डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देवभूमि में स्थित चारधामों की अपनी दिव्यता है. उन्हीं में से एक है यमुनोत्री धाम. यहां से पवित्र यमुना नदी लोगों को आस्था से जोड़ती हैं. यमुना नदी को समस्त संतापों को दूर करने वाली माना जाता है. पुराणों में यमुना को सूर्य की पुत्री और मृत्यु के देवता यम की बहन माना जाता है. जो उनकी शरण में जाता है उसे वे सूर्य के जैसा तेजवान और मृत्यु का भय पल भर में दूर कर देती हैं. प्रकृति की गोद में बसा यमुनोत्री धाम करोड़ों लोगों की आस्था का केन्द्र है. जहां देश-विदेश के लोग आस्था के रंग में रंगे दिखाई देते हैं. यमुनोत्री धाम के कपाट सात मई यानि आज पूरे विधि विधान खुल जाएंगे. देवभूमि में यमुना नदीं को मां के रूप में पूजा जाता है, जो चार धामों में से एक है. कपाट खुलने के साथ ही यहां भक्तों का तांता लग जाता है. यमुनोत्री धाम यमुना नदी का उद्गम स्थान है. पुराणों के अनुसार, यमुना नदी सूर्य देव की पुत्री और मृत्यु के देवता यम की बहन मानी जाती हैं. यमुनोत्री धाम को सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है. पुराणों में जिसका विस्तार से वर्णन मिलता है. मान्यता है कि भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में सच्चे मन से स्नान करता है उसे यमत्रास से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही यहां यम की पूजा का भी विधान है. कहा जाता है कि जो यमुना नदी में स्नान करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.यहां यमुनोत्री ग्लेशियर का दीदार कर सकते हैं. यमुनोत्री धाम में दो मुख्य आकर्षण गर्म जलस्रोत हैं जिन्हे सूर्य कुंड और गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है. यमुनोत्री मंदिर के पास ‘दिव्य शिला नामक पत्थर है. जिसे यमुनोत्री मंदिर जाने से पहले हर श्रद्धालु पूजा करता है. महाभारत के अनुसार, जब पांडव तीर्थयात्रा पर आए तो वे पहले यमुनोत्री फिर गंगोत्री और उसके बाद केदारनाथ-बदरीनाथ की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की जाती है. यमुनोत्री धाम यमुना नदी का उद्गम स्थान है. पुराणों के अनुसार, यमुना नदी सूर्य देव की पुत्री और मृत्यु के देवता यम की बहन मानी जाती हैं. यमुनोत्री धाम को सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है. पुराणों में जिसका विस्तार से वर्णन मिलता है. मान्यता है कि भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में सच्चे मन से स्नान करता है उसे यमत्रास से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही यहां यम की पूजा का भी विधान है. कहा जाता है कि जो यमुना नदी में स्नान करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.यहां यमुनोत्री ग्लेशियर का दीदार कर सकते हैं. यमुनोत्री धाम में दो मुख्य आकर्षण गर्म जलस्रोत हैं जिन्हे सूर्य कुंड और गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है. यमुनोत्री मंदिर के पास ‘दिव्य शिला नामक पत्थर है. जिसे यमुनोत्री मंदिर जाने से पहले हर श्रद्धालु पूजा करता है. महाभारत के अनुसार, जब पांडव तीर्थयात्रा पर आए तो वे पहले यमुनोत्री फिर गंगोत्री और उसके बाद केदारनाथ-बदरीनाथ की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की जाती है.केदाखंड में भी कहा गया है कि भक्ति के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं. इसलिए यमुनोत्री के बाद ही गंगोत्री धाम की यात्रा करनी चाहिए, क्योंकि देवी गंगा ही ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं.चार धाम यात्रा के बेहतर से बेहतर प्रबंधन एवं श्रद्धालुओं को पूर्ण सुविधा एवं सुरक्षा प्रदान करने के खोखले सरकारी दावों की पोल, चारधाम के पहले प्रमुख तीर्थ धाम यमुनोत्री में खुलती नजर आ रही है । वह इसलिए, क्योंकि चार धाम यात्रा में आरंभ होने में बहुत कम समय रह जाने के बावजूद अभी तक यमुनोत्री धाम में घाट निर्माण का कार्य आरंभ नहीं हो सका है। लिहाजा यह माना जा रहा है कि शासन प्रशासन द्वारा यमुनोत्री धाम की उपेक्षा का सिलसिला यूं ही जारी रहने पर श्रद्धालुओं को यमुना नदी तट पर इस बार भी बोल्डर और पत्थरों के सहारे जोखिम भरी डुबकी लगानी पड़ सकती है । यमुनोत्री धाम में घाट का निर्माण कार्य अभी तक आरंभ न हो पाने की प्रमुख वजह निर्माण कार्य की वित्तीय स्वीकृति ना मिल पाना बताई जा रही है। उल्लेखनीय है कि यमुनोत्री धाम में केवल घाट निर्माण के संबंध में लापरवाही नहीं बरती जा रही बल्कि यमुनोत्री धाम के मंदिर की सुरक्षा के तकाजों को भी लगातार नजर अंदाज किया जा रहा है बताना होगा कि यमुनोत्री धााम में रसोई घर के पास आपदा के दौरान यमुना नदी के बीचोंबीच सुरक्षावॉल भी ढह कर क्षतिग्रस्त हो गई है। जिससे चलते नदी का जलस्तर बढ़ने की स्थिति में मंदिर परिसर के लिए कभी भी खतरा पैदा हो सकता है। ऐसे में अब तीर्थपुरोहितों ने इस संबंध में प्रशासन को पत्र लिखकर जल्द ही इसको दुरुस्त कराने की मांग की है, ताकि समय रहते मंदिर परिसर को नुकसान से बचाया जा सके। तीर्थपुरोहितों का कहना है कि यमुनोत्री धाम में लंबे समय से स्नान घाटों पर बेहतर व सुगम सुविधा उपलब्ध नहीं है।जुलाई 2024 को आई आपदा से धाम में यमुना मंदिर परिसर व यमुना नदी तट पर काफी नुकसान हुआ था, लेकिन अभी सुरक्षात्मक उपाय नहीं किए गए। जुलाई से आज तक सुरक्षा कार्य व सुरक्षित स्नान घाटों का निर्माण की केवल और केवल योजना ही बन रही है । इसे धरातल पर उतारने के प्रतिबद्ध प्रयास नहीं किए जा रहे है। लिहाजा सिस्टम की लापरवाही से इस बार भी श्रद्धालुओं को यमुनोत्री धाम में असुविधा उठानी पड़ सकती है। तीर्थपुरोहितों के अनुसार धाम के साथ-साथ जानकी चðी यमुनोत्री पैदल मार्ग पर सुरक्षित आवाजाही लायक मार्ग बनाने के लिए अभी से प्रयास होना चाहिए। यात्रा सीजन के बीच उपरोक्त कार्य करवाना महज बजट का दुरुपयोग ही साबित होगा। इसके अलावा आपदा के बाद सुरक्षा के नाम पर तात्कालिक रूप से लगाए गए आधे अधूरे गुणवत्ता विहीन वायरक्रेट भी बारिश के दौरान जान माल का बड़ा खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। पुरोहित समाज ने यमुनोत्री धाम की अपेक्षा पर नाराजगी जताते हुए शासन- प्रशासन से कपाट खुलने से पहले धाम में सुरक्षात्मक कार्य और स्नान घाटों पर व्यवस्था चाक चौबंद करने की मांग की है । उधर यमुनोत्री धाम में आस्था पथ और घाट निर्माण कार्य आदि को लेकर सिंचाई विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अभी वित्तीय स्वीकृति नहीं मिली है। यमुनोत्री धाम में यात्रियों के यमुना स्नान के दौरान सुरक्षा की व्यवस्था न होने से यात्री जान जोखिम में डालकर बोल्डरों के सहारे स्नान करने को मजबूर हैं. वहीं पुलिस कर्मी अस्थाई पुल से यात्रियों को यमुना नदी पार करा रहे हैं. तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि ऐसी स्थिति में वह कभी भी कोई भी बड़ी दुर्घटना हो सकती है. क्योंकि अब धीरे-धीरे नदी का जलस्तर भी बढ़ने लगा है.यमुनोत्री मंदिर समिति के प्रवक्ता का कहना है कि आपदा के बाद घाटों पर सुरक्षा कार्य न होने के कारण इस वर्ष भी यात्रियों को जान जोखिम में डालकर आवाजाही करने को मजबूर होना पड़ रहा है. धाम में पहुंचने वाले यात्री बोल्डरों को पकड़ कर स्नान करने को मजबूर हैं. वहां पर यमुना नदी को पार करने के लिए अस्थाई पुलिया बनाई गई है. उस पर भीड़ बढ़ने के कारण हर समय हादसे का खतरा बना रहता है.तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि अब ग्लेशियरों के पिघलने से नदी का जलस्तर भी बढ़ने लगा है. वहीं यात्रा भी अब रफ्तार पकड़ने लगी है. ऐसी स्थिति में कभी भी कोई भी बड़ा हादसा हो सकता है. उन्होंने प्रशासन से धाम के घाटों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने की मांग की है. कहा कि घाटों पर सुरक्षा के नाम पर चेन तक नहीं लगाई गई है. ऐसे में उम्मीद है। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*