के दौरान, गंगा नदी की जल गुणवत्ता बाहरी स्नान जल गुणवत्ता मानदंड के अनुसार डीओ के लिए सभी अवसरों पर अनुपालक पाई गई, जबकि पीएच (06 अवसरों पर), बीओडी (16 अवसरों पर) और एफसी (06 अवसरों पर) बाहरी स्नान मानदंड के अनुपालन में नहीं पाए गए।वहीं, शाम के दौरान, डीओ बाहरी स्नान जल गुणवत्ता मानदंड के अनुसार सभी अवसरों पर अनुपालक पाया गया, जबकि पीएच (06 अवसरों पर), बीओडी (15 अवसरों पर) और फीकल कोलिफॉर्म (06 अवसरों पर) मानदंड के अनुपालन में नहीं पाए गए।इसके अलावा अधिकांश शुभ स्नान अवसरों पर संगम पर बीओडी का मान शाम के समय सुबह की तुलना में काफी बढ़ा हुआ पाया गया।इसके अलावा महाशिवरात्रि और महाशिवरात्रि के बाद के अवसरों पर सुबह और शाम दोनों समय फीकल कोलिफॉर्म बाहरी स्नान मानकों से अधिक पाया गया।नदी के पानी की चालकता (कंडक्टिविटी) आमतौर पर 100 से 1000 माइक्रोसीमेंस प्रति सेंटीमीटर होती है। चालकता कितनी होनी चाहिए, इसका कोई मानक अभी तक तय नहीं किया गया है। हालांकि नदी में प्रवाह और चालकता के बीच एक अहम संबंध होता है।रीयल टाइम डेटा के मुताबिक 14 जनवरी को दोपहर 2 बजे तक संगम पर नदी की चालकता 704 माइक्रोसीमेंट प्रति सेंटीमीटर रही। जो यह दर्शाता है कि नदी में प्रवाह थोड़ा कम है। जैसे ही नदी में प्रवाह कम होता है पानी में चालकता बढ़ जाती है। नदी में चालकता बढ़ने का आशय है कि उसमें खनिज लवणों की मात्रा अधिक है। यह मानवीय गतिविधियों के द्वारा प्रदूषित पानी से भी बढ़ सकता है।यानी जैसे ही नदी में पानी का डिस्चार्ज कम होगा, गति और बहाव भी कम होगी और चालकता बढ़ सकती है। यह नदी की गुणवत्ता को और खराब बना सकता है। इतनी भीड़ को देखते हुए श्रद्धालुओं के तमाम इंतजाम भी किए जा रहें हैं लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।