उरगम घाटी। उप वन संरक्षक केदारनाथ वन प्रभाग इंदर सिंह नेगी ने कहा कि बंशी नारायण हिमालय के 12000 फीट की ऊंचाई पर केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के संरक्षित क्षेत्रों में आता है। मंदिर जनपद चमोली के जोशीमठ विकासखंड के अंतर्गत आता है, जो संरक्षित क्षेत्रों का मंदिर है। यहां केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के द्वारा मंदिर के संबंध में किसी भी तरह की छेड़खानी नहीं की जाती। यहां कलगोठ गांव के लोगों के द्वारा सदियों से मंदिर में पूजा अर्चना किया जाता रहा है। हर वर्ष रक्षाबंधन के महापर्व पर यहां विशेष पूजा एवं भंडारे का आयोजन किया जाता रहा है।
ग्रामसभा कलगोट के लोगों के द्वारा यहां पर परिवार के हिसाब से यहां पूजा सामग्री लाई जाती है और पूजा अर्चना संपन्न किया जाता है। श्री पंच केदार के कल्पेश्वर उरगम घाटी से रहा है यहां से कई यात्री वंशी नारायण जाकर वापस देबग्राम होमस्टे में रुकते हैं कई लोग बंसी नारायण के आसपास पानी वाली जगह पर रात्रि विश्राम करते हैं हाई कोर्ट उत्तराखंड के आदेशानुसार कोई भी व्यक्ति बुग्याल में निवास नहीं कर सकता है उसे बुग्याल को छोड़कर निचले वाले स्थानों में आना होगा इस प्रकरण में आज नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के वन बीट अधिकारी हरि सिंह राणा से बात की गई उन्होंने बताया कि बंसी नारायण क्षेत्र केदारनाथ वन्य जीव के अंतर्गत आता है। किंतु रिखडार से मैनवाखाल तक वन पंचायत उरगम के अंतर्गत आता है। वर्ष 1956 में रिजर्व फॉरेस्ट से काटकर इस वन पंचायत को बनाया गया था। वन पंचायत उरगम के सरपंच भगवती प्रसाद कहते हैं वोनारी से मेनवा खाल तक वन पंचायत उर्गम का कंपार्टमेंट न0 2 के अंतर्गत आता है।
वन संरक्षक केदारनाथ ने दूरभाष पर बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश अनुसार संरक्षित क्षेत्रों में किसी भी तरह का निर्माण कार्य सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बिना नहीं हो सकते हैं। इसमें भारत सरकार की अनुमति आवश्यक है। केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग की रेंज अधिकारी आरती मैठानी ने कहा कि बंसी नारायण क्षेत्र में परंपरागत रूप से पूजा का अधिकार लोगों को है। वहां स्थानीय लोग जा सकते हैं, किंतु वहां पर किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वन अधिनियम के तहत नॉन टिंबर कार्य वहां पर नहीं हो सकते हैं। मुख्य जीव प्रतिपालक उत्तराखंड के आदेश अनुसार प्रतिबंधित क्षेत्रों में कार्य हो सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पर्यटकों के जाने के कारण पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सीमित मात्रा में लोग जाने चाहिए। उन्होंने बताया कि पूरा बंसी नारायण मंदिर रिजर्व क्षेत्र के अंतर्गत है यहां पर मंदिर समिति के नाम पर कोई भूमि अभिलेख दर्ज नहीं है।
लक्ष्मण सिंह नेगी की एक पड़ताल