देहरादून। भारत के कण-कण में राम अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की वजह से हर तरफ राम की चर्चा है। वैसे तो सबके अपने-अपने राम हैं, लेकिन एक राम गांधी के भी हैं, जो थोड़े अलग हैं। गांधी के राम ‘रघुपति राघव राजा राम’ हैं, जो रामराज्य की अवधारणा को पुष्ट करते हैं, उस अवधारणा के मुताबिक रामराज्य का आशय केवल हिंदुओं के राज्य से नहीं था। भजन में आगे की पंक्तियां हैं, ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’। गांधी के राम सौम्य हैं, उदार हैं, करुणानिधान है, नैतिक बल के स्रोत हैं, अभय की अमोघ शक्ति हैं और राजतंत्र में भी लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करने वाले हैं।ईश्वरीय राज, भगवान का राज्य। चाहे मेरी कल्पना के राम कभी इस धरती पर रहे हों या नहीं, रामराज्य का प्राचीन आदर्श यकीन ऐसे सच्चे लोकतंत्र का है, जहां सबसे कमजोर नागरिक भी बिना किसी लंबी और महंगी प्रक्रिया के जल्द-से-जल्द न्याय मिलने के प्रति आश्वस्त हो। सपनों का रामराज्य राजा और रंक को बराबरी का अधिकार देगा।मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर आगामी 22 जनवरी को विधि-विधान से राम जन्मभूमि पर प्रतिष्ठित हो रहा है। यह देश के लिए गौरव का क्षण है। सारे देशवासी और रामभक्त उत्साह से 22 जनवरी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री के आह्वान पर देशवासी मंदिरों और घर में स्वच्छता एवं सौंदर्य की पूरी तैयारी कर दीपावली मनाने की प्रतीक्षा कर रहे है। आज पूरा देश राममय हो गया है। यही प्रभु श्रीराम का आकर्षण है। हम सभी के लिए यह बहुत ही भावुक क्षण है।इस ऐतिहासिक, गौरवशाली व वैभवशाली पल के लिए हमें 500 वर्ष तक इंतजार करना पडा। लाखों साधु-संतों व राम भक्तों की कुर्बानी से ही आज हमारा राम जन्म भूमि पर भव्य राम मंदिर व उसमें रामलला के विराजमान होने का सपना पूरा होने जा रहा है।अयोध्या में बना यह मंदिर देश के लिए सिर्फ पूजास्थल नहीं है बल्कि यह हमारे लिए तप, त्याग और संकल्प प्रतीक और स्थायी प्रेरणापुंज बनने जा रहा है। इसकी वजह साफ है-श्रीराम का यह भव्य मंदिर जिस आंदोलन की बदौलत आकार ले पाया है, वह अर्पण, तर्पण और संकल्प से ओत-प्रोत आंदोलन था। उसी अर्पण, तर्पण और संकल्प की बदौलत ये मंदिर कोटि-कोटि लोगों की सामूहिक संकल्प शक्ति और हमारे राष्ट्र का प्रतीक बनने जा रहा है। जन मान्यता है कि इसी मंदिर में श्री रामलला के विराजित होने के उपरांत राम राज का शिलान्यास भी हो जाएगा। उस राम राज की आधारशिला रखी जाएगी, जिसकी परिकल्पना न जाने कब से हम भारत के लोग कर रहे हैं। सदियों की प्रतीक्षा समाप्त होने जा रही है। राम राज की परिकल्पना के साकार होने का वक्त नजदीक आ रहा है।अभी हम जिस कालखंड में जी रहे हैं, वह भारत के लिए क्रांतिकारी, गौरवशाली और बड़े सकारात्मक बदलावों का कालखंड है। पूरी दुनिया हमारी संस्कृति को मान रही है। भारत की गौरवशाली और प्राचीन संस्कृति की तरफ लोगों का रुझान है। पाश्चात्य संस्कृति की ओर खिंचे रहने वाले युवा भी हमारी संस्कृति को पुन: अंगीकार कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद समेत सौ से ज्यादा संस्थाएं समाज को जाग्रत कर रही हैं। निश्चय ही आने वाला समय अच्छा समय है, इसमें श्रीराम मंदिर मील का पत्थर बनने जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तो अगले पच्चीस सालों में मंदिर से राम राज की यात्रा का शुभारंभ करने की तैयारी शुरू की है। इसके लिए संघ की एक महत्ती योजना है, जिसके तहत संघ अगले पच्चीस सालों में ऐसे सशक्त भारत का निर्माण करना चाहता है जिसकी बदौलत भारत एक बार पुन: विश्व गुरु बने।वर्ष 2047 में देश की आजादी के एक सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर जो परिकल्पना है, उसे साकार करने के लिए केन्द्र बिंदू राम का मंदिर है और संघ समाज की सभी संस्थाओं को राम राज्य की परिकल्पना के अनुरूप संवैधानिक दायरे मेंं स्थापित करने का रोड मैप बना रहा है। संघ चाहता है कि आगामी पच्चीस सालों में प्रत्येक व्यक्ति का हृदय ऐसा हो, जिसमें श्रीराम स्वयं बसें और प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन की रचना इसी के अनुरूप करे।आज यह सब करने की जरूरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि अतीत मेंं समय चक्र कुछ ऐसे चला, जिससे आसुरी शक्तियां हावी हो गईं। विदेशी आक्रांताओं की वजह से एक लंबे कालखंड तक देश में प्रतिकूल हालात बने रहे। आक्रांताओं ने हमारे विशाल भवन नष्ट कर दिए। हमारे अस्तित्व के खात्मे की कोशिशें की गईं मगर वह श्रीराम को भला किस प्रकार मिटा पाते। उस राम को कैसे मिटाते, जो कण-कण में हैं, हर जन के हृदय में हैं। वक्ती तौर पर भवनों को ढहा देने वाले आक्रांता खुश हो कर चले गए लेकिन जिस प्रकार काले बादलों का अंधेरा छंटने पर सूर्य की सप्त रश्मियां वातावरण को फिर से जगमग कर देती हैं, उसी प्रकार राम मंदिर की बदौलत देश में सुख, शांति, समृद्धि, वैभव की जगमगाहट होना तय हो गया है। महज विरोध के लिए कुछ राजनीतिक दल श्रीराम मंदिर पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहे हैं। ऐसे जनाधार विहीन दलों के मुट्ठी भर नेताओं को समझना चाहिए कि राम का मंदिर किसी एक व्यक्ति अथवा पार्टी का नहीं है। यह ऐसी राष्ट्रीय धरोहर है, जिससे करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है। करोड़ों लोगों के सहयोग से ही राम जी यह काज संपन्न हो पाया है। करोड़ों लोगों ने इसमें सहयोग किया क्योंकि उनकी मान्यता है कि राम तो घट-घट में हैं। राम किसी एक के नहीं, सबके हैं। समूचे संसार के हैं। भारतवर्ष में करोड़ों लोगों की आस्था के केन्द्र राम हैं तो चीन, इरान, थाईलैंड, मलेशिया व कम्बोडिया में भी श्रीराम कथा एवं प्रसंगों का विवरण मिलता है। नेपालवासियों के माता जानकी से आत्मीय रिश्ते के बारे में भला कौन नहीं जानता। हर किसी को पता है कि श्रीलंका में जन मानस जानकी हरण कथा सुनकर श्रद्धावनत होता है। इंडोनेशिया, जो दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामिक देश है, में रामायण के कई रूप हैं। आज यह धारणा बलवती हो रही है कि राम मंदिर अनंत काल तक समूची मानवता को प्रेरणा देगा तो यह अकारण नहीं है। शास्त्रों में उल्लेख इस बात का है कि श्रीराम के समान कोई नीतिवान समूची धरा पर कभी नहीं हुआ। आज अगर राम राज की परिकल्पना साकार होने की प्रार्थना और उम्मीद की जा रही है तो इसका भी कारण है क्योंकि कोई गरीब व दु:खी न हो, यह राम राज का उद्देश्य था। श्रीराम का संदेश यह था कि नर-नारी को समान भाव से सुख मिले और बुजुर्गों व बच्चों की सदैव रक्षा हो। कुछ लोगों के मन में प्रश्न उठ सकता है कि आखिर राम राज क्या है? दरअसल, राम राज एक सामाजिक व्यवस्था का नाम है। यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसकी परिकल्पना महात्मा गांधी ने भी की थी। राम राज रूपी सामाजिक व्यवस्था समर्पण एवं त्याग की भावनाओं से ओत-प्रोत है। राम राज ऐसी व्यवस्था का द्योतक है, जिसमें शांति, सत्य और जन भावना का समावेश लाजिमी है।इसमें ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’ की भावना निहित है। लोक भावनाओं के सम्मान के बिना तो राम राज की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। तुलसी दास जी ने राम राज के बारे में रामायण में जो लिखा है, उसे देखिए। तुलसी दास की कहते हैं- ‘‘दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, रामराज काहु नहीं व्यापा।’’ अर्थात राम जी के राज में न देह से संबंधित रोग थे, न दैवीय प्रकोप और न ही भौतिक आपदाओं का प्रभाव व्याप्त था। महात्मा गांधी के 20 मार्च, 1930 को हिन्दी पत्रिका ‘नवजीवन’ में ‘स्वराज्य और रामराज्य’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में राम राज्य का बहुत ही सुंदर शब्दों में वर्णन किया गया है। गांधी जी लिखते हैं कि ‘‘स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों न किए जाएं, तो भी मेरे नजदीक तो उसका त्रिकाल सत्य एक ही अर्थ है, और वह है रामराज्य, यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो मैं उसे धर्मराज्य कहूंगा। रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी। सब कार्य धर्म पूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा। ज्सच्चा चिंतन तो वही है, जिसमें रामराज्य के लिए योग्य साधन का ही उपयोग किया गया हो. जिस गुण की आवश्यकता है, वह तो सभी वर्गों के लोगों- स्त्री, पुरुष, बालक और बूढ़ों- तथा सभी धर्मों के लोगों में आज भी मौजूद है. दु:ख मात्र इतना ही है कि सब कोई अभी उस हस्ती को पहचानते ही नहीं हैं. सत्य, अहिंसा, मर्यादा-पालन, वीरता, क्षमा, धैर्य आदि गुणों का हममें से हरेक व्यक्ति यदि वह चाहे तो क्या आज ही परिचय नहीं दे सकता?’’श्रीराम का मार्ग मानवता का मार्ग है। जब-जब हम श्रीराम के मार्ग पर चले हैं तो सुख का विस्तार हुआ है, समृद्धि ने पांव पसारे हैं और विकास ने बाहें फैलाई हैं लेकिन यह भी सत्य है कि जब-जब हम राम जी के रास्ते से भटके हैं तो हमारा पतन हुआ है। अब हम सही रास्ते पर हैं यानी राम के मार्ग पर हैं। हमारा मूल रास्ता ही यही है क्योंकि राम हमारी संस्कृति के आधार हैं। वह हमारे राष्ट्र की मर्यादा और मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। हमारी तो हर सुबह ‘राम-राम’ से होती है। हमारा तो हर काम ही राम आसरे होता है। हमें तो प्रेरणा भी प्रभु श्रीराम से ही मिलती है। भारत की अनेकता में एकता के सूत्र कोई और नहीं, स्वयं श्रीराम ही हैं। यदि हमारे देश की आत्मा राम हैं तो देशवासियों के दर्शन, दिव्यता और आस्था में भी राम ही हैं। जब सब कुछ श्रीराम हैं तो राम राज भी अपरिहार्य है। राम राज की परिकल्पना को साकार करने के लिए सबको योगदान देना चाहिए।सनातन संस्कृति के आस्थावान इस अवसर को दिव्य, अद्भुत, अलौकिक तथा देश के सम्मान की पुनस्र्थापना का मार्ग प्रशस्त करने वाला मान रहे हैं। आशा की जा रही है कि श्रीराम लला के अयोध्या में विराजमान होने के बाद भारत फिर से राम राज्य बनने की ओर अग्रसर होगा।आज जन-जन को राम के जीवन के बताये हुए संदेश के अनुसार जीने की जरूरत है। शबरी माता से मिलने के लिए जब राम जी पहुंचे तो माता शबरी ने कहा था कि आप रावण को मारने के लिए आये मुझसे मिलने नहीं आये, तब राम ने कहा कि रावण को तो लक्ष्मण भी मार सकते थे। मैं तो माता शबरी को प्रणाम करने आया हूँ। ताकि भारत के अंदर जब रामराज्य का इतिहास आने वाली पीढ़ियां पढ़ें तब दुनिया को यह समझ में आना चाहिए कि भारत में रामराज्य शबरी माता के आशीर्वाद से निषाद और केवट को गले लगाने से रामराज्य आता है। हम सब भारत मां की संतान हैं। हम सब एक हैं। इस भाव के जागरण की बहुत आवश्यकता है। अपने निजी स्वार्थों को छोड़कर देश के लिए धर्म के लिए जीने के लिए जरूरत है। आज दुनिया भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है। हम दुनिया को मार्गदर्शन कर सकें ऐसे भारत का निर्माण हमको करना है।लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।